अफगान शांति प्रक्रिया के तहत अमेरिकी दूत अफगानिस्तान, कतर की यात्रा पर, भारत की नजर
विदेश विभाग एक बयान में खलीलजाद और उनकी टीम अन्य क्षेत्रीय राजधानियों का भी दौरा करेगी जो एक ऐसे लक्ष्य के हिस्से के रूप में काम करेगी जिसका उद्देश्य अफगान संघर्ष में न्यायसंगत और टिकाऊ राजनीतिक समझौता और स्थायी और व्यापक संघर्ष विराम की दिशा में काम करना है।
वाशिंगटन, रायटर। अफगान सरकार के अधिकारियों और तालिबान के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा फिर से शुरू करने के लिए अफगान शांति प्रक्रिया के अमेरिकी दूत जालमे खलीलजाद अफगानिस्तान और कतर की यात्रा करेंगे। खलीलजाद अमेरिका के विशेष दूत हैं और पहले भी अफगान नेताओं से शांति वार्ता पर चर्चा करने के लिए यात्रा कर चुके हैं।
विदेश विभाग ने एक बयान में कहा, 'खलीलजाद और उनकी टीम अन्य क्षेत्रीय राजधानियों का भी दौरा करेगी, जो एक ऐसे लक्ष्य के हिस्से के रूप में काम करेगी जिसका उद्देश्य अफगान संघर्ष में न्यायसंगत और टिकाऊ राजनीतिक समझौता और स्थायी और व्यापक संघर्ष विराम की दिशा में काम करना है।' हालांकि, तारीखों या अन्य विवरण प्रदान नहीं किया गया है।
भारत की नजर
वहीं, भारत, जिसने अफगानिस्तान में विकासात्मक और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को पूरा किया है, अमेरिका के कदम को करीब से देख रहा है। जानकार सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान पूरी तरह से तालिबान का समर्थन कर रहा है और उन्हें काबुल में स्थापित करना चाहता है, यह युद्धग्रस्त देश में लोकतांत्रिक और विकास संस्थानों के निर्माण में भारत के प्रयासों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। भारत की स्थिति स्पष्ट है कि काबुल में किसी भी सरकार का गठन अफगान के नेतृत्व वाला और अफगान के स्वामित्व वाला होना चाहिए।
अमेरिकी-ब्रोकेड शांति वार्ता सितंबर में शुरू हुई, लेकिन प्रगति धीमी पड़ गई और हिंसा बढ़ गई है। यहां चर्चा यह है कि क्या अंतर्राष्ट्रीय बल को मई तक मूल रूप से देश से बाहर निकाल लिया जाएगा? राष्ट्रपति जो बाइडन का प्रशासन तालिबान के साथ एक फरवरी 2020 सौदे की समीक्षा कर रहा है, जिसमें यह निर्धारित करने की उम्मीद है कि यह अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध से शेष 2,500 अमेरिकी सैनिकों को वापस लेने की समय सीमा को पूरा करेगा या नहीं।
अमेरिकी और यूरोपीय अधिकारियों ने कहा है कि तालिबान ने समझौते को पूरा नहीं किया है। बता दें कि तालिबान ने 2001 में अमेरिका के नेतृत्व वाली सेना के हाथों में आने के बाद अफगानिस्तान में इस्लामवादी शासन का फिर से विरोध करने की मांग की। हालांकि, आरोपों से इनकार किया।
बता दें कि इसी महीने अमेरिकी कांग्रेस को दी गई द्विदलीय रिपोर्ट में कहा गया कि अमेरिका को अफगानिस्तान से सैनिकों को हटाने के लिए निर्धारित डेडलाइन 1 मई की तिथि आगे बढ़ा लेनी चाहिए। अफगानिस्तान के स्टडी ग्रुप ने अपने अंतिम रिपोर्ट में कहा कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा निर्धारित डेडलाइन पर काम पूरा करने के क्रम में नेगेटिव प्रतिक्रियाओं को झेलना होगा। रिपोर्ट में कहा गया, 'गैरजिम्मेदाराना रवैये के साथ अमेरिकी सेना की वापसी से अफगानिस्तान में फिर से संघर्ष शुरू हो जाएगा। साथ ही इससे आतंकी गुटों का फिर से गठन होगा जो हमारे देश को खतरे में डाल सकता है।'