ओली के बिगड़े बोल, भारतीय क्षेत्रों को फिर अपना बताया, कहा- इन्‍हें वापस लेंगे, सीमा विवाद पर 14 जनवरी को बातचीत संभव

घरेलू सियासत में बुरी तरह फंसे नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) ने अपने देश के लोगों का ध्यान भटकाने के लिए फिर भारत के क्षेत्रों को अपना बताया है। ओली ने नेशनल असेंबली को संबोधित करते हुए अजीब दलीलें दी है। पढ़ें यह रिपोर्ट...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Sun, 10 Jan 2021 10:27 PM (IST) Updated:Mon, 11 Jan 2021 07:09 AM (IST)
ओली के बिगड़े बोल, भारतीय क्षेत्रों को फिर अपना बताया, कहा- इन्‍हें वापस लेंगे, सीमा विवाद पर 14 जनवरी को बातचीत संभव
केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) ने फिर भारत के क्षेत्रों को अपना बताया है।

काठमांडू, आइएएनएस। घरेलू सियासत में बुरी तरह फंसे नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) ने अपने देश के लोगों का ध्यान भटकाने के लिए फिर भारत के क्षेत्रों को अपना बताया है। ओली (KP Sharma Oli) ने कहा कि वह भारत से कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख क्षेत्र को वापस लेकर रहेंगे। उनका (KP Sharma Oli) यह बयान इसलिए भी अहम है कि सीमा विवाद को लेकर दोनों देशों के बीच विदेश मंत्री स्तर की बातचीत होने वाली है।

भारत को उकसाने की कोशिश

चीन के चंगुल में फंसे नेपाली प्रधानमंत्री ने भारत को उकसाने की यह कोशिश नेशनल असेंबली में अपने संबोधन में की। ओली ने कहा कि सीमा विवाद पर बातचीत करने के लिए भारत जा रहे विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली के एजेंडे में इन तीनों क्षेत्रों को वापस लेना प्रमुख है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर के निमंत्रण पर ग्यावली विदेश मंत्री स्तर की छठवें नेपाल-भारत संयुक्त आयोग की बैठक में भाग लेने के लिए 14 जनवरी को भारत आ रहे हैं।

सुगौली समझौते का दिया हवाला

ओली ने कहा कि सुगौली समझौते के मुताबिक कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख महाकाली नदी के पूरब में स्थित और नेपाल का हिस्सा हैं। हम भारत के साथ कूटनीतिक वार्ता करेंगे और हमारे विदेश मंत्री भी भारत जा रहे हैं। आज, हमें हमारी जमीन वापस लेने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद जब भारतीय सैन्य बलों ने इन क्षेत्रों में अपना ठिकाना बनाना शुरू किया था तो नेपाली शासकों ने इन क्षेत्रों को वापस लेने की कोशिश नहीं की।

भारत से मित्रता के आधार पर हो रही बात

ओली ने कहा कि कुछ लोगों ने कहा था कि नेपाल द्वारा इन तीनों क्षेत्रों को अपने नक्शे में दिखाए जाने के बाद भारत के साथ उसके रिश्ते खराब हो जाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब भारत के साथ मित्रता के आधार पर बातचीत हो रही है। उन्होंने कहा कि नेपाल अपनी जमीन हर हाल में वापस लेकर रहेगा।

कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी हो चुकी है दो फाड़

दरअसल, नेपाल की सत्तारूढ़ कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी बेहद नाटकीय घटनाक्रम से गुजर रही है। पार्टी दो फाड़ में टूट गई है। इसमें से एक का नेतृत्व प्रधानमंत्री ओली तो दूसरे का नेतृत्व प्रचंड कर रहे हैं। पार्टी अब दो साल पहले की तरह दो अलग राजनीतिक दलों के रूप में काम कर रही है। बता दें कि दोनों राजनीतिक दलों का विलय विगत 2018 में हुआ था। नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी (यूएमएल) के अध्‍यक्ष ओली जबकि नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी (माओ) के प्रमुख पुष्प कमल दहल प्रचंड थे।

ध्‍यान भटकाने के लिए छेड़ा मसला

प्रधानमंत्री ओली ने संसद को भंग करके आगामी 30 अप्रैल और दस मई को मध्यावधि चुनाव की घोषणा की थी जिसे राष्‍ट्रपति ने मंजूर कर लिया था। मामले में याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में है। नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले नेपाल सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। नेपाल में आवाम भी सरकार के कामकाज से खुश नहीं है। लोग राजशाही की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। माना जा रहा है कि जनता का ध्‍यान भटकाने के लिए ओली ने एकबार फिर सीमा विवाद का मसला छेड़ दिया है। 

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