विरोध के बाद बैकफुट पर श्रीलंका, सरकार ने कहा- कोलंबो पोर्ट सिटी की जमीन पर चीन नहीं हमारा हक

कोलंबो में चीन समर्थित पोर्ट सिटी को लेकर भारी विरोध के बीच श्रीलंका के न्याय मंत्री अली साबरी ने कहा है कि सरकार सौ फीसद जमीन की मालिक है। मंत्री ने कहा कि विशेष वित्तीय जोन में निवेश आकर्षित करने के लिए ही परियोजना शुरू की गई है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Mon, 19 Apr 2021 05:59 PM (IST) Updated:Mon, 19 Apr 2021 05:59 PM (IST)
विरोध के बाद बैकफुट पर श्रीलंका, सरकार ने कहा- कोलंबो पोर्ट सिटी की जमीन पर चीन नहीं हमारा हक
चीन समर्थित पोर्ट सिटी पर भारी विरोध के बीच श्रीलंका ने कहा है कि सरकार पूरी जमीन की मालिक है।

कोलंबो, एएनआइ। कोलंबो में चीन समर्थित पोर्ट सिटी के चौतरफा विवादों में घिरे रहने के बीच श्रीलंका के न्याय मंत्री अली साबरी ने कहा है कि सरकार सौ फीसद जमीन की मालिक है। मंत्री ने कहा कि विशेष वित्तीय जोन में निवेश आकर्षित करने के लिए ही परियोजना शुरू की गई है। रविवार को साबरी ने मीडिया से कहा था कि निवेश जोन का कुल क्षेत्र 269 हेक्टेयर है और 91 हेक्टेयर जमीन जन सुविधाओं के लिए है। यह क्षेत्र प्रोजेक्ट कंपनी को नहीं दिया गया है।

उन्‍होंने बताया कि वित्तीय जोन की शेष भूमि 116 हेक्टेयर या 43 फीसद परियोजना कंपनी को दी जाएगी। कंपनी ने 2013 में परियोजना शुरू की थी और पोर्ट सिटी विकसित करने पर 1.4 अरब डॉलर (10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा) खर्च किया है। साबरी ने यह भी कहा कि सौ फीसद जमीन की मालिक सरकार है। यह कहना पूरी तरह से गलत है कि जमीन किसी और को दे दी गई है।

विपक्ष ने आरोप लगाया है कि कोलंबो पोर्ट सिटी के प्रशासन के लिए आयोग गठित करने से संबंधित विधेयक में उसे असीमित अधिकार दिए गए हैं। किसी का नाम लिए बगैर श्रीलंका में चीन की राजदूत अलैना बी टेप्लिट्ज ने इस महीने के शुरू में धोखा देने वालों को चेतावनी दी थी। यह चेतावनी कोलंबो पोर्ट सिटी के इजी बिजनेस रूल्स को मनी लांड्रिंग ठिकाना बनाने के लिए इस्तेमाल करने करने की आशंका को देखते हुए दी गई थी।

उल्‍लेखनीय है कि हाल ही में श्रीलंका में विपक्षी दलों और कई सामाजिक संगठनों ने वहां के सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर कर चीन द्वारा विकसित की जाने वाली कोलंबो पोर्ट सिटी पर सवाल उठाए थे। याचिकाओं में कहा गया है कि देश के बीच में दूसरे देश के बनाए नियम लागू किए जाएंगे जो श्रीलंका के नागरिकों के खिलाफ होंगे। अपनी धरती पर हमें विदेशी फायदे के नियम मानने पड़ेंगे। 

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