टीबी रोगियों में क्‍यों होती है इम्युनिटी की कमी, वैज्ञानिकों ने तलाशा इस सवाल का जवाब

वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जीन का पता लगाया है जो टीबी के रोगियों के इम्‍यून सिस्‍टम को कमजोर करने में सहायक साबित होता है। मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस जीन की खोज की है। शोधकर्ताओं ने इन्फ्लैममासोम को सीमित होते हुए देखा है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Tue, 03 Aug 2021 12:45 PM (IST) Updated:Tue, 03 Aug 2021 12:45 PM (IST)
टीबी रोगियों में क्‍यों होती है इम्युनिटी की कमी, वैज्ञानिकों ने तलाशा इस सवाल का जवाब
टीबी रोगियों की इम्‍यूनिटी को प्रभावित करता है एक खास जीन

मैरीलैंड (एएनआइ) : ट्यूबरक्‍लोसिस (टीबी) रोगियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने से इलाज में और भी जटिलताएं पैदा होती हैं। इसलिए रोगियों में प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) बनाए रखने के लिए तरह-तरह के जतन किए जाते रहे हैं। लेकिन अब इम्युनिटी कम होने की एक गुत्थी सुलझी है। मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसे जीन की खोज की है, जो टीबी रोगियों में इम्यून सिग्नलिंग सिस्टम को बंद करने या बाधित करने में अहम भूमिका निभाता है। यह शोध हाल ही में पीएलओएस पैथोजेंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

इसमें बताया गया है कि टीबी पैदा करने वाला माइकोबैक्टीरियम टुबक्र्यलोसिस बैक्टीरिया (एमटीबी) जब इंसान को संक्रमित करता तो शरीर का इम्यून रिस्पांस की स्थिति बड़ी नाजुक हो जाती है कि रोग किस प्रकार से बढ़ेगा? मतलब यह कि इम्यून रिस्पांस शरीर को बैक्टीरिया से लड़ने के लिए तैयार करेगा या फिर संक्रमण को बढ़ने देगा।

यूनिवर्सिटी आफ मैरीलैंड के शोधकर्ताओं ने इसकी गुत्थी सुलझाई है कि एमटीबी किस प्रकार से संक्रमित व्यक्ति के इम्यून सेल की प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है।

खासतौर पर उन्होंने बैक्टीरिया में एक ऐसे जीन की खोज की है, जो संक्रमित व्यक्तियों के इम्यून डिफेंस को दबा देता है या उसे कम कर देता है, जिससे संक्रमण तेज हो सकता है। इस नए निष्कर्ष से टीबी के इलाज या इसकी रोकथाम के लिए जीन आधारित प्रभावी तरीके खोजे जा सकते हैं।

यूनिवर्सिटी आफ मैरीलैंड में सेल बायोलाजी एंड मालीक्यूलर जीनेटिक्स के प्रोफेसर तथा अध्ययन के सह लेखक वोल्कर ब्रिकेन ने बताया कि इस शोध से बैक्टीरियल प्रोटीन के इंसानी कोशिका से अंतरक्रिया के मालीक्यूलर मैकेनिज्म का पता लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि हम अपनी खोज से इसलिए उत्साहित हैं कि यह पहली बार पता चला है कि बैक्टीरिया और इंसानी सेल के सिग्नलिंग सिस्टम के बीच कोई संबंध है, जो पैथोजेंस (रोगाणुओं) के प्रति प्रतिरोध के लिए अहम है। शोध की मुख्य लेखक शिवांगी रस्तोगी तथा ब्रिकेन और उनकी टीम ने अपनी इस खोज के क्रम में एक खास प्रकार के व्हाइट ब्लड सेल, जिसे मैक्रोफेग कहते हैं, को एमटीबी से और नान-विरुलेंट (कमजोर) बैक्टीरिया से संक्रमित करा कर उसकी प्रतिक्रिया का अवलोकन किया।

शोधकर्ताओं ने पाया कि एक जटिल प्रोटीन, जिसे इन्फ्लैममासोम कहते हैं, एमटीबी से संक्रमित कोशिकाओं में नाटकीय ढंग से सीमित हो गया, जबकि नान-विरुलेंट बैक्टीरिया से संक्रमित कोशिकाओं में ऐसा नहीं पाया गया। इन्फ्लैममासोम कोशिका के अंदरूनी हिस्से में रोगाणुओं की तलाश कर सेल को इम्यून रिस्पांस शुरू करने का सिग्नल देता है। ब्रिकेन ने बताया कि यह देखना बड़ा ही अप्रत्याशित था कि एमटीबी इन्फ्लैममासोम को बाधित कर सकता है। इतना ही नहीं, संक्रमण इन्फ्लैममासोम को थोड़ा-बहुत सक्रिय भी करता है, जिससे किसी ने इस बात पर ध्यान ही दिया कि एमटीबी सिग्नलिंग प्रक्रिया को बाधित भी कर सकता है।

इसके बाद, शोध टीम ने यह जानने की कोशिश की कि क्या एमटीबी का कोई विशिष्ट जीन इन्फ्लैममासोम को दबाने के लिए जिम्मेदार है? इसके लिए एमटीबी को एक नान-विरुलेंट माइकोबैक्टीरियम प्रजाति में प्रवेश कराया गया और इस म्यूटेंट से नए मैक्रोफैग को संक्रमित कराया गया। इसमें पाया गया कि नान-विरुलेंट बैक्टीरिया, जिसमें एमटीबी के जीन -पीकेएनएफ - की मौजूदगी थी, उसमें इन्फ्लैममासोम रिस्पांस सीमित रहा।

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