मेटाबोलिक सिंड्रोम से दूसरे स्ट्रोक का खतरा, नए अध्ययन में आया सामने
शोधकर्ता ने बताया कि हमारे अध्ययन के निष्कर्षों से मेटाबोलिक सिंड्रोम से ग्रस्त लोगों और उनके स्वास्थ्य का देखभाल करने वालों को उन पर नजर रखने में मदद मिलेगी और वे बार-बार के स्ट्रोक के जोखिम के मद्देनजर उसकी रोकथाम के उपाय सुनिश्चित कर सकेंगे।
वाशिंगटन, एएनआइ। मोटापे के साथ शरीर में कई बदलाव होते हैं और उसमें शामिल घटक एकसाथ मिलकर जटिल स्थितियां पैदा करते हैं। इसलिए उसके खतरे और बचने के उपायों को लेकर शोध होते रहते हैं। हाल के एक अध्ययन में बताया गया है कि कमर मोटी हो या पेट की चर्बी ज्यादा हो और उसके साथ हाई ब्लड प्रेशर और शुगर हो तो मेटाबोलिक सिंड्रोम की स्थिति बनती है, जिससे दोबारा स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है, जो जानलेवा भी साबित होता है।
यह शोध अध्ययन अमेरिकन एकेडमी आफ न्यूरोलाजी के मेडिकल जर्नल न्यूरोलाजी के आनलाइन संस्करण में प्रकाशित हुआ है। मेटाबोलिक सिंड्रोम उस स्थिति को कहते हैं, जब पेट की चर्बी या कमर की मोटाई बढ़ने के साथ हाई ब्लड प्रेशर, सामान्य से ज्यादा ट्राइग्लेसराइड (रक्त में पाई जाने वाली एक विशिष्ट प्रकार की वसा), हाई ब्लड शुगर तथा कम हाई-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एचडीएल) कोलेस्ट्राल या गुड कोलेस्ट्राल जैसे जोखिम वाले कारकों में से दो या उससे अधिक एकसाथ हो जाएं।
अध्ययन के लेखक फोर्थ मिलिट्री मेडिकल यूनिवर्सिटी, शियांग (चीन) के शोधकर्ता तियान ली ने बताया कि अब तक के अध्ययन के परिणामों पर विरोधाभासी बातें होती रही हैं कि क्या मेटाबोलिक सिंड्रोम, जो पहले स्ट्रोक का जोखिम बढ़ाने वाला माना जाता है, से दूसरे स्ट्रोक और मौत का भी खतरा बढ़ता है। इसलिए हम उपलब्ध सभी शोधों का विश्लेषण करना चाहते थे।
उन्होंने बताया कि हमारे अध्ययन के निष्कर्षों से मेटाबोलिक सिंड्रोम से ग्रस्त लोगों और उनके स्वास्थ्य का देखभाल करने वालों को उन पर नजर रखने में मदद मिलेगी और वे बार-बार के स्ट्रोक के जोखिम के मद्देनजर उसकी रोकथाम के उपाय सुनिश्चित कर सकेंगे।
ली ने बताया कि स्ट्रोक के दोबारा होने के जोखिम के आकलन के लिए किए गए वृहत विश्लेषण में छह अध्ययनों के परिणामों को शामिल किया गया। उन अध्ययनों में करीब 11 हजार लोगों को प्रतिभागी बनाया गया था और उन पर पांच साल तक नजर रखी गई। उक्त अवधि में 1,250 लोगों को दोबारा स्ट्रोक हुआ।
विश्लेषण के निष्कर्ष-
विश्लेषण में पाया गया कि मेटाबोलिक सिंड्रोम से पीड़ित लोगों में सामान्य लोगों की तुलना में दोबारा स्ट्रोक का खतरा 46 फीसद ज्यादा था।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि मेटाबोलिक सिंड्रोम का प्रत्येक घटक गुड कोलेस्ट्राल का स्तर कम होने के साथ दो या ज्यादा घटकों के साथ दूसरे स्ट्रोक का जोखिम बढ़ाने में अलग-अलग भूमिका निभाते हैं। लेकिन पेट की ज्यादा चर्बी, हाई ब्लड शुगर और हाई ब्लड प्रेशर अलग-अलग अपने आप में दोबारा स्ट्रोक के जोखिम को नहीं बढ़ाता है।
मौत के जोखिम के कारणों को जानने के लिए किए गए विश्लेषण में आठ अध्ययनों को शामिल किया गया, जिनमें 51,613 लोग प्रतिभागी थे और पांच साल तक उनका फालोअप किया गया। उस दौरान 4,210 लोगों की मौत हो गई।
पाया गया कि मेटाबोलिक सिंड्रोम से पीड़ित लोगों की मौत का जोखिम सामान्य लोगों की तुलना में 27 फीसद ज्यादा रहा। लेकिन सिंड्रोम का कोई भी एकल घटक स्वतंत्र रूप से मौत का जोखिम बढ़ाने से जुड़ा नहीं था।
ली ने कहा कि इस परिणाम से जाहिर है कि मेटाबोलिक सिंड्रोम से पीड़ित लोगों को मौत के खतरे से बचने के लिए जोखिम के कारकों को दवाई, भोजन, व्यायाम तथा जीवनशैली में सुधार लाकर संतुलन कायम करें।
हालांकि ली ने स्पष्ट किया है कि चूंकि अध्ययन अवलोकनों पर आधारित थे, इसलिए यह मुक्कमल तौर पर साबित नहीं किया जा सकता कि सिर्फ मेटाबोलिक सिंड्रोम दोबारा स्ट्रोक या मौत के कारण रहे, लेकिन इतना तो जरूर पता चला कि उसका दोबारा स्ट्रोक से किसी न किसी रूप में संबंध है।