जलवायु परिवर्तन से घट रहा पोषण, जहरीली हो रही हर चीज, पानी गर्म होने से बिगड़ेंगे हालात, वैज्ञानिकों ने किया आगाह
जलवायु परिवर्तन का असर जल तंत्र पर भी हो रहा है खाद्य श्रृंखला में पोषण का स्तर कम हो रहा है। दूसरी ओर विषाक्तता बढ़ती जा रही है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि पानी के गर्म होने से पोलीअनसैचुरेटेड एसिड की मात्रा में कमी आ रही है।
वाशिंगटन, एएनआइ। जलवायु परिवर्तन का दुष्परिणाम दिनों-दिनों जीवन को दूभर करता जा रहा है। इसे नियंत्रित रखने के तमाम दावे बौने साबित हो रहे हैं। दूसरी ओर दुनियाभर में इस मसले पर हो रहे शोध के परिणाम चिंता बढ़ाने वाले हैं। इसी क्रम में स्वीडिश यूनिवर्सिटी आफ एग्रीकल्चरल साइंसेस तथा डार्टमाउथ कालेज के शोधकर्ताओं ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन का असर जल तंत्र पर भी हो रहा है, खाद्य श्रृंखला में पोषण का स्तर कम हो रहा है। दूसरी ओर विषाक्तता बढ़ती जा रही है।
तापमान बढ़ने से जलस्रोत
यह निष्कर्ष साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस शोध में पानी का तापमान बढ़ने (वार्मिग) और इस कारण कार्बनिक तत्वों की घुलनशीलता बढ़ने से उसका रंग बदलने (ब्राउनिंग) के असर का अध्ययन किया गया है। डार्कमाउथ कालेज के शोधार्थी तथा इस अध्ययन के मुख्य लेखक पियानपियन वू ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान बढ़ने तथा जमीन से पानी में कार्बनिक तत्वों की आपूर्ति पर असर होने की संभावना व्यक्त की गई है।
पानी के बदलते रंग का अध्ययन
पियानपियन वू का कहना है कि हमने पहली बार बढ़ते तापमान के कारण पानी के बदलते रंग के बारे में अध्ययन किया है। इसके लिए मेसोकोस्म सिस्टम का प्रयोग किया गया है। यह एक प्रायोगिक प्रणाली है, जो नियंत्रित परिस्थितियों में प्राकृतिक वातावरण की जांच करती है। मेसोकोस्म सिस्टम क्षेत्र सर्वेक्षण और अत्यधिक नियंत्रित प्रयोगशाला प्रयोगों के बीच एक कड़ी प्रदान करता है।
मिथाइल मरकरी के घातक असर पर शोध
इसका उपयोग जलवायु परिवर्तन के कारण पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव से जुड़े सवालों के जवाब तलाशने के लिए किया जाता है। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान की वजह से कार्बनिक तत्वों की अधिक घुलनशीलता का खाद्य श्रृंखला में पोषक तत्व पोलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड तथा विषाक्त तत्व मिथाइल मरकरी पर होने वाले असर का अध्ययन किया गया है।
प्रयोग का निष्कर्ष
शोधकर्ताओं ने पाया कि तापमान और घुलशीलता बढ़ने से पानी के गर्म व बदले रंग की स्थिति में खाद्य श्रृंखला आधार स्तर पर पानी से मिथाइल मरकरी का ट्रांसफर ज्यादा होता है। इसके साथ ही फाइटोप्लैंकटान में आवश्यक पोषक तत्व पोलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड की सांद्रता कम होती है। फाइटोप्लैंकटान स्थलीय पौधे की तरह होते हैं, जिसमें क्लोरोफिल होता है और उसे जीवित रहने के लिए सूर्य के प्रकाश की जरूरत होती है।
न्यूरोटाक्सिन का खतरा
पोलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड की लंबी श्रृंखला ओमेगा-3 तथा ओमेगा-6 बनाते हैं जो जंतुओं और पादपों में प्रतिरक्षी तंत्र को नियंत्रित रखते हुए विकास और जीवन के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं। बता दें कि मिथाइल मरकरी - मरकरी (पारा) का वह रूप है, जो जीवित प्राणियों द्वारा आसानी से अवशोषित हो जाते हैं और न्यूरोटाक्सिन (तंत्रिकाओं के लिए जहर) का काम करते हैं।
पैदा हो रही चिंताजनक स्थिति
वू ने कहा कि प्रयोग के दौरान पानी की गर्मी और रंग में बदलाव (ब्राउनिंग) के असर से पोलीअनसैचुरेटेड एसिड की मात्रा में कमी होना काफी चिंताजनक है। फाइटोप्लैंकटान जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में पोलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड का मुख्य स्त्रोत है। अध्ययन के मुताबिक, फाइटोप्लैंकटान के कम होने से मछली और अन्य वन्यजीव तथा मनुष्य के लिए मिथाइल मरकरी के उपभोग का खतरा बढ़ जाता है।
...ताकि असर का किया जा सकेे आकलन
स्वीडिश यूनिवर्सिटी आफ एग्रीकल्चरल साइंसेज के प्रोफेसर केविन बिशप के मुताबिक इस अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण खाद्य श्रृंखला आधार स्तर (जलीय खाद्य) पर कमजोर होता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि चूंकि यह अध्ययन पूर्ण रूप से नियंत्रित मेसोकोस्म वातावरण में हुआ है, इसलिए इसके परिणामों पर भरोसा किया जा सकता है। अध्ययन में 24 ऊष्मारोधी प्लास्टिक सिलेंडरों का प्रयोग किया गया ताकि वार्मिग और ब्राउनिंग के विभिन्न स्तरों के असर का आकलन किया जा सके।