कोयले का इस्तेमाल कम करने पर जी 20 देशों में मतभेद, पर्यावरण पर होने वाली रोम की बैठक के नतीजे को लेकर सवाल
इसी साल जुलाई में नेपल्स में हुए दुनिया के ऊर्जा और पर्यावरण मंत्रियों के सम्मेलन में कोयले का सबसे ज्यादा इस्तेमाल कर रहे चीन और भारत ने पर्यावरण सुधार के लिए जिन कदमों का आश्वासन दिया था वह उन्होंने पूरा नहीं किया है।
रोम, रायटर। बिजली के उत्पादन में कोयले का इस्तेमाल बंद करने के मुद्दे पर दुनिया के 20 सबसे संपन्न देशों में मतभेद पैदा हो गए हैं। धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए बड़े पैमाने पर कोयले का इस्तेमाल जरूरी माना गया है। इससे इटली की राजधानी रोम में 30-31 अक्टूबर को होने वाली जी 20 देशों के नेताओं की बैठक में पर्यावरण सुधार के मसले पर आमराय बनने की संभावना क्षीण हो गई है। यह बैठक स्काटलैंड के ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले इसी साल पर्यावरण पर होने वाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की तैयारी बैठक के रूप में देखी जा रही है।
इसी साल जुलाई में नेपल्स में हुए दुनिया के ऊर्जा और पर्यावरण मंत्रियों के सम्मेलन में कोयले का सबसे ज्यादा इस्तेमाल कर रहे चीन और भारत ने पर्यावरण सुधार के लिए जिन कदमों का आश्वासन दिया था, वह उन्होंने पूरा नहीं किया है। यह बात नाम स्पष्ट न किए जाने की शर्त पर तीन सूत्रों ने कही है। विशेषज्ञों के अनुसार दोनों विकासशील देश कोविड-19 महामारी से पैदा हुई मंदी से निपटने के लिए अपने ऊर्जा उत्पादन में कमी नहीं करना चाहते हैं। यही वजह कोयला इस्तेमाल में कमी नहीं होने दे रही। दोनों देशों का मानना है कि अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य विकसित देश 20 वीं सदी में कोयले का इस्तेमाल कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हुए लाभ अर्जित कर चुके हैं। अब जबकि भारत और चीन अपनी जरूरत के लिए कोयले का इस्तेमाल कर रहे हैं तब उनकी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए कहा जा रहा है। भारत पश्चिमी देशों से पर्यावरण सुधार के लिए प्रदूषण मुक्त नई तकनीक के साथ ही कोयले का इस्तेमाल कम करने के बदले आर्थिक सहायता चाहता है। पेरिस समझौते में विकासशील देशों के लिए ये प्रविधान हैं। लेकिन सहायता में व्यवधान पड़ने के कारण कोयले का इस्तेमाल तेज गति से कम नहीं हो पा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले हुए पेरिस समझौते में धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से कम करने पर सहमति बनी थी। इस समझौते की ग्लासगो में समीक्षा होनी है और भविष्य के लिए रूपरेखा तय होनी है। लेकिन कोविड महामारी के चलते बने हालात ने इस प्रक्रिया के बाधित होने की आशंका पैदा कर दी है।