जानिए किस Model पर आधारित Drone से Saudi Aramco पर किया गया Attack
सऊदी अरब की अरामको तेल कंपनी पर हमला ड्रोन से किया गया या किसी मिसाइल का इस्तेमाल किया गया इसको लेकर छानबीन की जा रही है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। सऊदी अरब की अरामको कंपनी पर किस चीज से हमला किया गया, इस बात का पता लगाने के लिए खुफिया एजेंसियां लगातार काम कर रही है मगर पहली बार में जो बात सामने आ रही है उसमें ये कहा जा रहा है कि इस कंपनी पर ईरानी ड्रोन मॉडल से हमला किया गया है। एक बात ये भी कही जा रही है कि ये हमला किसी मिसाइल से भी किया गया हो सकता है। वैसे संयुक्त राष्ट्र के एक्सपर्ट पैनल ने जनवरी माह में ही रिपोर्ट दे दी थी कि हूती लंबी दूरी वाले ड्रोन से सऊदी और यूएई के भीतर हमला कर सकते हैं, इस तरह की सूचना मिलने के बाद कुछ तैयारियां की गई थीं मगर इस ओर बहुत गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया, इसी का प्रमाण है कि हूती यहां हमला करने में कामयाब रहे।
ईरानी मॉडल पर आधारित ड्रोन से हमला
सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार हूती ने सऊदी अरामको कंपनी पर जो हमला किया वो ड्रोन ईरानी मॉडल पर आधारित हैं और ये उत्तर कोरियाई तकनीक से बना है। ये ड्रोन्स अधिकतर (लगभग 300 किलोमीटर) की क्षमता वाले हैं, ये ड्रोन इससे अधिक दूरी तक मार नहीं कर सकते है।
ईरान हूती विद्रोहियों को उपलब्ध कराता ड्रोन और मिसाइलें
तेल कंपनी पर हमला होने के तुरंत बाद ही अमरीकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने ईरान की ओर उंगली उठा दी थी। उन्होंने हमले की सूचना मिलने के तुरंत बाद ही कह दिया था कि इस हमले में ईरान की भूमिका है। साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि ईरान का हूती विद्रोहियों के साथ अच्छे संपर्क हैं, इस वजह से इसमें शक नहीं कि ईरान ने उन्हें लंबी दूरी तक वार करने की क्षमता वाले हथियार हासिल करने में मदद की है, चाहे वह यूएवी (हमलावर ड्रोन) हो या मिसाइलें। 2018 में संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों के एक पैनल की रिपोर्ट ने हूती के कसिफ-1 हमलावर ड्रोन और ईरान के अबाबील-टी में समानता की ओर इशारा किया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि ईरान ने यमन के खिलाफ हूती विद्रोहियों को कई तरह के हथियार मुहैया कराए हैं।
लंबी दूरी तक वार करने के तरीके
कासिफ-1 और अबाबील-टी की रेंज 100-150 किलोमीटर से ज्यादा नहीं है जबकि खुराइस ऑइल फील्ड यमनी सीमा से 770 किलोमीटर दूर है। यदि ये मान भी लिया जाए कि यह हमला ड्रोन से हुआ है तो यह बिल्कुल अलग डिजाइन, क्षमता और शक्ति वाला ड्रोन रहा होगा। ईरान और हूती विद्रोहियों के पास भी लंबी दूरी तक वार करने के तरीके हैं लेकिन यमन संघर्ष में इसके इस्तेमाल के बहुत कम सबूत उपलब्ध हैं। यह हमला किसी तरह की क्रूज मिसाइल से भी किया गया हो सकता है जो इराक या ईरान से दागी गई हो सकती मगर इस बारे में तब तक कुछ पुख्ता नहीं कहा जा सकता है जब तक उसके बारे में सही सूचना नहीं मिल जाती है।
पहले मिल गई थी जानकारी मगर नही चेता सऊदी अरब
संयुक्त राष्ट्र के एक एक्सपर्ट पैनल को इस तरह के हमले की प्लानिंग के बारे में जनवरी माह में ही जानकारी मिल गई थी, उनकी ओर से इस बारे में सूचना देकर आगाह भी किया गया था। मगर इस सूचना को गंभीरता से नहीं लिया गया जिसके कारण हूती हमला करने में कामयाब हो गए। विद्रोहियों को 9 माह का पूरा समय तैयारी के लिए मिल गया, इस दौरान उन्होंने इतनी पुख्ता तैयारी की कि उनका हमला किसी तरह से टारगेट से दूर नहीं हुआ।
हूती विद्रोही पहले भी करते रहे ड्रोन और मिसाइलों का इस्तेमाल
हूती विद्रोही सऊदी ठिकानों को निशाना बनाने के लिए पहले भी ड्रोन और मिसाइलों का इस्तेमाल कर चुके हैं लेकिन ड्रोन हमलों को अब तक सीमित सफलता ही मिली थी मगर इस बार के हमले में जितने सटीक तरीके से लक्ष्य को निशाना बनाया गया उससे यह बिल्कुल अलग स्तर का हमला बन गया।
सऊदी अरब के हवाई सिस्टम को नहीं लगी भनक
अब इस बात को लेकर बहस की जा रही है कि ये हमला ड्रोन से किया गया या फिर किसी मिसाइल का इस्तेमाल किया। यदि इसे मिसाइल से किया गया हमला मान भी लिया जाए तो सऊदी अरब के हवाई रक्षा सिस्टम को इसकी भनक क्यों नहीं लगी? क्या जब ये हमला किया गया उस समय उपकरण काम नहीं कर रहे थे ये उन उपकरणों से भी कुछ छेड़छाड़ कर दी गई जिससे वो उनकी पकड़ में नहीं आए। उसके बाद सवाल ये उठ रहा है कि क्या ये हमला हूती विद्रोहियों के नियंत्रण वाले इलाके से किया गया या कहीं और से? क्या इराक में मौजूद ईरान समर्थकों ने इसमें मदद की या वो खुद ही इसमें शामिल रहे या फिर ईरान की इसमें सीधी भूमिका रही?
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