COVID-19 वैक्‍सीन के इंतजार में टकटकी लगाए बैठी दुनिया, जानें- क्‍या हुई अब तक की प्रगति

कई देशों ने वैक्‍सीन विकास के साथ उत्‍पादन की प्रक्रिया को लेकर सामानांतर रूप से तैयारी की है जबकि वैक्‍सीन की खोज और उसके उत्‍पादन का अलग-अलग प्रोटोकॉल है।

By Ramesh MishraEdited By: Publish:Mon, 25 May 2020 01:31 PM (IST) Updated:Mon, 25 May 2020 01:50 PM (IST)
COVID-19 वैक्‍सीन के इंतजार में टकटकी लगाए बैठी दुनिया, जानें- क्‍या हुई अब तक की प्रगति
COVID-19 वैक्‍सीन के इंतजार में टकटकी लगाए बैठी दुनिया, जानें- क्‍या हुई अब तक की प्रगति

स‍िंगापुर, एजेंसी। पूरी दुनिया कोरोना महामारी से चिंतित है। दुनिया भर में करीब 60 लाख लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं। ऐसे में पूरी दुनिया एक वैक्‍सीन के इंतजार और तलाश में है। सिंगापुर एवं भारत समेत दुनिया के कई विकसित मुल्‍क वैक्‍सीन की खोज में जुटे हैं। कई देशों ने वैक्‍सीन विकास के साथ उत्‍पादन की प्रक्रिया को लेकर सामानांतर रूप से तैयारी की है, जबकि वैक्‍सीन की खोज और उसके उत्‍पादन का अलग-अलग प्रोटोकॉल है। आमतौर पर टीके को मंजूरी के बाद उसके निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाती है, क्योंकि विभिन्न टीकों के निर्माण के लिए आवश्यक उपकरण और सेट-अप काफी भिन्न हो सकते हैं। उधर, सांख्यिकीविदों की चिंताओं ने दुनिया की चिंता को और बढ़ा दिया है। आइए, जानते हैं कि आखिर क्‍या है सांख्यिकीविदों की चिंता और वैक्‍सीन के दुनियाभर में क्‍या हुई प्रगति। 

सांख्यिकीविदों की बड़ी चिंता से दुनिया चिंतित 

उधर, कुछ सांख्यिकीविदों ने इस चिंता को यह कहकर बढ़ा दिया कि मौजूदा समय में कोरोना वायरस के मरीजों की जो संख्‍या बताई जा रही है, वह उससे कहीं ज्‍यादा है। उनका कहना है कि यह अंतर 5 से 20 गुना से अधिक हो सकता है। सांख्यिकीविदों ने कहा कि यह अंतर इसलिए है, क्‍योंकि विभिन्‍न देशों की जांच के प्रोटोकॉट और परीक्षण में विसंगतियों एवं विविधताओं के कारण उत्‍पन्‍न हुआ है। इम्पीरियल कॉलेज लंदन द्वारा प्रकाशित एक पेपर में अनुमान लगाया गया है कि ब्रिटेन में 30 मार्च तक कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 800,000 से 37 लाख के बीच थी। उस समय आधिकारिक केस की गिनती सिर्फ 22,141 थी। इससे सही संख्‍या का अंदाजा लगाया जा सकता है। 

इबोला परीक्षण का परिणाम उत्‍साहजनक

सिंगापुर के गिलियड साइंसेज ड्रग को अंतरराष्‍ट्रीय क्लिनिकल परीक्षण के लिए हरी झंडी दी गई, जिसे शुरू में इबोला के इलाज के लिए विकसित किया गया था। इसके तहत सिंगापुर में लगभग 100 मरीजों को अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज (NIAID) में शामिल किया गया, जहां इनका अंतरराष्ट्रीय परीक्षण किया गया। इसमें विश्व स्तर पर लगभग 1,000 रोगियों ने भाग लिया। इस परीक्षण के परिणाम उत्‍साहजनक रहे। COVID-19 रोगियों के सेहत में सुधार देखा गया। इसके अलावा सिंगापुर बायोटेक फर्म टाइचन ने सिंगापुर एजेंसी फॉर साइंस, टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च के साथ साझेदारी में जापान की चुगाई फार्मास्युटिकल के साथ एक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवा पर काम कर रही है।

 1.5 अरब खुराक के उत्‍पादन की क्षमता रखता भारत का सीरम संस्‍थान

भारत की पुणे स्थित सीरम संस्‍थान ने केवल भारत की सबसे बड़ी बायोटेक कंपनी है, बल्कि यह दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। यह संस्‍थान वैक्‍सीन की सालाना 1.5 अरब खुराक के उत्‍पादन करने की क्षमता रखता है। मौजूदा समय में यह संस्‍थान कोरोना वैक्‍सीन के उत्‍पादन के लिए विभिन्‍न देशों के साथ मिलकर तीन परियोजनाओं पर काम कर रहा है। पहला, ब्रिटेन की ऑक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर यह संस्‍थान वैक्‍सीन को विकसित करने की योजना पर काम कर रहा है। दूसरा,अमेरिका स्थित बायोटेक कोडागेनिक्स के साथ वैक्‍सीन को विकसित करने को अजांम दिया जा रहा है। तीसरा, संस्‍थान की एक टीम खुद वैक्‍सीन खोजने के काम में जुटी है। 

 20 से 40 लाख खुराक बनाने की योजना फ्लाप 

सितंबर में 20 से 40 लाख खुराक बनाने की योजना बन रही थी, लेकिन जिन एक या अधिक टीकों पर काम किया जा रहा है, वह क्लिनिकल परीक्षण में सफल नहीं हो सके। इसलिए इस वैक्‍सीन के निर्माण का अनुमोदन नहीं मिल सका। आमतौर पर एक कारखाने में टीके की मंजूरी के बाद वैक्‍सीन के निर्माण के लिए तैयार किया जाता है। क्‍योंकि विभिन्‍न टीकों के निर्माण के लिए आवश्‍यक उपकरण और सेटअप काफी भिन्‍न हो सकते हैं। इस प्रक्रिया में छह महीने या उससे अधिक समय लगा सकता है। 

बिल और मेलिंडा सात अलग-अलग टीकों को विकसित करने में जुटा 

बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन 7 अलग-अलग टीकों के विकसित करने की प्रक्रिया के साथ निर्माण के लिए भी तैयारी कर ली है। वैक्‍सीन विकास और निर्माण की सामानांतर प्रक्रिया इसलिए जरूरी है कि वैक्‍सीन की क्लिनिकल परीक्षण सफल होते ही बिना विलंब किए इसका उत्‍पादन शुरू कर दिया जाए। इसका मकसद समय को बचाना है और वैक्‍सीन को आम लोगों को जल्‍द से जल्‍द सुलभ बनाना है। हालांकि, फास्ट-ट्रैक के बावजूद किसी भी वैक्‍सीन को विकसित करने में औसतन चार वर्ष का वक्‍त लग जाता है, लेकिन अमेरिकी स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारियों का दावा है कि 12 से 18 महीने में वैक्‍सीन उपयोग के लिए तैयार कर ली जाएगी। इस क्रम में बता दें कि रोटावायरस वैक्सीन को विकसित करने में 15 साल लगे।

दुनियाभर  में कोरोना वायरस के अब तक 54 लाख से अधिक मामले

गौरतलब है कि दुनियाभर में कोरोना वायरस का कहर बढ़ता जा रहा है। दुनियाभर में कोरोना वायरस के अब तक 54 लाख से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। वहीं कोरोना के कारण अब तक 3.45 लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। अमेरिका में कोरोना वायरस ने सबसे ज्यादा कहर बरपाया है। इसके बाद ब्राजील में कोरोना का कह जारी है। अमेरिका में कोरोना वायरस से अब तक 97 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।

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