कोरोना महामारी के खिलाफ कैसे साकार होगा वैश्विक टीकाकरण, जानें क्या हैं इसमें अड़चनें
दुनिया का हर देश कोरोना महामारी से अपना बचाव करने की कोशिशों में जुटा है। अभी तक के अनुसंधानों से एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि इससे बचाव का प्रभावी उपाय इसके खिलाफ टीकाकरण ही है। जानें क्या है इसमें अड़चनें...
वाशिंगटन [द न्यूयॉर्क टाइम्स]। कोरोना महामारी ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है। दुनिया का हर देश इससे अपना बचाव करने की कोशिशों में जुटा है। अभी तक के अनुसंधानों और अध्ययनों से एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि इससे बचाव का प्रभावी उपाय इसके खिलाफ टीकाकरण ही है। वैक्सीन उत्पादन के नजरिये से तो सबकुछ ठीक नजर आता है, लेकिन इसका नकारात्मक पहलू यह है कि इनमें से ज्यादातर वैक्सीन पर अमीर देशों का ही कब्जा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह कि वैश्विक टीकाकरण का लक्ष्य कैसे पूरा होगा...
युद्धस्तर पर वैक्सीन उत्पादन
सरकारों के सहयोग से दवा कंपनियां दुनिया को इस महामारी से बचाने के लिए युद्धस्तर पर वैक्सीन उत्पादन में जुटी हैं। इसके सकारात्मक नतीजे भी दिख रहे हैं और मॉडर्ना, फाइजर और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी बड़ी कंपनियां हर महीने वैक्सीन की 40 से 50 करोड़ डोज तैयार भी करनी लगी हैं। हालांकि इनमें से ज्यादातर वैक्सीन पर अमीर देशों का ही कब्जा है। अभी तक दुनिया के सबसे गरीब 29 देशों के हिस्से में मात्र 0.3 फीसद ही वैक्सीन आई है।
70 फीसद आबादी का टीकाकरण जरूरी
ड्यूक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक हर्ड इम्युनिटी यानी सामूहिक प्रतिरक्षा के लिए दुनिया की 70 फीसद आबादी का टीकाकरण जरूरी है, जिसके लिए करीब 11 अरब डोज की जरूरत है। वैक्सीन उत्पादन को लेकर कोई सटीक आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन अनुमान है कि दुनिया भर में अभी तक मात्र 1.7 अरब डोज का ही उत्पादन हो पाया है।
उत्पादन बढ़ाने के लिए पेटेंट खत्म करने की वकालत
जरूरी है कि वैक्सीन का उत्पादन बढ़े। इसके लिए पेटेंट को खत्म करने मांग की जा रही है और कच्चे माल की उपलब्धता भी सुनिश्चित करने की जरूरत बताई जा रही है। भारत और अमेरिका के कई देश इसके पक्ष में भी हैं। लेकिन जर्मनी समेत यूरोपीय संघ के कई देश इसके खिलाफ हैं। दवा बनाने वाली कंपनियों की मजबूत लॉबी भी यूरोपीय संघ के साथ है।
क्या है आसान तरीका अमेरिका समेत अमीर देश गरीब देशों को अनुदान में वैक्सीन दें यूरोपीय संघ ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन निर्यात की अनुमति दे फाइजर और मॉडर्ना जैसी कंपनियां अपनी वैक्सीन की कीमत कम करें दुनिया भर के नेता एक इकाई के रूप में काम करें और सबकी भलाई के बारे में सोचें
दवा कंपनियां उदारता दिखाएं
ऐसे में रास्ता यही बचता है कि दवा कंपनियां वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाएं और स्वेच्छा से दूसरी कंपनियों को वैक्सीन बनाने की अनुमति और अपनी तकनीक दें। अगर ऐसा होता भी है तो भी नई कंपनियों को वैक्सीन का उत्पादन शुरू करने में कम से कम छह महीन लगेंगे।