समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण से संकट में छोटी मछलियां, खत्म हो सकती है पूरी आबादी
प्लास्टिक प्रदूषण से उत्तर-मध्य प्रशांत महासागर के कई क्षेत्रों में पाई जाने वाली लार्वा मछली यानी छोटी मछलियों की प्रजातियां संकट में हैं। इससे उनकी आबादी खतरे में है।
ह्यूस्टन, पीटीआइ। समुद्र में बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण के खतरों के बारे में आगाह करते हुए शोधकर्ताओं ने कहा कि प्लास्टिक प्रदूषण से उत्तर-मध्य प्रशांत महासागर के कई क्षेत्रों में पाई जाने वाली लार्वा मछली यानी छोटी मछलियों की प्रजातियां संकट में हैं। इससे उनकी नर्सरी (बच्चों के आवास) प्रभावित हो रही है। एक अध्ययन में बताया गया है कि यहां पुराने अनुमानों के मुकाबले आठ गुना ज्यादा प्लास्टिक भर गया है।
अमेरिका की एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी (एएसयू) के शोधकर्ताओं ने पहली बार अध्ययन के दौरान पाया कि कोरल रीफ में रहने वाली लार्वा मछलियां पैदा होने के बाद शुरुआती दिनों से ही प्लास्टिक खाना शुरू कर देती हैं। पीएनएएस नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि पूर्व में हुए अध्ययनों से पता चला था कि बड़ी मछलियां प्लास्टिक खाती हैं। लेकिन लार्वा मछलियां भी शुरुआती दिनों से ही प्लास्टिक खाना शुरू करती हैं, तो इससे उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो हो सकता है कि उनकी पूरी आबादी ही खत्म हो जाए।
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने अत्याधुनिक रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग किया, ताकि इस बात का पता चल सके कि प्लास्टिक को खाने से इन मछलियों के जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने हवाई द्वीप के सबसे दक्षिणी द्वीप पर सर्वेक्षण कराया और इस द्वीप के तटों के आसपास रहने वाली मछलियों से नमूने एकत्र किए।
एएसयू के ग्रेग असनेर ने कहा, ‘इन तटीय इलाकों में कोरल रीफ भी पर्याप्त मात्र में पाए जाते हैं और इन्हीं कोरल की चट्टानों के बीच लार्वा मछली अपने अंडे देती है। यहां उनकी पूरी आबादी के लिए पर्याप्त मात्र में आहार भी मिल जाता है। लेकिन अब इसके कुछ इलाकों में प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ गया है और मछलियां प्लास्टिक खाने लगी हैं, जो चिंता का विषय है।’
शोधकर्ताओं ने कहा, फिसलन भरे ये सतही इलाके लार्वा मछलियों की नर्सरी के लिए सबसे ज्यादा मुफीद हैं क्योंकि यहां खाने के लिए भारी मात्र में प्लैंगटन (प्लवक) मिल जाते हैं। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने कहा कि यहां ग्रेट पैसिफिक पैच में तो लार्वा मछलियों के घनत्व के मुकाबले सात गुना ज्यादा प्लास्टिक भर गया है, जो हाल ही में हुए एक अध्ययन के मुकाबले आठ गुना ज्यादा है। शोधकर्ताओं ने बताया कि यदि हम इस जगह की तुलना यहां से 91.44 मीटर की दूरी के पानी से करें तो पाएंगे कि चिकनी परतों के मुकाबले 126 गुना ज्यादा प्लास्टिक यहां भरा पड़ा है।