कोरोना वायरस ने अंतिम संस्कार और शोक जताने की परंपराएं बदलीं, प्रशासन ने लगाई पाबंदी

कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण प्रशासन द्वारा लगाई गई पाबंदियों से इजरायल और फलस्तीन में शवयात्राओं को निकालने शव दफनाने और शोक व्यक्त करने के तौर तरीके बदल गये हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Thu, 02 Apr 2020 06:33 PM (IST) Updated:Thu, 02 Apr 2020 06:33 PM (IST)
कोरोना वायरस ने अंतिम संस्कार और शोक जताने की परंपराएं बदलीं, प्रशासन ने लगाई पाबंदी
कोरोना वायरस ने अंतिम संस्कार और शोक जताने की परंपराएं बदलीं, प्रशासन ने लगाई पाबंदी

येरुसलम, रायटर। कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण प्रशासन द्वारा लगाई गई पाबंदियों से इजरायल और फलस्तीन में शवयात्राओं को निकालने, शव दफनाने और शोक व्यक्त करने के तौर तरीके बदल गये हैं। इस पवित्र भूमि के यहूदियों के साथ मुसलमानों को भी अपनी परंपराएं बदलनी पड़ी हैं।

इजरायल में मुसलमानों और यहूदियों ने शव दफनाने के तौर-तरीके बदले

इजरायल में यहूदियों के शवों को एक खास वस्त्र (स्माक) पहनाकर और कफन में लपेट कर बिना काफिन के दफनाने की परंपरा है। लेकिन कोरोना वायरस की चपेट में आकर दम तोड़ने वालों के शवों को अच्छी तरह धोया जाता है। इस काम को सुरक्षा उपकरण पहनकर बहुत सावधानी से किया जा रहा है। इसके बाद शव को मोटी प्लास्टिक में लपेट दिया जाता है। दफनाने से पहले शव को एक और प्लास्टिक शीट में लपेटा जाता है।

मुसलमानों में शव को नहलाने और कफन में लपेटने से रोका गया 

यहूदियों का अंतिम संस्कार कराने वाली इजरायल की मुख्य संस्था चेवरा कदीशा के लिए काम करने वाले याकोव कु‌र्त्ज ने कहा कि हम अभी ठीक से अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर सकते। हम नहीं जानते कि हमें इन हालात में कितने लोगों का अंतिम संस्कार करना होगा। हम लोग बहुत डरे हुए हैं। जेरुसलम और फलस्तीन क्षेत्र के मुख्य मुफ्ती मुहम्मद हुसैन ने कहा कि मुस्लिमों के शव दफनाने के लिए हम लोगों को सरकार ने नये आदेश दिये हैं। नये नियम कायदे के अनुसार हम लोगों को शव को नहलाने और कफन में लपेटने से रोक दिया गया है। अब हमें बाडीबैग समेत शव को दफनाना होगा। इजरायल में कोरोना से अब तक 29 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि फलस्तीन एक की जान गई है।

संवेदना जताने के लिए घर आने से मना कर रहे शोकाकुल परिवार

नये नियम के अनुसार किसी खुले स्थान पर शव दफनाने के समय 20 से ज्यादा लोग जमा नहीं हो सकते। शारीरिक दूरी का नियम लागू होने से लोग एक-दूसरे के गले भी नहीं लग पा रहे।

इन नियमों के कारण यहूदियों में प्रचलित सात दिन की शोक अवधि शिवा की परंपरा पर गहरा असर पड़ा है। मरने वाले को दफनाने के बाद अगले सात दिन तक लोग और रिश्तेदार उसके घर आकर शोक जताते हैं। खाने-पीने की चीजें लाते हैं और मरने वाले को याद करते हैं। लेकिन अब लोग इससे परहेज कर रहे हैं। उधर, गाजा पट्टी और पश्चिमी किनारे के शोकाकुल परिवारों ने सोशल मीडिया के जरिये लोगों की संवेदनाओं को स्वीकार करना शुरू कर दिया है।

मस्जिदों में शवों को लाने पर पाबंदी  

इहाब नसरलदीन के भाई की पिछले सप्ताह कैंसर से मौत हुई। वे शव को अल अक्सा मस्जिद ले जाना चाहते थे लेकिन पाबंदी के कारण उन्हें शव सीधे कब्रिस्तान लाना पड़ा। हमने शव वहीं दफना दिया और लोगों की संवेदनाएं वहीं स्वीकार कर लीं। हमने लोगों से कहा कि न हाथ मिलाएं, न गले लगें और न ही चूमें। यह बहुत ही पीड़ादायक है लेकिन इस दौर में किया ही क्या जा सकता है। उन्होंने बताया कि मैंने अपने मित्रों व रिश्तेदारों से यह भी कहा है कि वे तीन दिन की पारंपरिक शोक व्यक्त करने की अवधि में घर आने की जहमत न उठायें। उन्होंने कहा कि हम इस बात का अफसोस हैं कि हम लोग अल अक्सा में जनाजे की दुआ नहीं पढ़ सके लेकिन इन हालात में और कोई चारा नहीं था।

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