अफगान शांति प्रक्रिया: अमेरिकी दूत खलीलजाद ने की अब्दुल्ला अब्दुल्ला से मुलाकात

Afghan peace process अफगानिस्तान में अमेरिका की विशेष प्रतिनिधि जलमय खलीलजाद (Zalmay Khalilzad) ने काबुल में अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया के लिए उच्च परिषद के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला से मुलाकात कर अफगान शांति प्रक्रिया पर चर्चा की।

By Monika MinalEdited By: Publish:Mon, 01 Mar 2021 03:10 PM (IST) Updated:Mon, 01 Mar 2021 03:10 PM (IST)
अफगान शांति प्रक्रिया: अमेरिकी दूत खलीलजाद ने की अब्दुल्ला अब्दुल्ला से मुलाकात
अमेरिकी दूत खलीलजाद ने की अब्दुल्ला अब्दुल्ला से मुलाकात

काबुल, एएनआइ। अफगानिस्तान में  अमेरिका की विशेष प्रतिनिधि जलमय खलीलजाद (Zalmay Khalilzad) ने काबुल में अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया के लिए उच्च परिषद के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला से मुलाकात कर अफगान शांति प्रक्रिया पर चर्चा की।  अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, 'हमेशा की तरह जलमय खलीलजाद से मुलाकात कर खुशी हुई। हमने शांति प्रतिक्रिया पर चर्चा की जिसके लिए दोहा में वार्ता हुई थी।' अमेरिका के विदेश विभाग की ओर से रविवार को इस बारे में जानकारी दी गई थी। इसके अनुसार, जलमय खलीलजाद और उनकी टीम काबुल, दोहा व अतिरिक्त क्षेत्रीय राजधानियों का दौरा करेंगे। 

सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान पूरी तरह से तालिबान का समर्थन करता है और उन्हें काबुल में स्थापित करना चाहता है। इससे संघर्षरत देश में विकसित व लोकतांत्रिक संस्थानों में भारत के प्रयासों को बड़ा खतरा हो सकता है। इससे भारत की स्थिति स्पष्ट है कि काबुल में किसी भी सरकार का गठन हो वह अफगान नीत या अफगान का होना चाहिए। अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, 'हमेशा की तरह जलमय खलीलजाद से मुलाकात कर खुशी हुई। हमने शांति प्रतिक्रिया पर चर्चा की जिसके लिए दोहा में वार्ता हुई थी।' 

12 सितंबर, 2020 को दोहा में अफगान शांति वार्ता शुरू हुई थी। यह वार्ता अफगानिस्तान में आंतरिक युद्ध को समाप्त करने के लिए पिछले साल फरवरी में अमेरिका-तालिबान शांति समझौते के बाद शुरू हुई। इसमें अफगानिस्तान में हजारों अमेरिकी सेनाओं की वापसी का रास्ता प्रशस्त करने के बात कही गई थी। इसके साथ ही शर्त रखी गई थी कि अफगानिस्तान में शांति कायम होगी।

इससे पहले अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता होने के बावजूद अफगानिस्तान में हिंसा रुक नहीं रही। इस समझौते में शर्त रखी गई कि तालिबान शांति स्थापित करने में मदद करेगा, लेकिन लगातार होने वाले धमाकों में से अनेक हमलों में उसका ही हाथ रहता है। ऐसे में अब अमेरिका की सरकार का इस ओर रुख थोड़ा बदलता नजर जा रहा है। व्हाइट हाउस (White House) की ओर से कहा गया है कि अगर अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन होता है, तो अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन इसका समर्थन नहीं करेंगे।

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