Coronavirus : शोधकर्ताओं ने बताया, क्यों ज्यादा घातक है कोरोना वायरस

विज्ञानी सार्स कोरोना वायरस-1 और सार्स कोरोना वायरस-2 के स्पाइक प्रोटीन के सक्रिय और निष्क्रिय होने के बारे में तो जानते हैं लेकिन शोधकर्ताओं की यह टीम इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रही है कि स्थिति में बदलाव किस प्रकार से होता है।

By Neel RajputEdited By: Publish:Sun, 28 Feb 2021 07:42 PM (IST) Updated:Sun, 28 Feb 2021 07:42 PM (IST)
Coronavirus : शोधकर्ताओं ने बताया, क्यों ज्यादा घातक है कोरोना वायरस
वायरस को अधिक समय तक निष्क्रिय रखने का तरीका ढूंढ़कर हो सकता है कारगर इलाज

न्यूयॉर्क, आइएएनएस। कोरोना संक्रमण 2003 में भी फैला था। लेकिन उस वक्त इतना हाहाकार नहीं मचा। जबकि सार्स कोविड-2 से 2019 में फैली कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को परेशान कर दिया। इसलिए शोधकर्ताओं की यह स्वाभाविक जिज्ञासा हुई कि इस बार आखिरकार ऐसा क्या रहा कि कोरोना वायरस का संक्रमण इतना ज्यादा घातक हो गया। इस दिशा में हुए शोध से यह बात सामने आई है कि कोविड-19 वायरस में पाए जाने वाले प्रोटीन के 'सक्रिय' और 'निष्क्रिय' होने की गतिशीलता में अलग किस्म की सुस्ती रही। मॉलिक्यूल के इसी बदलाव की गति के कारण इस बार कोरोना के कारक रहे सार्स कोविड-2 पिछली बार के सार्स कोविड-1 से ज्यादा संक्रामक हो गया।

इस विषय पर शोध करने वालों में भारतीय मूल के विज्ञानी विवेक गोविंद कुमार भी शामिल रहे। अरकंसास यूनिवर्सिटी के एक शोधकर्ता महमूद मोरादी बताते हैं, 'सार्स कोविड-1 और सार्स कोविड-2 समय के साथ पूरी तरह बदल गया है। सार्स कोविड-1 ज्यादा तेजी से सक्रिय और निष्क्रिय होता था, जिससे उसे मानव कोशिका से चिपकने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता था। जबकि सार्स कोविड-2 ज्यादा स्थिर और हमला करने की स्थिति में होता है।'

शोधकर्ता बताते हैं कि कोरोना संक्रमण के पहले चरण में वायरस मानव कोशिका में प्रवेश करता है। इसके लिए सार्स कोरोना वायरस के बाहरी हिस्से में स्पाइक प्रोटीन की स्थिति में बदलाव जरूरी होता है। विज्ञानी सार्स कोरोना वायरस-1 और सार्स कोरोना वायरस-2 के स्पाइक प्रोटीन के सक्रिय और निष्क्रिय होने के बारे में तो जानते हैं, लेकिन शोधकर्ताओं की यह टीम इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रही है कि स्थिति में बदलाव किस प्रकार से होता है। 65वें वार्षिक बायोफिजिकल सोसायटी की बैठक में पेश अध्ययन निष्कर्ष में टीम ने मॉलिक्यूलर अनुकरण के बारे में विवरण पेश किए। मोरादी का कहना है, 'इस शोध का एक अहम पहलू यह है कि हम इलाज का एक ऐसा तरीका विकसित कर सकते हैं, जिससे कि वायरस के निष्कि्रय स्थिति को अधिक समय तक स्थिर रख सकते हैं। इस तरीके से हम सार्स कोरोना वायरस-2 को निष्कि्रय कर सकते हैं। लेकिन यह रणनीति अभी तक अमल में नहीं लायी जा सकी है।'

उनका कहना है कि वायरस में इस तरह के बदलाव को जानकर सार्स कोरोना-2 के म्यूटेशन का भी अंदाजा लगा सकते हैं कि बदले रूप वाला वायरस का संक्रमण और उसके प्रसार की क्या स्थिति हो सकती है।

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