जीन एडिटिंग से दूर हो सकती है दिमाग की जेनेटिक बीमारी, चूहे पर प्रयोग सफल, इलाज की उम्‍मीद

वैज्ञानिकों ने जीन एडिटिंग (gene editing technology) के जरिये एक चूहे में डब्ल्यूएजीआर सिंड्रोम (WAGR syndrome) को ठीक करने में सफलता पाई है। इससे बीमारी के इलाज की उम्‍मीद जगी है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Thu, 12 Dec 2019 09:57 AM (IST) Updated:Thu, 12 Dec 2019 11:57 AM (IST)
जीन एडिटिंग से दूर हो सकती है दिमाग की जेनेटिक बीमारी, चूहे पर प्रयोग सफल, इलाज की उम्‍मीद
जीन एडिटिंग से दूर हो सकती है दिमाग की जेनेटिक बीमारी, चूहे पर प्रयोग सफल, इलाज की उम्‍मीद

वाशिंगटन, पीटीआइ। Gene Editing Technology वैज्ञानिकों ने जीन एडिटिंग (gene editing technology) के जरिये एक चूहे में डब्ल्यूएजीआर सिंड्रोम (WAGR syndrome) को ठीक करने में सफलता पाई है। यह सिंड्रोम दिमागी अक्षमता और मोटापे का कारण बनता है। चूहे पर प्रयोग के दौरान वैज्ञानिकों ने एपिजीनोम एडिटिंग की विशेष तकनीक का प्रयोग किया। इसमें जेनेटिक कोड को बदले बिना ही जीन के काम करने के तरीके में बदलाव किया जाता है। 

वैज्ञानिकों ने कहा कि अभी यह शोध शुरुआती स्तर पर है, लेकिन इससे यह उम्मीद बनी है कि एपिजीनोम एडिटिंग थेरेपी की मदद से दिमाग की अक्षमता से जुड़े ऐसे सिंड्रोम को सही किया जा सकता है, जो आनुवंशिक है। इस बात की पर्याप्त संभावना है कि कुछ जीन और प्रोटीन को लक्ष्य बनाते हुए दिमाग में नर्व कनेक्शन को सही स्वरूप दिया जा सकता है। एपिजीनोम एडिटिंग ऐसे जीन को सक्रिय करते हुए नर्व कनेक्शन से जुड़ी कुछ प्रक्रियाओं को शुरू करने के लिए प्रेरित कर सकती है।

अभी हाल ही में चीन के वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रयोग किया था। वैज्ञानिकों ने बंदर और सुअर के जीन्स का इस्‍तेमाल करते हुए एक नई ब्रिड का जानवर पैदा किया था। इसे पहली बंदर-सुअर प्रजाति नाम दिया गया है। चीन के वैज्ञानिकों ने बंदर और सुअर के जीन्स को लेकर यह नया प्रयोग किया है। उन्होंने ऐसे सिर्फ दो बच्चे पैदा किए थे। वैज्ञानिकों की मानें तो बच्चे में जानवरों के दिल, यकृत, प्लीहा (spleen), फेफड़े और त्वचा में सिनोमोलगस बंदरों से आनुवंशिक सामग्री थी। 

हालांकि, एक हफ्ते के दौरान इन दोनों बच्‍चों की मौत हो गई थी। सन, डेलीमेल जैसे कुछ प्रमुख साइटों ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। वैज्ञानिकों की मानें तो यह दुनिया में हुआ अपनी तरह का पहला प्रयोग था। रिपोर्टों में कहा गया है कि पांच-दिवसीय पिगलेट भ्रूण में बंदर की स्टेम कोशिकाएं थीं, जोकि एक समृद्ध प्रोटीन का उत्पादन करने के लिए उसमें समायोजित की गई थीं। हालांकि, वैज्ञानिकों की ओर से यह नहीं खुलासा किया गया था कि इन बच्‍चों की मौत क्‍यों हो गई थी। 

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