डाकघर को शहीद सिख पुलिस अफसर का नाम देने का बिल अमेरिकी संसद में

अमेरिका के एक डाकघर का नाम ड्यूटी के दौरान शहीद हुए भारतवंशी सिख पुलिस अधिकारी संदीप सिंह धालीवाल पर रखने के लिए अमेरिकी संसद में एक बिल पेश किया गया है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Fri, 06 Dec 2019 07:07 PM (IST) Updated:Fri, 06 Dec 2019 07:10 PM (IST)
डाकघर को शहीद सिख पुलिस अफसर का नाम देने का बिल अमेरिकी संसद में
डाकघर को शहीद सिख पुलिस अफसर का नाम देने का बिल अमेरिकी संसद में

ह्यूस्टन, प्रेट्र। अमेरिका के एक डाकघर का नाम ड्यूटी के दौरान शहीद हुए भारतवंशी सिख पुलिस अधिकारी संदीप सिंह धालीवाल पर रखने के लिए अमेरिकी संसद में एक बिल पेश किया गया है। यह बिल टेक्सास से सांसद लिजी फ्लेचर ने पेश किया है। गत 27 सितंबर को ह्यूस्टन शहर में ड्यूटी पर तैनात हैरिस काउंटी के डिप्टी शेरिफ संदीप (42) की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। वह अमेरिका के पहले सिख पुलिस अफसर थे जिन्हें दाढ़ी बढ़ाने और पगड़ी पहनने की छूट मिली थी।

बेहतरीन सेवा भाव के लिए लोग हमेशा याद रखेंगे

फ्लेचर ने संसद में पेश बिल में ह्यूस्टन के एडिक्स हॉवेल रोड स्थित डाकघर का नाम शहीद सिख अफसर पर करने का प्रस्ताव रखा है। संसद में इस बिल को पेश करने के दौरान फ्लेचर ने कहा, संदीप को उनके बेहतरीन सेवा भाव के लिए लोग हमेशा याद रखेंगे। संदीप के नाम का डाकघर अमेरिका में उनकी सेवा और बलिदान की याद दिलाता रहेगा।

ह्यूस्टन पुलिस विभाग ने किया था ड्रेस कोड नीति में बदलाव  

पिछले दिनों सिख पुलिस अधिकारी संदीप सिंह धालीवाल के सम्मान में ह्यूस्टन पुलिस विभाग ने अपनी ड्रेस कोड नीति को बदल किया था, ताकि अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को ड्यूटी पर रहते हुए उनके विश्वास का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति मिल सके।

इस बारे में ह्यूस्टन के मेयर सिल्वेस्टर टर्नर ने ट्वीट किया था कि एचपीडी (ह्यूस्टन पुलिस विभाग) की घोषणा करते हुए गर्व महसूस हो रहा है कि देश के सबसे बड़े पुलिस विभागों में से एक ह्यूस्टन पुलिस ने सिख अधिकारियों को ड्यूटी पर उनके धर्म से जुड़े चिह्न को पहनने की अनुमति होगी। डिप्टी धालीवाल ने हमें सम्मिलित करने के बारे में सभी को मूल्यवान सबक सिखाया। उसे जानना एक सम्मान की बात थी।

सिख पुलिस अफसर संदीप सिंह धालीवाल (Sandeep Singh Dhaliwal) की अंतिम यात्रा में हजारों लोग शामिल हुए थे। इनमें कई पुलिस अधिकारी और भारतीय मूल के नागरिकों के अलावा बड़ी संख्या में स्थानीय लोग भी शामिल थे।

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