इस खास ताबूत में इंसान को दफनाने से पौधों को मिलेंगे खास पोषक तत्‍व, कीमत है सवा लाख रुपये!

नीदरलैंड की एक कंपनी ने एक ऐसा ताबूत बनाया है जो दो वर्ष के अंदर इंसानी शरीर को पौधों के लिए पोषक तत्‍वों में बदल देता है। कंपनी ने इसको लीविंग कॉफिन का नाम दिया है। हालांकि इसकी कीमत सवा लाख रुपये है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Fri, 25 Sep 2020 03:06 PM (IST) Updated:Fri, 25 Sep 2020 09:54 PM (IST)
इस खास ताबूत में इंसान को दफनाने से पौधों को मिलेंगे खास पोषक तत्‍व, कीमत है सवा लाख रुपये!
नीदरलैंड की लूप कंपनी ने बनाया है लीविंग कॉफिन

डेल्‍फ्ट, नीदरलैंड (रॉयटर्स)। नीदरलैंड की एक डच कंपनी 'लूप' ने एक ऐसा ताबूत बनाया है जो इंसानी शरीर को पूरी तरह से नष्‍ट कर देता है। आमतौर पर ताबूत लकड़ी से बनाए जाते हैं लेकिन कंपनी ने इस ताबूत को फंगस से तैयार किया है। कंपनी की तरफ से पेश ये एक बायोडीग्रेडबल कॉफिन है। कंपनी का कहना है कि मरने के बाद यूं तो शरीर अपने आप ही धीरे-धीरे विघटित होने लगता है, लेकिन इस खास ताबूत से मृतक का शरीर पूरी तरह से मिट्टी में मिल जाएगा और वह पेड़ पौधों के लिए पोषक तत्व के रूप में काम आएगा। कंपनी ने इस ताबूत को इन्‍हीं खास कारणों की वजह से 'लीविंग कॉफिन' का नाम दिया है। कंपनी ने अपने इस खास ताबूत की कीमत 1,500 यूरो रखी है जो भारतीय मुद्रा में करीब सवा लाख रुपये है।

कंपनी का कहना है कि जिन लोगों के पार्थिव शरीर इसमें दफनाए जाएंगे वो मृत अवस्‍था में भी अनगिनत पेड़-पौधों को जीवन दे सकेंगे। रॉयटर्स के मुताबिक लूप कंपनी का कहना है कि इस ताबूत की बाहरी दीवारें मायसीलियम से बनी हैं। ये पदार्थ दरअसल मशरूम जैसे किसी फंगस का मिट्टी के भीतर जड़ों जैसा दिखने वाला हिस्सा होता है। अंदर की तरफ इस ताबूत में काई की एक मोटी परत बिछाई गई है, जो शरीर के विघटन की गति को तेज करने में मदद करती है। रॉयटर्स से बातचीत में इसके निर्माता बॉब हेंड्रिक्स ने बताया कि असल में मायसीलियम प्रकृति के सबसे बढ़िया रिसाइकिल एजेंटों में से एक है। उनके मुताबिक मायसीलियम लगातार भोजन की तलाश करता रहता है और उसे पौधों के लिए पोषक पदार्थों में बदलता रहता है।

मायसीलियम का एक और अहम गुण यह भी है कि ये जहरीले पदार्थ को भी चट कर उन्हें भी पौधों के काम आने वाले पोषक तत्वों में बदल सकता है। हेंड्रिक्स के मुताबिक मायीलियम का इस्‍तेमाल रूस के चर्नोबिल परमाणु हादसे के बाद व्‍यापक तौर पर मिट्टी को साफ करने के लिए किया गया था। इस विशेष पदार्थ से तैयार ताबूत को तैयार करने के पीछे भी यही सोच थी। उन्‍होंने कहा कि जब शवों को जमीन में दफनाया जाता है तो वहां की मिट्टी बहुत प्रदूषित हो जाती है। लेकिन इस ताबूत की वजह से ऐसा नहीं होगा। इस ताबूत में इस्‍तेमाल मायसीलियम को उसकी पसंदीदा धातुएं, तेल और माइक्रोप्लास्टिक मिल जाएंगे और मिट्टी के पोषक तत्‍व भी वापस आ जाएंगे।

कंपनी का कहना है कि इस ताबूत को बनाने की प्रक्रिया भी बेहद खास है। इसको किसी पौधे की ही तरह उगाया जाता है। इस तरह से एक ताबूत को उगाने में सात दिन का समय लगता है। नीदरलैंड की डेल्फ्ट टेक्निकल यूनिवर्सिटी में लूप कंपनी के लैब में इसके लिए एक सामान्य ताबूत के सांचे के ऊपर इसे उगाने का काम होता है। मायसीलियम के फलने फूलने के लिए उसे लकड़ी की पतली पतली परतों के साथ मिला कर इस सांचे पर फैला दिया जाता है। सात दिनों के बाद इसको सांचे से बाहर निकाला जाता है और फिर कुछ दिनों के लिए इसको सूखने को छोड़ दिया जाता है। सूखने के बाद ये करीब 200 किग्रा वजन को भी सह सकता है। ताबूत को मृत शरीर के साथ मिट्टी में गाड़े जाने के बाद 30 से 45 दिनों में यह ताबूत धरती में मौजूद पानी के संपर्क में आकर गल जाता है। इसके 2 से 3 वर्षों में इसमें रखा मृत शरीर भी पूरी तरह से खत्‍म हो जाएगा। कंपनी के मुताबिक पारंपरिक ताबूतों में दफनाए जाने वाले शवों को नष्‍ट होने में दो दशक तक लग जाते हैं।

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