जानिए- आपके बच्‍चे के जीवन में कितनी होती है लंच टाइम की अहमियत, रिसर्च में हुई कुछ अनूठी सिफारिश

आम तौर पर बच्‍चे पौष्टिक भोजन से अधिक फास्‍ट फूड को देते हैं। लेकिन लंच टाइम में यही बच्‍चे पौष्टिक खाने को अहमियत देते हैं। एक शोध में कहा गया है कि यदि इस लंच टाइम को बढ़ाया जाए तो ये काफी अच्‍छा होगा।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 02:22 PM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 02:22 PM (IST)
जानिए- आपके बच्‍चे के जीवन में कितनी होती है लंच टाइम की अहमियत, रिसर्च में हुई कुछ अनूठी सिफारिश
लंच टाइम का समय बढ़ाने से होगा फायदा

वाशिंगटन (एएनआइ)। यदि आपका बच्चा फल-सब्जी खाने में आनाकानी करता है और इस वजह से उसे सही पोषण नहीं मिल पाता है तो एक यह तरकीब अपनाई जा सकती है। एक अध्ययन में पाया गया है कि सब्जी और फल बच्चों की पहली पसंद नहीं होते हैं। उन्हें चटपटी चीजें ज्यादा अच्छी लगती हैं। लेकिन स्कूलों में यदि लंच टाइम बढ़ा दिया जाए तो बच्चे ज्यादा फल-सब्जी खाने लगते हैं। इससे उनका पोषण स्तर सुधर सकता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनोइस के शोधकर्ताओं द्वारा इस संबंध में किए गए अध्ययन का यह निष्कर्ष जेएएमए नेटवर्क ओपन जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसके अनुसार, यदि हम अपने बच्चों का पोषण और स्वास्थ्य में सुधार लाना चाहते हैं तो यह लक्ष्य स्कूल में लंच टाइम बढ़ाकर हासिल किया जा सकता है।यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनोइस में डिपार्टमेंट ऑफ फूड साइंस एंड ह्यूमन न्यूट्रिशन की असिस्टेंट प्रोफेसर मेलिसा पफ्लुघ प्रेस्कॉट का कहना है कि बच्चों को स्कूल में खाने के लिए महज 10 मिनट से भी कम समय मिल पाता है।

भले ही इसके लिए ज्यादा समय तय किए गए हों, लेकिन खाना लेने के लिए उन्हें कतार में लगना पड़ता है या फिर उन तक खाना पहुंचने में देर होती है। इतना ही, खाने के बाद उनमें कुछ अतिरिक्त गतिविधियों के लिए भी उत्सुकता होती है। इसलिए बच्चे खाने में कम ही समय दे पाते हैं?प्रेस्कॉट और अध्ययन के सह लेखकों ने 10 से 20 मिनट के लंच टाइम के दौरान फल और सब्जी की खपत की तुलना की है।उन्होंने पाया कि कम लंच टाइम में बच्चों ने कम मात्रा में फल और सब्जी खाई, जबकि पेय पदार्थ (ब्रेवरेज) और भोजन की शुरुआत के आइटमों की खपत में कोई अंतर नहीं था।

इसका मतलब है कि यदि आप बच्चों को खाने के लिए पर्याप्त समय दें तो वे ज्यादा फल और सब्जी खा सकते हैं।उनके मुताबिक, इसका सबसे ज्यादा असर कम आय वर्ग वाले परिवारों के बच्चों पर देखने को मिलता है। क्योंकि वे अपनी आर्थिक स्थिति के कारण घर से खाना नहीं लाते हैं और उसके लिए कतारों में खड़े होने में उनका काफी समय बीत जाता है।इन बच्चों पर किया अध्ययनप्रेस्कॉट और उनकी टीम ने प्राथमिक और मिडिल स्कूल के बच्चों पर समर कैंप में यह अध्ययन किया।

शोधकर्ताओं ने स्कूल कैफेटेरिया को लंच एरिया बनाया, जहां बच्चे कतारबद्ध होकर अपने पसंदीदा आइटम को चुनते थे। ये खाने उन्हें नेशनल स्कूल लंच प्रोग्राम गाइडलाइन के मुताबिक उपलब्ध कराए जा रहे थे।प्रेस्कॉट ने बताया कि कम लंच टाइम और ज्यादा लंच टाइम में एक जैसे खाने के सामान रखे गए ताकि खाने के आइटम के आधार पर बच्चों की रुचि के अंतर को टाला जा सके।

ऐसे किया अध्ययन

शोधकर्ताओं ने खाने के सामान के ट्रे की फोटो ली, जिससे यह जानना का प्रयास किया गया कि बच्चों में किस आइटम के प्रति ज्यादा रुचि थी। उसके बाद इस बात पर नजर रखी गई कि कौन बच्चा कितने समय तक खाने पर बैठता है और क्या खाता है। इस दौरान उनके व्यवहार पर भी निगरानी रखी गई, जिसमें आपस में खाने का सामान की शेयरिंग, उनकी आपसी बातचीत और फोन के इस्तेमाल को शामिल किया गया। खाने के बाद बच्चों से स्वाद और अन्य बातों की जानकारी ली गई। इसके आधार पर उनके खाने की मात्रा का आकलन किया गया। पाया गया कि बच्चों ने सब्जी की तुलना में फल ज्यादा खाए और यह लंबे लंच टाइम में और भी अधिक था।

ये निकाला निष्कर्ष

प्रेस्कॉट ने कहा कि उनके विचार में नए पोषण मानकों में सबसे जरूरी बात यह होनी चाहिए कि सब्जियों की वेरायटी बढ़ाई जाए ताकि कम आय वर्ग परिवार के बच्चों को वे चीजें मिल सकें, जो उन्हें घर पर नहीं मिल पाती हैं। लेकिन यदि हमने बच्चों को लंच टाइम कम दिया तो उन्हें पोषक चीजें खाने का मौका नहीं मिलेगा और पोषण का हमारा लक्ष्य विफल हो जाएगा। इसलिए शोधकर्ताओं का मानना है कि बच्चों के लंच टाइम में कम से कम 20 मिनट की बढ़ोतरी की जाए।

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