ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका में बढ़ती जा रही खाई, जानें क्या है वजहें

चीन से फैले कोरोना वायरस के बाद अब ताइवान की वजह से चीन और अमेरिका के बीच रिश्तों की खाई गहरी होती जा रही है। चीन ताइवान को अपना हिस्सा बता रहा है। अमेरिका ताइवान की मदद करने के लिए खड़ा हुआ है।

By Vinay TiwariEdited By: Publish:Sat, 26 Sep 2020 05:04 PM (IST) Updated:Sat, 26 Sep 2020 05:21 PM (IST)
ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका में बढ़ती जा रही खाई, जानें क्या है वजहें
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग। (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क/एजेंसियां। चीन के साथ कुछ प्रमुख देशों के रिश्ते लगातार खराब होते जा रहे हैं। ऐसे में चीन अब इस फिराक में लगा हुआ है कि वो किसी देश पर हमला करके या किसी तरह की कूटनीति का इस्तेमाल करके कुछ ऐसा करें जिससे बाकी देशों पर वो अपना दबाव बनाने में कामयाब हो सके।

कोरोना वायरस का फैलाव होने के बाद से दुनिया के बाकी देश चीन के खिलाफ खड़े हुए हैं। उसके बाद टिक टॉक और कई अन्य एप बंद किए जाने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किरकिरी हो रही है। ऐसे में उसे काफी मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं।

भारत के साथ इन दिनों चीन का सीमा विवाद चल रहा है तो अमेरिका के साथ भी रिश्ते उलझते जा रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तो चीन से इतना नाराज है कि वो कई बार सार्वजनिक मंच पर कोरोना वायरस को चीनी वायरस तक कह चुके हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग को ये बुरा भी लग चुका है, वो आपत्ति दर्ज करा चुके हैं मगर ट्रंप की नाराजगी इससे कहीं ऊपर है। 

भारत से टकराने के बाद हालात होते जा रहे खराब 

भारत से टक्कर लेने के बाद चीन को कई प्लेटफॉर्म पर नुकसान पहुंच चुका है। इस बीच कई अन्य देश भी चीन के खिलाफ खड़े हो चुके हैं। इन्हीं में से एक देश ताइवान भी है। चीन का ताइवान को उसके खिलाफ बोलना या खड़े होना किसी तरह से पसंद नहीं है इस वजह से वो ताइवान पर जबरदस्त दबाव बना रहा है। ताइवान के विदेश मंत्रालय के अनुसार चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लड़ाकू विमानों ने पिछले नौ दिनों में 46 बार ताइवान की हवाई सीमा का उल्लंघन किया।

ताइवान ने इसे उकसाने और धमकाने की कार्रवाई बताते हुए दोनों देशों के बीच की सीमा निर्धारित करने वाली मीडियन लाइन का सम्मान करने की मांग की है। इस पर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस रेखा की वैधता पर ही सवाल उठा दिए और कहा कि ऐसी किसी रेखा का कोई महत्व नहीं है क्योंकि ताइवान चीन का अभिन्न हिस्सा है। चीन की हरकतों को देखते हुए अमेरिकी वायुसेना ताइवान के समर्थन में तैनात है। उधर ताइवान ने 14 से 18 सितंबर के बीच हान कुआंग युद्ध अभ्यास को जारी रखा और पिछले दिनों जमीन से हवा में मार करने वाली और एंटी शिप मिसाइलों के परीक्षण भी किया। 

कोविड-19 से बचाव के उठाए बेहतर कदम 

ताइवान इन दिनों दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। दरअसल जब चीन में कोरोना वायरस का प्रसार हो रहा था, उस दौरान ताइवान ने अपने देश में इसके प्रसार को रोकने के लिए बड़े कदम उठा लिए थे। सूझबूझ और स्वास्थ्य संबंधी नियमों का पालन करते हुए ताइवान ने अपने नागरिकों को कोविड-19 महामारी से बचाने में काफी काम किया। इसी के साथ मास्क और सेनिटाइजर के मामले में दूसरे देशों की मदद भी की। जब इस बात की चर्चा हैती और नाउरु जैसे देशों ने संयुक्त राष्ट्र में की तो चीन बौखला गया। इन दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने ताइवान को एक संप्रभु राष्ट्र का दर्जा देने की मांग भी संयुक्त राष्ट्र से की।

ताइवान को लेकर काफी पहले से है चीन अमेरिका में अनबन 

एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका में हमेशा से ही अनबन रही है। जहां चीन ताइवान को अपना एक हिस्सा मानता है और उसे पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना में मिलाने की इच्छा रखता है तो वहीं अमेरिका ताइवान की स्वतंत्रता को बचाए रखना चाहता है। ताइवान रिलेशंस एक्ट 1979 के तहत अमेरिका ताइवान (रिपब्लिक ऑफ चाइना) की सुरक्षा का जिम्मेदार है। ताइवान रिलेशंस एक्ट के पहले अमेरिका और ताइवान के बीच चीन-अमेरिका पारस्परिक सुरक्षा संधि अस्तित्व में थी जो मार्च 1955 से दिसंबर 1979 तक प्रभावी रही।

इस संधि के कई पहलुओं को ताइवान रिलेशंस एक्ट में भी शामिल किया गया है। पिछले कुछ सालों में चीन का ताइवान को लेकर रुख सख्त होता जा रहा है। यह स्थिति 2016 से ज्यादा तनावपूर्ण हुई है जब से साई इंग-वेन ताइवान की राष्ट्रपति बनी हैं। साई इंग-वेन के सत्ता में आने के बाद से यह नीति मुखर हो कर सामने भी आई है।

जनवरी 2020 में साई इंग-वेन के भारी बहुमत से सत्ता में आने से चीन को तो झटका लगा ही, ताइवान में भी चीन के विरोध में स्वर मुखर हुए। अपने बयानों में साई इंग-वेन ना सिर्फ ताइवान के 70 सालों की गौरवशाली लोकतांत्रिक परंपरा की प्रशंसा करती रही हैं बल्कि वह यह कहने से भी नहीं चूकी हैं कि ताइवान चीन का हिस्सा नहीं है। कुछ ही वर्ष पहले ताइवान में यह बात कहना भी विवाद का विषय बन जाया करता था।

ताइवान की बदलती नीति का ट्रंप ने कर दिया समर्थन 

अमेरिका की बदलती ताइवान नीति और इसमें रही सही कसर ताइवान को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन ने पूरी कर दी है। अमेरिका के विदेश मंत्रालय के उपसचिव कीथ क्रेच की हाल की ताइवान यात्रा वैसे तो भूतपूर्व राष्ट्रपति ली तेंग-हुई को श्रद्धांजलि देने के लिए हुई थी, लेकिन उसने चीन को और भड़का दिया। पिछले दो महीने के अंदर कीथ ताइवान की यात्रा करने वाले दूसरे अमेरिकी उच्चस्तरीय अधिकारी हैं। कीथ से पहले अमेरिकी स्वास्थ्य मंत्री एलेक्स अजार ताइवान के दौरे पर गए थे। 1979 में अमेरिका ने ताइवान से वन चाइना नीति के तहत औपचारिक राजनयिक संबंधों को खत्म कर दिया था।

ट्रंप ने चीन के साथ संबंधों में कोई ढील न देने की अपनी नीति को कायम रखा है और आगामी चुनावों के मद्देनजर इसको एजेंडे के तौर पर भुनाने की कोशिश भी कर रहे हैं. कहीं न कहीं ट्रंप की चीन संबंधी नीतियों ने डेमोक्रेट प्रत्याशी जो बाइडन पर दबाव भी बनाया है। सूत्रों की मानें तो चीन से आर्थिक डी-कपलिंग के बीच ताइवान के साथ व्यापार समझौते की बातें भी चल रही हैं। चुनाव से पहले ट्रंप अगर ऐसे किसी समझौते को अंजाम दे दें तो आश्चर्य की बात नहीं होगी।  

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