इंसुलिन प्रतिरोध से अवसाद का खतरा; निरंतर उदासी, निराशा, सुस्ती और भूख न लगने की भी होती है शिकायत

यूनिवर्सिटी आफ एम्सटर्डम मेडिकल सेंटर के मनोचिकित्सा और व्यवहार विज्ञान के प्रोफेसर रताली रसगोन ने बताया कि यदि आपमें इंसुलिन प्रतिरोध है तो सामान्य लोगों की तुलना में आपके अवसादग्रस्त होने की आशंका दोगुनी हो जाती है भले ही पहले एकबार भी आपको ऐसी शिकायत नहीं हुई हो।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 06:23 PM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 06:23 PM (IST)
इंसुलिन प्रतिरोध से अवसाद का खतरा; निरंतर उदासी, निराशा, सुस्ती और भूख न लगने की भी होती है शिकायत
मूड डिसआर्डर से पीड़ित 40 फीसद लोगों में इंसुलिन प्रतिरोध

वाशिंगटन, एएनआइ। डायबिटीज में इंसुलिन की अहम भूमिका होती है। इस बीमारी में कई अहम अंग धीरे-धीरे कमजोर या खराब होने लगते हैं। अब एक नए शोध से पता चला है कि शरीर में इंसुलिन के प्रतिरोध से गंभीर रूप से अवसाद ग्रस्त होने का खतरा दोगुना बढ़ जाता है। यह निष्कर्ष अमेरिकन जर्नल आफ साइकेट्री में प्रकाशित हुआ है।

बता दें कि इंसुलिन प्रतिरोध तब होता है, जब मांसपेशियों, फैट (वसा) और लिवर (यकृत) की कोशिकाएं इंसुलिन से उचित प्रतिक्रिया नहीं करती हैं और ऊर्जा के लिए रक्त से ग्लूकोज का उपयोग नहीं कर सकती हैं।

यूनिवर्सिटी आफ एम्सटर्डम मेडिकल सेंटर के मनोचिकित्सा और व्यवहार विज्ञान के प्रोफेसर रताली रसगोन ने बताया कि यदि आपमें इंसुलिन प्रतिरोध है तो सामान्य लोगों की तुलना में आपके अवसादग्रस्त होने की आशंका दोगुनी हो जाती है, भले ही पहले एकबार भी आपको ऐसी शिकायत नहीं हुई हो। इसके लक्षणों में निरंतर उदासी, निराशा, सुस्ती, नींद में खलल और भूख न लगना शामिल हैं। हालांकि इन विकारों में बचपन में हुए किसी हादसे, किसी स्वजन के निधन जैसे कारकों का भी योगदान हो सकता है, जिन्हें नहीं रोका जा सकता है। लेकिन इंसुलिन प्रतिरोध की रोकथाम संभव है और इसे डाइट में कमी, व्यायाम और दवाओं के जरिये हासिल किया जा सकता है। कई अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि अमूमन तीन में से एक व्यक्ति इंसुलिन प्रतिरोध से ग्रस्त हैं और इसकी उन्हें जानकारी तक नहीं है।

यह स्थिति पैनक्रियाज द्वारा रक्त प्रवाह में इंसुलिन की स्त्राव क्षमता कम होने से नहीं पैदा होती है, जैसी स्थिति डायबिटीज टाइप 1 में होती है। बल्कि यह स्थिति पूरे शरीर की कोशिकाओं में इस हार्मोन को नियंत्रित करने की सतर्कता से होती है। दरअसल, इंसुलिन का काम कोशिकाओं को यह बताना होता है कि रक्त में मौजूद ग्लूकोज (जो भोजन और लिवर द्वारा निर्मित होता है) को प्रोसेस करे।

हर कोशिका ग्लूकोज का इस्तेमाल ईंधन के रूप में करता है और हर कोशिकाओं की सतह पर रिसेप्टर होते हैं, जो इंसुलिन को बांधकर रखते हैं और इसका सिग्नल देते हैं कि ऊर्जा स्त्रोत को ग्रहण करे।

क्यों और कैसे होती है परेशानी

वास्तविकता यह है कि दुनियाभर में इंसुलिन प्रतिरोध वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसके प्रमुख कारणों में ज्यादा कैलोरी लेना, व्यायाम में कमी, तनाव और विभिन्न वजहों से पूरी नींद नहीं लेना है। इस वजह से इंसुलिन रिसेप्टर उचित तरीके से इंसुलिन से जुड़ नहीं पाता है। भले ही ब्लड शुगर उच्च स्तर पर बना रहे।

एकबार जब शुगर का स्तर खास सीमा से ऊपर हो जाता है तो टाइप 2 डायबिटीज का रोग होता है, जिसका इलाज तो हो सकता है। लेकिन यदि उचित इलाज नहीं हुआ तो हृदय और किडनी संबंधी बीमारियों के अलावा अंगों के काटने की नौबत भी आ सकती है। कुल मिलाकर स्वास्थ्य पर बड़ा दुष्प्रभाव होता है।

इंसुलिन प्रतिरोध का संबंध कई प्रकार के मानसिक विकारों से होना साबित हो चुका है। उदाहरण के तौर पर, यह भी पाया गया है कि मूड डिसआर्डर से पीड़ित 40 फीसद लोगों में इंसुलिन प्रतिरोध होता है। लेकिन यह सवाल फिलहाल अनुत्तरित है कि यह महज एक घटना से होता है या फिर इसमें कुछ भी कारक होते हैं। यह पता लगाने के लिए लंबे अध्ययन की जरूरत थी।

कैसे किया अध्ययन

शोधकर्ताओं ने द नीदरलैंड्स स्टडी आफ डिप्रेशन एंड ऐंगजाइअटी में शामिल किए गए तीन हजार लोगों का डाटा हासिल किया। यह अध्ययन अवसाद के कारण और उसके असर पर केंद्रित था। अध्ययन के लिए पंजीकृत किए जाने के वक्त उनमें अवसाद या बेचैनी की कोई शिकायत नहीं थी। प्रतिभागियों की औसत उम्र 41 वर्ष थी।

शोधकर्ताओं ने इंसुलिन प्रतिरोध के तीन संकेतकों- खाली पेट में ग्लूकोज का स्तर, कमर की माप तथा रक्त में प्रवाहित हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एचडीएल) या गुड कोलेस्ट्राल का आकलन किया। फिर नौ साल तक इस बात की पड़ताल की कि उनमें अवसाद विकसित होने का क्या जोखिम विकसित हुआ।

पाया गया कि इंसुलिन प्रतिरोध में हल्की सी वृद्धि, जिसे ट्राईग्लिसराइड और एचडीएल के अनुपात से मापा जाता है, का संबंध अवसादग्रस्तता विकार के नए मामलों की दर में 89 प्रतिशत की वृद्धि से था।

इसी तरह पेट की चर्बी में प्रति पांच सेंटीमीटर की वृद्धि से अवसाद का खतरा 11 फीसद ज्यादा रहा। जबकि फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज में 18 मिलीग्राम की वृद्धि प्रति डेसीलीटर रक्त में होने से अवसाद बढ़ने का खतरा 37 फीसद ज्यादा पाया गया।

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