मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की समस्‍या से हर वक्‍त घिरी रहती हैं हर तीन में से दो माताएं, इलाज है संभव

एक रिसर्च में पता चला है कि हर तीन में से दो मां मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य से हर वक्‍त घिरी रहती है। हालांकि अब इसका इलाज किया जा सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Wed, 26 Feb 2020 11:09 AM (IST) Updated:Wed, 26 Feb 2020 11:59 PM (IST)
मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की समस्‍या से हर वक्‍त घिरी रहती हैं हर तीन में से दो माताएं, इलाज है संभव
मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की समस्‍या से हर वक्‍त घिरी रहती हैं हर तीन में से दो माताएं, इलाज है संभव

टोरंटो [आईएएनएस]। एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि तीन में से दो माताओं को एक मानसिक स्वास्थ्य समस्या हमेशा घेरे रहती है। विज्ञान पत्रिका एडोलेसंट हेल्थ नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया है कि अन्य के मुकाबले किशोरावस्था में ही मां बनने वाले महिलाएं मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां सबसे ज्यादा झेलती हैं। लगभग 40 फीसद माताओं को डिप्रेशन (अवसाद) चिंता और हाइपरएक्टिविटी (अतिसक्रियता) जैसा कोई एक मानसिक विकार जरूर होता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि ये विकार 21 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं के मुकाबले कम उम्र की महिलाओं को चार गुना ज्यादा होते हैं। कनाडा की एमसी मास्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता रेयान वान लिशआउट ने कहा, ‘अब हम समझते हैं कि माताएं केवल प्रसव के बाद अवसाद जैसी समस्याओं से जूझती हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता।’ उन्होंने कहा कि इस अध्ययन के निष्कर्षों का उपयोग बेहतर स्क्र्रींनग प्रक्रिया विकसित करने के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का समय पर चरणबद्ध तरीके से इलाज के लिए भी किया जा सकता है।

इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने वर्ष 2012 से 2015 के बीच 450 ऐसी माताओं के स्वास्थ की निगरानी की जो अपनी पहली डिलीवरी के समय 21 साल की थी और इससे प्राप्त डाटा की तुलना उन्होंने ऐसी महिलाओं से की जो 20 साल से पहले मां बन चुकी थी। शोधकर्ताओं ने कहा कि शायद विश्व में यह पहला अध्ययन होगा जिसमें प्रसव के बाद महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य की जांच की गई है। इस अध्ययन के प्रमुख लेखक वान लिशाउट ने कहा, ‘इस तरह के शोध के लिए ‘नैदानिक साक्षात्कार’ सबसे अच्छा मानक है। हमें खुशी है कि सैकड़ों माताओं से बात करने के लिए इस पद्धति का उपयोग किया गया है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि इस अध्ययन के लिए 2014 की ओंटेरियो चाइल्ड हेल्थ स्टडी से 15 से 17 साल की महिलाओं के मानसिक विकारों की तुलना में उनकी ऐसी हमउम्र माताओं से की गई थी जिनके बच्चे नहीं थे। अध्ययन में कहा गया है कि युवा माताओं में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान करना और उनका उपचार करना बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि उनका स्वास्थ्य उनके बच्चों को भी प्रभावित करता है। कई बार यह समस्याएं इतनी गंभीर हो जाती हैं कि बच्चों को आजीवन इसका नुकसान झेलना पड़ता है।

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