मंगल पर बसने की तैयारी कर रहे इंसान को वहां भी लगेगा 'झटका', नासा ने किया खुलासा
नासा की कैलिफोर्निया स्थित जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (जेपीएल) के वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर पहली बार सतह के कंपन की गतिविधि को रिकॉर्ड किया है।
नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। धरती से बाहर भी एक धरती हो, जहां आने वाले वक्त में हम इंसान बस सकें... इसी ब्रह्म वाक्य को सच साबित करने के लिए वैज्ञानिक वर्षों से मेहनत कर रहे हैं। कभी चंद्रमा पर तो कभी मंगल पर भविष्य में इंसानी बस्तियां बसाने की बातें लंबे वक्त से चल रही हैं। आने वाले वक्त में अगर इंसान मंगल ग्रह पर जाकर बस भी जाता है तो वहां भी उसे भूकंप की त्रासदि से मुक्ति मिलने वाली नहीं है। यानि धरती पर जिस तरह से भूगर्भीय घटनाओं के कारण भूकंप विनाश की कहानी लिख देता है वैसा ही कुछ मंगल ग्रह पर भी होता है। यह बात हम नहीं नासा कह रहा है।
धरती और चंद्रमा की तरह मंगल की सतह भी डोलती है। अंतर सिर्फ इतना है कि धरती और चंद्रमा की इस कंपकपी को हम लोग वर्षों से जानते हैं और उसके बारे में बहुत कुछ पड़ताल कर चुके हैं। मंगल ग्रह पर इस घटना की जानकारी पहली बार दुनिया के सामने आई है। नासा ने मई 2018 में मंगल ग्रह पर सीस्मिक (सतह के कंपन संबंधी) गतिविधियों के अध्ययन के लिए इनसाइट नामक रोबोटिक प्रोब भेजा था। मंगल ग्रह पर उतरने के पांच महीने बाद इस प्रोब ने इस आशय की जानकारी दी है। पुख्ता पड़ताल के बाद अब ये जानकारी दुनिया से साझा की गई है।
ऐसे पता चला
नासा की कैलिफोर्निया स्थित जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (जेपीएल) के वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर पहली बार सतह के कंपन की गतिविधि को रिकॉर्ड किया है। इसे मार्सक्वेक कहा जा रहा है। यह किसी दूसरे ग्रह पर रिकॉर्ड किया गया पहला सीस्मिलॉजिकल ट्रेमर (सतह का कंपन) है।
ऐतिहासिक दिन
बीते छह अप्रैल को मंगल की जमीन पर उतरने के 128 दिन इनसाइट प्रोब पूरे कर रहा था। इसी दिन इसमें खास तौर पर कंपन संबंधी गतिविधियों को मापने के लिए लगाए गए उपकरणों में हलचल हुई तो कैलिफोर्निया में जेपीएल के वैज्ञानिकों के चेहरे खिल उठे। ग्रह के अंदर से उठा कंपन हालांकि वैज्ञानिक इनसाइट प्रोब द्वारा भेजे आंकड़ों का अभी भी अध्ययन कर रहे हैं जिससे कंपन के सही कारणों का पता लगाया जा सके, लेकिन जिस तरह का ये कंपन हुआ है, उससे वे इस बात को खारिज नहीं कर पा रहे हैं ये मंगल की
जमीन के अंदर से हुई हलचल का परिणाम है। कई बार तेज हवाओं के चलने से भी मंगल की सतह पर हलचल दिखती है, लेकिन छह अप्रैल का कंपन उससे अलहदा है। वैज्ञानिक वहां की सतह के पृष्ठभूमि से उठने वाले शोर का भी अध्ययन कर रहे हैं। यदि हवा का प्रभाव होता तो शोर सुनाई देता। तीव्रता बहुत कम पहली बार मंगल ग्रह के कांपने की घटना भले ही रिकॉर्ड कर ली गई हो, लेकिन यह कंपन बहुत ही कमजोर था। इसकी तीव्रता बहुत कम बताई जा रही है। जेपीएल के मुताबिक इतनी तीव्रता के कंपन कैलिफोर्निया के दक्षिणी हिस्से में रोजाना ही आते हैं जो दीवारों में हल्की-फुल्की दरारें ही छोड़ पाते हैं।
चंद्रमा की तरह कंपन
वैज्ञानिकों के अनुसार मंगल की सतह के डोलने की तीव्रता चंद्रमा से मेल खाती दिखती है। अपोलो अभियानों के तहत चंद्रमा पर सीस्मोमीटर लगाए गए थे, जिन्होंने 1969 से 1977 के बीच हजारों ऐसे कंपनों को रिकॉर्ड किया। ये कंपन मंगल ग्रह पर आए कंपनों की तरह ही हैं।
बेहद हल्के कंपन
वैज्ञानिकों के अनुसार इनसाइट ने 14 मार्च, दस अप्रैल और 11 अप्रैल को भी मंगल की सतह के डोलने की सूचना दी थी लेकिन वे बहुत हल्के और संदिग्ध थे, लिहाजा उनके जमीन के अंदर की हलचल से होने वाला कंपन मानने से वैज्ञानिक इंकार कर रहे हैं।
खास है इनसाइट लैंडर
नासा ने मंगल की सतह पर कंपन होने का अध्ययन करने को पांच मई, 2018 को इस रोबोटिक प्रोब को भेजा था। 26 नवंबर को यह मंगल की सतह पर पहुंचा। वहां पहुंचने की अपनी यात्रा में इसने 48.3 करोड़ किमी की यात्रा की। इसका मुख्य उद्देश्य मंगल की सतह पर एक सीस्मोमीटर स्थापित करना था। लांच के समय इसका वजन 694 किग्रा था जो लैंडिंग के समय घटकर 358 किग्रा रह गया।