तीन करोड़ साल पहले हुई थी नील नदी की उत्पत्ति, जानें- और क्या है इसकी खासियत

नील नदी अफ्रीका की सबसे बड़ी विक्टोरिया झील से निकलकर विस्तृत सहारा मरुस्थल के पूर्वी भाग को पार करती हुई उत्तर में भूमध्यसागर में उतरती है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Wed, 13 Nov 2019 10:34 PM (IST) Updated:Wed, 13 Nov 2019 10:39 PM (IST)
तीन करोड़ साल पहले हुई थी नील नदी की उत्पत्ति, जानें- और क्या है इसकी खासियत
तीन करोड़ साल पहले हुई थी नील नदी की उत्पत्ति, जानें- और क्या है इसकी खासियत

ह्यूस्टन, प्रेट्र। विश्व की सबसे लंबी नदी 'नील' की उत्पत्ति के संबंध में वैज्ञानिकों ने एक नया दावा किया है। उनका मानना है कि यह नदी पिछले अनुमानों के मुकाबले छह गुना पुरानी हो सकती है। एक नए अध्ययन के अनुसार, इसकी उत्पत्ति कम से कम 30 मिलियन यानी तीन करोड़ वर्ष पहले हुई थी।

नील नदी अफ्रीका की सबसे बड़ी विक्टोरिया झील से निकलकर विस्तृत सहारा मरुस्थल के पूर्वी भाग को पार करती हुई उत्तर में भूमध्यसागर में उतरती है। कर्क रेखा के आस-पास के वर्षा वनों से होते हुए यह नदी युगांडा, इथोपिया, सूडान और मिस्त्र से होकर बहते हुए काफी लंबी घाटी बनाती है।

नेचर जियो साइंस नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पृथ्वी से निकले मैग्मा से बनी चट्टानों के बीच से प्रवाहित होने वाली इस नदी की भौगोलिक और भौतिक विशेषताओं के बीच संबंधों का आकलन किया।

इस अध्ययन के शोधकर्ताओं में अमेरिका के ऑस्टिन स्थित टेक्सास विश्वविद्यालय (यूटी) के शोधार्थी भी शामिल थे। इस दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि नील नदी की स्थलाकृति की प्रकृति दक्षिण से उत्तर की ओर झुकी हुई है। इसका एक कारण मैग्मा से बनी चट्टानें भी हैं क्योंकि इसकी ढलान दक्षिण से उत्तर की ओर है। अध्ययन में बताया गया है कि यदि भूगर्भिक परिवर्तन नहीं होते और मैग्मा की चट्टानों का निर्माण नहीं हुआ होता शायद आज नील नदी पश्चिम की ओर मुड़ गई होती।

नदी की स्थालाकृति के लिए मेंटल है जिम्मेदार

शोधकर्ताओं ने कहा, 'पृथ्वी की स्थलाकृति में बदलाव के लिए पृथ्वी के आंतरिक हिस्से में ठोस रूप में पाया जाने वाला मेंटल भी महत्वपूर्ण है।' भूगर्भिक प्रक्रिया के कारण कई बार यह मैग्मा के रूप में पृथ्वी की सतही हिस्से में आ जाता है और ज्यादा मात्रा में लावा निकलने पर चट्टानों का निर्माण भी होता है। इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने इथियोपियाई हाइलैंड्स में प्राचीन ज्वालामुखी चट्टानों का अध्ययन करके नील नदी के भूवैज्ञानिक इतिहास का पता लगाया और नील डेल्टा के नीचे दफन नदी तलछट के नमूनों के साथ इसके जुड़ाव का अध्ययन किया।

तलछट और चट्टानों के नमूनों में एकरूपता

निष्कषरें के आधार पर शोधकर्ताओं ने कहा कि इथियोपियाई हाइलैंड्स की ऊंचाई लाखों सालों से एक जैसी है। इसकी वजह हाइलैंड्स के नीचे की मेंटल की चट्टानें हैं। यूटी के शोधकर्ता और इस अध्ययन के सह-लेखक थोरस्टेन बेकर ने कहा, 'हम जानते हैं कि इथियोपियाई पठार की उच्च स्थलाकृति का गठन लगभग तीन करोड़ साल पहले हुआ था।' जब वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर सिमुलेशन के जरिये चार करोड़ साल पहले हुई टेक्टॉनिक गतिविधियों को दोबारा संचालित किया तो पाया कि भारी मात्रा में लावा निकल कर इथोपियाई पठारों की ओर बढ़ने लगा था। शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन के दौरान इन ज्वालामुखी चट्टानों और नदी के तलछट में से कई तत्व हैं जो यह बताते हैं कि इसकी उत्पत्ति तीन करोड़ साल पहले हुई थी।

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