मां की डायबिटीज से नवजात में हो सकता है जन्म दोष, एक नए अध्ययन में यह बात आई सामने

डायबिटीज पीड़ित महिलाओं से पैदा होने वाले 3 से 4 लाख नवजात में दिमाग या रीढ़ की हड्डी में जन्मजात विकृति (न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट) विकसित हो जाती है। इससे गर्भपात या विकलांगता जैसे असर भी देखने को मिलते हैं।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Publish:Sun, 19 Sep 2021 08:11 PM (IST) Updated:Sun, 19 Sep 2021 08:11 PM (IST)
मां की डायबिटीज से नवजात में हो सकता है जन्म दोष, एक नए अध्ययन में यह बात आई सामने
दुनिया में छह करोड़ से ज्यादा महिलाएं डायबिटीज से पीड़ित हैं

वाशिंगटन, एएनआइ। डायबिटीज से पीड़ित मां के पैदा होने वाले बच्चे पर उसकी बीमारी का असर आ सकता है। यहां तक कि बच्चे को जन्म दोष भी हो सकता है। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है। अध्ययन के निष्कर्ष साइंस एडवांस पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि महिलाओं में डायबिटीज की समस्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। दुनिया में छह करोड़ से ज्यादा महिलाएं डायबिटीज से पीड़ित हैं। अकेले अमेरिका में इनकी संख्या तीस लाख है।

डायबिटीज पीड़ित महिलाओं से पैदा होने वाले 3 से 4 लाख नवजात में दिमाग या रीढ़ की हड्डी में जन्मजात विकृति (न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट) विकसित हो जाती है। इससे गर्भपात या विकलांगता जैसे असर भी देखने को मिलते हैं।

यूनिवर्सिटी आफ मैरीलैंड स्कूल आफ मेडिसिन में हुए इस अध्ययन में महिलाओं के भ्रूण का अध्ययन किया गया। अध्ययनकर्ता डीन रीस ने बताया कि डायबिटीज से पीड़ित महिलाओं में पांच गुना ज्यादा जन्म दोष वाले बच्चे पैदा होने की आशंका रहती है। इसलिये यह अब जरूरी हो गया है कि डायबिटीज से पीडि़त माताओं में शुरूआत से ही स्वस्थ जन्म देने के तरीकों को विकसित करें।

बच्चों में जन्म दोष के साथ पैदा होने में डायबिटीज के साथ ही खराब जीवन शैली और लापरवाही भी जिम्मेदार होती है। इसको लेकर भी सावधानी की पर्याप्त आवश्यकता है। 

खानपान पर ध्यान रखकर नियंत्रित किया जा सकता है डायबिटीज

दुनिया में तेजी से फैल रही टाइप 2 डायबिटीज के बारे में एक नया अध्ययन सामने आया है। इस बीमारी को लेकर शोध करने वाली टीम ने जानकारी दी है कि आहार विशेषज्ञों की देखरेख में खानपान पर ध्यान रखकर डायबिटीज को पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है। यह शोध यूनिवर्सिटी आफ ब्रिटिश कोलंबिया और टीसाइड यूनिवर्सिटी ने किया और नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित है। शोध करने वाली टीम ने 12 सप्ताह तक आहार विशेषज्ञों की देखरेख में अपने परिणामों को तैयार किया है।

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