Bengal Chunav Hinsa: चुनावी हथकंडे- बंगाल चुनाव में वोट बटोरने के लिए हिंसा बनी हथियार

Bengal Vidhan Sabha Chunav 2021 बंगाल चुनाव का आधा सफर पूरा हो चुका परंतु हिंसा नहीं थम रही है। 2019 में हिंसा की वजह से एक दिन पहले चुनाव प्रचार पर लगा था रोक 2018 के पंचायत चुनाव में सौ से अधिक लोगों की हुई थी हत्या

By Priti JhaEdited By: Publish:Sun, 11 Apr 2021 11:19 AM (IST) Updated:Sun, 11 Apr 2021 11:31 AM (IST)
Bengal Chunav Hinsa: चुनावी हथकंडे- बंगाल चुनाव में वोट बटोरने के लिए हिंसा बनी हथियार
बंगाल में वोट डालने से रोकने को बनाया जाता है हिंसा का माहौल

कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। बंगाल विधानसभा चुनाव का आधा सफर पूरा हो चुका है। परंतु, हिंसा नहीं थम रही है। शनिवार को चौथे चरण का जैसे ही मतदान शुरू हुआ हिंसा शुरू हो गई। पहले कूचबिहार के शीतलकूची में ही 18 साल एक फ‌र्स्ट टाइम वोटर बूथ पर गोली मार दी गई। इसके बाद हावड़ा, हुगली, दक्षिण 24 परगना जिले के विभिन्न हिस्सों से हिंसा होने लगी। भाजपा प्रत्याशियों पर हमले हुए। इसके कुछ देर बाद ही शीतलकूची में ही और चार लोगों की गोली लगने से मौत की सूचना आई तो हड़कंप मच गया। अब तक चार चरणों में 135 सीटों के लिए मतदान संपन्न हुआ है। परंतु, हर चरण के साथ हिंसा की रफ्तार तेज होती जा रही है। पहले चरण में मारपीट, हमले हुए। दूसरे दौर में एक व्यक्ति की मौत हुई, तीसरे में दो लोग मरे और अब चौथे चरण में पांच की जान चली गई। असल में राजनीतिक दलों ने बंगाल में हिंसा को वोट बटोरने का हथियार बना रखा है।

वोट डालने से रोकने को बनाया जाता है हिंसा का माहौल

हिंसा का ऐसा माहौल बनाया जाता है कि लोग भयभीत होकर मतदान करने के लिए ही नहीं जाए, ताकि बूथ में अपने हिसाब से वोटिंग की जा सके। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तीसरे चरण में देखने को मिला था, जहां कथित तृणमूल कार्यकर्ता एक महिला को वोट डालने से सरेआम रोक रहे थे और उसे धमकी भी दे रहे थे।

पंचायत चुनाव में हुई थी भारी हिंसा

2018 के पंचायत चुनाव में सौ से अधिक लोगों की हत्या हुई थी। हालात यह था कि बिना चुनाव लड़े ही 20 हजार से अधिक सीटों पर तृणमूल को जीत मिल गई थी। क्योंकि, विरोधी दलों के प्रत्याशियों को नामांकन ही नहीं करने दिया गया था। इसके एक वर्ष बाद ही 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जमकर हिंसा हुई थी। हालात यहां तक पहुंच गए कि बंगाल के चुनावी इतिहास में पहला मौका था जब चुनाव आयोग को निर्धारित समय से एक दिन पहले ही चुनाव प्रचार पर रोक लगानी पड़ी थी। अब देखा जा रहा है कि जैसे-जैसे चुनाव अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहा है वैसे-वैसे हिंसा बढ़ती जा रही है। केंद्रीय बलों की 793 कंपनी और 20 हजार से अधिक पुलिस कर्मियों की तैनाती के बावजूद हिंसा नहीं थम रही। तीसरे चरण में हिंसा के मद्देनजर चुनाव आयोग की ओर से धारा 144 लागू कर दिया गया था। फिर भी हिंसा नहीं रुकी। चौथे चरण में तो हालात और बदतर हो गए।

आगामी चार चरण का मतदान और भी है कठिन

अभी चार चरण का मतदान बाकी है। जिसमें और भी खूनखराबा होने की संभावना है। जिस तरह से राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चुनावी सभा में बोल रही हैं कि केंद्रीय बलों का महिलाएं हाथों में बेलन, करछी और छोलनी लेकर घेराव करें। इसके बाद शीतलकूची में जो कुछ हुआ है वह सामने है। ऐसे में चुनाव आयोग के लिए आगामी चार चरणों का मतदान शांतिपूर्ण, निर्बाध और निष्पक्ष संपन्न कराना आसान नहीं है। 

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