अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को सजा-ए-मौत पर रोक लगाने से किया इनकार, ट्रंप को झटका

Top US court blocks resumption of federal executions अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट (US Supreme Court) ने अपराधियों के लिए सजा-ए-मौत पर लगाई रोक को हटाने से इनकार कर दिया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Sat, 07 Dec 2019 11:34 AM (IST) Updated:Sat, 07 Dec 2019 04:12 PM (IST)
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को सजा-ए-मौत पर रोक लगाने से किया इनकार, ट्रंप को झटका
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को सजा-ए-मौत पर रोक लगाने से किया इनकार, ट्रंप को झटका

वाशिंगटन, एएफपी। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा पर लगाई रोक हटाने से इन्कार कर दिया। शीर्ष अदालत के इस फैसले से मौत की सजा जल्द से जल्द बहाल करने की डोनाल्ड ट्रंप सरकार के न्याय विभाग की योजना पर पानी फिर गया है। बता दें कि अमेरिकी सरकार ने वर्ष 1988 में मौत की सजा बहाल की थी और तब से लेकर अब तक संघीय सरकार द्वारा केवल तीन लोगों को ही मृत्युदंड की सजा दी गई है। आखिरी बार 16 साल पहले मौत की सजा दी गई थी। 

दरअसल, न्याय विभाग संघीय अपराधों के लिए मौत की सजा बहाल करना चाहता है और अगला मृत्युदंड सोमवार को दिया जाना था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अभी इस पर लगी रोक हटाने से इन्कार कर दिया। श्वेत वर्चस्व को मानने वाले डेनियल लुईस को आठ साल की बच्ची समेत एक ही परिवार के तीन लोगों की हत्या करने के 1996 के मामले में मौत की सजा दी जानी थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार के अपने आदेश में कहा है सजा के निष्पादन पर रोक की अपील को निचली अदालतों द्वारा सुना जाना चाहिए। 

कोर्ट ने कहा कि फिलहाल याचिका खारिज कर दी गई है, लेकिन अगर निचली अदालतों में 60 दिनों के अंदर इस पर कोई फैसला नहीं होता है तो सुप्रीम कोर्ट में याचिका दोबारा दाखिल की जा सकती है। अटार्नी जनरल बिल बार ने जुलाई में घोषणा की थी कि इंडियाना की जेल में बंद हत्या के पांच दोषियों को मौत की सजा देने के लिए एक नया घातक इंजेक्शन प्रोटोकॉल को अपनाया जाएगा। 

बता दें कि इस तरह के इंजेक्शन में पेंटोबार्बिटल नामक घातक दवा का प्रयोग किया जाता है। इन सजाओं का निष्पादन नौ दिसंबर से 15 जनवरी 2020 के बीच किया जाना था। दोषियों के वकीलों ने प्रोटोकॉल की वैधानिकता को चुनौती दी तो निचली अदालतों ने इसके क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। इसी के खिलाफ अमेरिकी न्याय विभाग की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी।

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