तालिबान के कब्जा करने के बाद अफगान पाक स्थित आतंकी संगठनों के लिए पनाहगाह बन जाएगा : विशेषज्ञ
विशेषज्ञों और राजनीतिक नेताओं का मानना है कि तालिबान प्रशासन को शासन के मुद्दों का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि 2001 में तालिबान ने पहली बार देश पर नियंत्रण खो दिया था और अब अफगान समाज में काफी बदलाव आ चुका है।
एम्स्टर्डम (नीदरलैंड), एएनआइ। अफगानिस्तान में तालिबान की नई सरकार ने तमाम बड़े-बड़े ऐलान व दावे किए हो लेकिन विशेषज्ञों और राजनीतिक नेताओं का मानना है कि तालिबान प्रशासन को शासन के मुद्दों का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि 2001 में तालिबान ने पहली बार देश पर नियंत्रण खो दिया था और अब अफगान समाज में काफी बदलाव आ चुका है।
एम्स्टर्डम स्थित थिंक-टैंक, यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज द्वारा बुधवार को एक वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार का शीर्षक "अफगानिस्तान एंड द रीजन पोस्ट - तालिबान टेकओवर" था। वेबिनार में बोलते हुए उन्होंने पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों के लिए, अफगानिस्तान एक सुरक्षित स्थान बनने पर भी चिंता दिखाई।
अफगानिस्तान की खान, पेट्रोलियम और उद्योग की पूर्व मंत्री और एनजीओ 'इक्वेलिटी फॉर पीस एंड डेमोक्रेसी' की संस्थापक नरगिस नेहान ने तर्क दिया कि तालिबान की कैबिनेट अफगानिस्तान की लिंग और जातीय विविधता दोनों का प्रतिनिधित्व करने में विफल रही है। उन्होंने आगे कहा कि तालिबान प्रशासन के पहले के मुकाबले में अब शासन संबंधी कठिनाइयाँ अलग हैं क्योंकि अफगान नागरिकों ने जागरूकता दिखाई है और तालिबान का विरोध कर रहे है।
नेहान ने कहा कि चूंकि 2001 में तालिबान के पहली बार देश पर नियंत्रण खोने के बाद से अफगान समाज में काफी बदलाव आया है, इसलिए नए तालिबान प्रशासन को विभिन्न शासन मुद्दों का सामना करना पड़ सकता है। नेहान ने तर्क दिया कि नए सरकारी नीतियों को सामाजिक एकता और सामाजिक शांति सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
इएफएसएएस रिसर्च फेलो और जेनेसिस नेटवर्क में रिसर्च फेलो डॉ डोरोथी वंदम ने कहा कि चीन केवल अफगानिस्तान के स्थिर होने की प्रतीक्षा कर रहा है ताकि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) जैसे संभावित सौदे किए जा सकें। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि चीन अफगानिस्तान में मानवाधिकार की स्थिति में दिलचस्पी नहीं रखता बल्कि देश की क्षमता का फायदा उठाने की प्रतीक्षा कर रहा है।
राजनीतिक व सैन्य विश्लेषक, ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय के पूर्व वरिष्ठ विश्लेषक, स्वीडिश रक्षा मंत्रालय और एसआइपीआरआइ और वर्तमान में एक इएफएसएएस रिसर्च फेलो टिमोथी फॉक्सली ने कहा कि तालिबान सरकार एक अल्पसंख्यक ताकत है और ऐसा लगता है कि बहुत कम लोकप्रिय समर्थन प्राप्त है। पंजशीर घाटी में चल रही लड़ाई तालिबान की गलतियों को दर्शाता है।