क्‍या धरती के लिए खतरनाक हैं ऐस्टराइड्स, कैसे हुई इनकी उत्‍पत्ति, जानें इनके बारे में सब कुछ

ऐस्टराइड्स अभी भी स्‍पेस वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली बने हुए हैं। आखिर ये ऐस्टराइड्स क्‍या हैं। क्‍या उनको उल्का पिंडों की श्रेणी में भी रखा जा सकता है। क्‍या वह हमारे सौरमंडल या धरती की सतह तक पहुंच सकते हैं। दरअसल इस ब्रह्मांड में हम अकेले नहीं हैं।

By Ramesh MishraEdited By: Publish:Tue, 19 Oct 2021 03:08 PM (IST) Updated:Tue, 19 Oct 2021 03:19 PM (IST)
क्‍या धरती के लिए खतरनाक हैं ऐस्टराइड्स, कैसे हुई इनकी उत्‍पत्ति, जानें इनके बारे में सब कुछ
क्‍या धरती के लिए खतरनाक है ऐस्टराइड्स हैं, कहां से आते हैं ये उल्‍कापिंड।

नई दिल्‍ली, आनलाइन डेस्‍क। ऐस्टराइड्स अभी भी स्‍पेस वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली बने हुए हैं। आखिर ये ऐस्टराइड्स क्‍या हैं। क्‍या उनको उल्का पिंडों की श्रेणी में भी रखा जा सकता है। क्‍या वह हमारे सौरमंडल या धरती की सतह तक पहुंच सकते हैं। दरअसल, इस ब्रह्मांड में हम अकेले नहीं हैं। धरती के बाहर हमें जीवन भले ही ना मिला हो, लेकिन अंतरिक्ष का कोई मेहमान हमारे करीब से गुजर जाते हैं। आमतौर पर मंगल और बृहस्पति के बीच स्थित बेल्‍ट से आने वाली चट्टानें पृथ्‍वी ही नहीं सौरमंडल की उत्‍पत्ति और विकास के कई सवालों के जवाब दे सकती हैं।

क्या होते हैं ऐस्टराइड्स

ऐस्टराइड्स वे चट्टानें होती हैं जो किसी ग्रह की तरह ही सूरज के चक्कर काटती हैं। हालांकि, यह आकार में ग्रहों से काफी छोटी होती हैं। हमारे सौरमंडल में अधिकतर ऐस्टराइड्स मंगल ग्रह और बृहस्पति यानी मार्स और जूपिटर की कक्षा में ऐस्टराइड्स बेल्ट में पाए जाते हैं। इसके अलावा भी ये दूसरे ग्रहों की कक्षा में घूमते रहते हैं। ये ग्रह के साथ ही सूरज का चक्कर काटते हैं।

किस आकर के होते हैं ऐस्टराइड्स

करीब 4.5 अरब साल पहले जब हमारे सोलर सिस्टम का निर्माण हुआ था, उस वक्‍त गैस और धूल के ऐसे बादल थे जो किसी ग्रह का आकार नहीं ले पाए और वह पीछे छूट गए। समय के साथ यही इन चट्टानों में यानी ऐस्टराइड्स में तब्दील हो गए। यही वजह है कि इनका आकार भी ग्रहों की तरह गोल नहीं होता। ब्रह्मांड में कई ऐसे ऐस्टराइड्स हैं, जिनका डायमीटर सैकड़ों मील का होता है और ज्यादातर किसी छोटे से पत्थर के बराबर होते हैं। ग्रहों के साथ ही पैदा होने के कारण इन्हें स्टडी करके ब्रह्मांड, सौर मंडल और ग्रहों की उत्पत्ति से जुड़े सवालों के जवाब खोजे जा सकते हैं।

ऐस्टराइड्स अनियमित आकार के होते हैं

ज्यादातर ऐस्टराइड्स अनियमित आकार के होते हैं, लेकिन कुछ जैसे कि सिरस गोल आकार के हैं। इनके सतह पर छोटे बड़े गड्ढे पाए जाते हैं। वेस्टा नाम के ऐस्टराइड्स पर लगभग 450 किलोमीटर लंबा गड्ढा है। ऐसा माना जाता है कि इनकी सतह पूरी तरह से धूल से ढका हुआ है। ऐस्टराइड्स सूर्य के चारों ओर एक अंडाकार कक्षा में परिक्रमा करते हैं। कभी-कभी वे परिक्रमा करते हैं और कभी कभी असामान्य तरीके से एक दूसरे से टकराते रहते हैं। करीब 150 ऐस्टराइड्स के अपने चन्द्रमा भी हैं और इनमें से कई के दो-दो चन्द्रमा हैं।

धरती के आकार के होते हैं ऐस्टराइड्स

भले ही ऐस्टराइड्स आकार में इतने छोटे होते हैं, तब भी वह बहुत खतरनाक साबित हो सकते हैं। अतीत काल से ही कई ऐस्टराइड्स हमारी धरती से टकराते आए हैं। इसके कारण कई अप्रिय घटनाएं हुई हैं। ऐसी सम्भावना है कि भविष्य में भी कई छोटे-बड़े ऐस्टराइड्स धरती से टकराते रहें। सबसे बड़ा ऐस्टराइड्स जिसे सिरस नाम दिया गया है। उसका आकार 940 किलोमीटर लंबा है। दूसरी तरफ अब तक का जो सबसे छोटा ऐस्टराइड्स है वह सिर्फ छह फुट लंबा है। यह अक्टूबर 2015 में धरती के पास से गुजरा था।

1801 में हुई थी पहले ऐस्टराइड्स की खोज

ऐस्टराइड्स की खोज सबसे पहले 1801 में खगोलशास्त्री गुइसेप पियाजी ने की थी। यह अब तक खोजा गया सबसे बड़ा ऐस्टराइड्स बताया जाता है। कई लोग ऐस्टराइड्स को उल्का पिंड समझते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। जब कोई ऐस्टराइड्स सूरज का चक्कर लगाने के बाद धरती पर गिरकर बच जाता है। उसे उल्का पिंड कहते हैं। वहीं क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकराने से पहले जल जाते हैं, उन्हें उल्कापात्र कहा जाता है। सबसे मशहूर ऐस्टराइड्स 1 सेरेस है जिसका व्यास 952 किमी से भी अधिक है। इसके अलावा '2 पलास' (544 किमी व्यास) और '4 वेस्टा' 580 (किमी व्यास) का एस्टेरॉयड है। जिसे एस्ट्रोनोमर्स ने 1800 के दशक में खोजा था।

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