आर्कटिक महासागर के गर्म होने की बड़ी वजह मानव हस्तक्षेप, ग्रीन हाउस गैसों ने बढ़ाई और भी ज्यादा चिंता

अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता लोरेंजो पोलवानी ने कहा कि हालांकि इन रसायनों के उत्सर्जन पर धीमी गति से ही सही पर अब काफी हद तक अंकुश लगा है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Tue, 21 Jan 2020 07:34 PM (IST) Updated:Tue, 21 Jan 2020 07:36 PM (IST)
आर्कटिक महासागर के गर्म होने की बड़ी वजह मानव हस्तक्षेप, ग्रीन हाउस गैसों ने बढ़ाई और भी ज्यादा चिंता
आर्कटिक महासागर के गर्म होने की बड़ी वजह मानव हस्तक्षेप, ग्रीन हाउस गैसों ने बढ़ाई और भी ज्यादा चिंता

न्यूयॉर्क, प्रेट्र। शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि आर्कटिक महासागर में पिछली सदी में जितना तापमान बढ़ा है उसमें मानव हस्तक्षेप की 50 फीसद से ज्यादा की हिस्सेदारी है। मानव हस्तक्षेप से मतलब ऐसे रयायनों और गैसों का उत्सर्जन है जो ओजोन परत को क्षीण करते हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि रेफ्रिजरेटर, एसी आदि से होने वाले उत्सर्जन के कारण 1955 से 2005 के दौरान आर्कटिक क्षेत्र में सबसे ज्यादा गर्मी पड़ी, जिससे इसका बहुत बड़ा क्षेत्र पिघल गया है। जर्नल नेचर में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि ये रसायन क्लोरीन, ब्रोमीन, फ्लोरीन जैसे हैलोजन तत्वों से बने यौगिक होते हैं और ऊपरी वातावरण में ओजोन की सुरक्षात्मक परत को नष्ट करते हैं।

अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता लोरेंजो पोलवानी ने कहा कि हालांकि इन रसायनों के उत्सर्जन पर धीमी गति से ही सही पर अब काफी हद तक अंकुश लगा है। उन्होंने कहा, '1987 में ओजोन को नष्ट करने वाले पदार्थों के उत्सर्जन को कम करने के लिए एक वैश्विक समझौता हुआ था, जिसे मॉन्टि्रयल प्रोटोकॉल के नाम से जाना जाता है। तब से इस दिशा में काफी बदलाव आया है।' उन्होंने कहा कि मनुष्यों द्वारा उत्सर्जित शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसें (GHG) में लंबे वायुमंडलीय में बनी रहती हैं, जिसके कारण गर्मी बढ़ती है।

ग्रीन हाउस गैसों ने बढ़ाई चिंता

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया है कि गर्मी के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की भूमिका निर्विवाद रूप से प्रमुख रही है लेकिन हम इस बात की अनदेखी नहीं कर सकते कि मानवजनित जीएचजी के उत्सर्जन के कारण भी बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ओजोन की परत को नुकसान पहुंचा था।

जलवायु मॉडल का किया उपयोग

इस अध्ययन के निष्कर्षो तक पहुंचने के लिए पोलवानी और उनकी टीम ने इन पदाथरें के कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग की मात्रा का मूल्यांकन करने के लिए एक जलवायु मॉडल का उपयोग किया। उन्होंने दो सिमुलेशन किए- एक जिसमें 1955-2005 के दौरान प्राकृतिक और मानव उत्सर्जन मापा गया था और दूसरे में हैलोजन रसायनों और उनके ओजोन प्रभावों को हटा दिया गया था। दोनों की तुलना में वैज्ञानिकों ने जलवायु प्रणाली पर इन रसायनों का शुद्ध प्रभाव पाया। उन्होंने कहा कि आर्कटिक पर गर्मी के लिए जितनी जिम्मेदार कार्बन डाइऑक्साइड है उतनी ही जीएचजी भी है।

..और कई गुना बढ़ जाती है गर्मी

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह भी दिखाया कि ओडीएस यानी आजोन को कम करने वाले पदार्थो कारण अन्य कारकों की अपेक्षा गर्मी ज्यादा बढ़ती है। क्योंकि ओजोन की परत में क्षरण होने से सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणें सीधे पृथ्वी तक पहुंच जाती हैं। जिससे गर्मी की दर में कई गुना वृद्धि हो जाती है।

गर्मी को कम करने में मिलेगी मदद

शोधकर्ताओं के अनुसार, आर्कटिक वार्मिंग और समुद्री बर्फ के नुकसान के लिए ओडीएस लगभग आधे से अधिक जिम्मेदार हो सकती है। उन्होंने कहा कि इस अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि ओडीएस जलवायु प्रभावों पर एक नया दृष्टिकोण प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि मॉन्टि्रयल प्रोटोकॉल के माध्यम से इन रसायनों के उ‌र्त्सजन को कम करने से आर्कटिक वार्मिंग और समुद्री बर्फ के पिघलने की दर को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

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