आलस आपकी आदत नहीं, दिमाग में है; डॉक्टरों ने लगायी इस बात पर मुहर
कनाडा स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के शोधकर्ताओं के अध्ययन में आया सामने, हम भले ही चाहें सक्रिय होना, लेकिन मस्तिष्क बनता है रुकावट
टोरंटो, प्रेट्र। अगर आलस के कारण आपका भी जिम जाने का मन नहीं होता है तो इसके लिए अपने मस्तिष्क को जिम्मेदार ठहराइए। यह कहना है वैज्ञानिकों का, जिन्होंने पता लगाया है कि आलस कुदरती रूप से हमारे मस्तिष्क में होता है, जिसके कारण हम झूठ बोलकर सोफे पर पड़े रहना चाहते हैं। समाज दशकों से लोगों को शारीरिक गतिविधियां बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रहा है, लेकिन आंकड़े देखें तो हमें हमारे असल इरादों का पता चलेगा। समय के साथ हम ज्यादा निष्क्रिय होते जा रहे हैं।
कनाडा स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया (यूबीसी) के शोधकर्ताओं ने व्यायाम के प्रति इस विरोधाभास को समझने के लिए मस्तिष्क से जुड़ाव का अध्ययन किया। यूबीसी में पोस्टडॉक्टोरल शोधकर्ता और इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक मैथ्यू बोइजगोंटिर कहते हैं, मनुष्यों के अस्तित्व के लिए ऊर्जा की रक्षा करना जरूरी है क्योंकि इसकी वजह से ही हम भोजन और आवास की तलाश अधिक प्रभावशाली ढंग से कर सकते हैं। जन नीतियां हमें अपनी सक्रियता बढ़ाने के लिए प्रेरित करती हैं, लेकिन इन नीतियों की विफलता का कारण हमारा मस्तिष्क हो सकता है, जो समय के साथ-साथ शारीरिक निष्क्रियता की महामारी को बढ़ाता जा रहा है।
यह आया सामने
शोधकर्ताओं ने पाया कि आमतौर पर प्रतिभागियों ने तस्वीरों पर प्रतिक्रिया देने में तेजी दिखाई, लेकिन जब उनके मस्तिष्क की गतिविधियों का अध्ययन किया गया तो सामने आया कि शारीरिक निष्क्रियता वाली तस्वीर पर प्रतिक्रिया देने में मस्तिष्क को ज्यादा मेहनत करनी पड़ी।
मस्तिष्क आकर्षित करता है निष्क्रिय व्यवहार
बोइजगोंटिर कहते हैं, हम पूर्व अध्ययनों से पता लगा चुके हैं कि लोग निष्क्रिय व्यवहार से दूर जाने और सक्रिय व्यवहार को अपनाने के लिए तेजी दिखाते हैं। अब हमारे अध्ययन में सामने आया है कि मस्तिष्क ऐसा करने से बाधा पहुंचाता है। हमारे अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि हमारा मस्तिष्क ही स्वभाविक तौर पर निष्क्रिय व्यवहार को आकर्षित करता है।
इस तरह किया अध्ययन
न्यूरोसाइकोलॉजिआ नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक, आलस का मस्तिष्क से संबंध जानने के लिए शोधकर्ताओं ने एक खास प्रयोग किया। इसके लिए शोधकर्ताओं ने कुछ युवा वयस्कों को शामिल किया। उन्हें कंप्यूटर के सामने बैठने को कहा गया और एक ऑन-स्क्रीन अवतार का नियंत्रण उन्हें दिया गया। इसके बाद छोटी तस्वीरें स्क्रीन पर फ्लैश की जाती थीं। एक बार में एक ही तस्वीर को दिखाया जाता था।
ये तस्वीरें शारीरिक सक्रियता या शारीरिक निष्क्रियता को दर्शाती थीं। प्रतिभागियों को जितना जल्दी हो सके इन तस्वीरों को देखकर प्रतिक्रिया देनी होती थी। उन्हें अवतार को शारीरिक सक्रियता दिखाने वाली तस्वीरों की दिशा में चलाना होता था, जबकि स्क्रीन पर शारीरिक निष्क्रियता वाली तस्वीर आने पर अवतार को उससे दूर ले जाना होता था। इस प्रयोग के दौरान शोधकर्ताओं ने उनके मस्तिष्क की गतिविधियों को रिकॉर्ड किया।
जोखिम में जीवन
अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक अपर्याप्त शारीरिक गतिविधियों की वजह से पूरी दुनिया में 1.4 अरब लोगों की जिंदगी जोखिम में है। दुनिया में हर तीन में से एक महिला और हर चार में से एक पुरुष इस समस्या प्रवृत्ति से ग्रसित है। दुखद यह है कि तमाम गंभीर रोगों में साल-दर साल सुधार दिखा है, लेकिन यह रोग लाइलाज होता जा रहा है। 2001 से इस प्रवृत्ति में कोई सुधार नहीं दिखा है। भारत में 25 फीसद पुरुष और 50 फीसद महिलाएं इसी श्रेणी में आते हैं।
तो क्या तकनीक का है असर
इंसान की जिंदगी और दिनचर्या में तकनीक का इस हद तक दखल पड़ चुका है कि सुबह उठने से लेकर सोने तक हर काम बिना मेहनत और आसानी से किया जा सकता है। ऐसे में लोग ज्यादा सुस्त हो चुके हैं। इंटरनेट क्रांति के बाद औद्योगिक क्षेत्रों में कंप्यूटर के बढ़ते इस्तेमाल ने इंसान के दिमाग को भी काफी हद तक निष्क्रिय कर दिया है।
अमीर लोग ज्यादा निष्क्रिय
गरीब देशों की तुलना में ब्रिटेन और अमेरिका जैसे संपन्न देशों 37 फीसद लोग पर्याप्त शारीरिक गतिविधि नहीं करते हैं। मध्य आय वर्ग वाले देश के लिए यह आंकड़ा 26 फीसद और निम्न आय वर्ग के लिए यह 16 फीसद है। यानी गरीब देशों में सुविधा विहीन लोग अपनी जीविका के लिए ज्यादा काम करते हैं।