West Bengal Assembly Election 2021: यहां हिंदी भाषी व मारवाड़ी ही तय करते हैं हार-जीत

चौरंगी सीट की बात करें तो यहां 2006 से तृणमूल का कब्जा है। 2014 में हुए उपचुनाव व 2016 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से जीतती आ रहीं निवर्तमान विधायक नयना बंद्योपाध्याय एक बार फिर मैदान में हैं। लेकिन इस बार नयना की नैया भी मझदार में है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 23 Apr 2021 11:09 AM (IST) Updated:Fri, 23 Apr 2021 11:09 AM (IST)
West Bengal Assembly Election 2021: यहां हिंदी भाषी व मारवाड़ी ही तय करते हैं हार-जीत
तृणमूल-भाजपा के बीच यहां मुख्य मुकाबला है।

राजीव कुमार झा, कोलकाता। बंगाल विधानसभा चुनाव के आठवें व अंतिम चरण में 29 अप्रैल को कोलकाता की तीन प्रमुख सीटें चौरंगी, जोड़ासांको और श्यामपुकुर में भी चुनाव होना है। इन तीनों सीटों पर फिलहाल सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का कब्जा है। लेकिन इस बार इन सीटों पर तृणमूल की डगर आसान नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य में धमाकेदार प्रदर्शन करने वाली भाजपा यहां टीएमसी की सबसे निकटतम प्रतिद्वंद्वी दिखाई दे रही है। इन सीटों को बचाने के लिए टीएमसी को इस बार भाजपा से कड़ी चुनौती मिल रही है। दरअसल इन तीनों सीटों पर हिंदीभाषी व मारवाड़ी मतदाता ही जीत- हार तय करते हैं। इनमें जोड़ासांको सीट पर राजस्थान के मारवाडि़यों का खासा दबदबा है और उन्हीं के हाथ में जीत की चाबी है।

मारवाड़ी विधायकों ने ही यहां लंबे समय तक प्रतिनिधित्व किया है। वहीं, तृणमूल द्वारा इस चुनाव में बार-बार स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा उठाए जाने से उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। यहां बड़ी संख्या में दशकों से रह रहे प्रवासी ¨हदीभाषी व मारवाडि़यों के मन में कहीं न कहीं इसको लेकर रोष है और दबी जुबान से इस समाज के लोगों द्वारा इस बार बदलाव की बात कही जा रही है। वहीं, भाजपा ने भी बाहरी कहे जाने का मुद्दा जोर-शोर से चुनाव में उठाया है और इसके जरिए उन्हें अपनी ओर खींचने के लिए पूरी कोशिश की है। ऐसे में तृणमूल की राह यहां आसान नहीं है।

बंगाल का गौरवशाली इतिहास समेटे है जोड़ासांको

यह विधानसभा क्षेत्र बंगाल के साहित्य, कला साधना और शिक्षा के केंद्र के रूप में विख्यात है। जोड़ासांको में ही गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की जन्मस्थली ठाकुरबाड़ी है। इसके अलावा इसी विधानसभा क्षेत्र में कोलकाता का बड़ाबाजार इलाका भी आता है, जो बंगाल का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र है। यह मारवाडि़यों की बहुलता वाली सीट है। एक समय कांग्रेस का गढ़ रही इस सीट पर 2001 में तृणमूल ने कब्जा जमाया था। इस सीट से लगातार दो बार से जीतती आ रहीं निवर्तमान विधायक स्मिता बख्शी का टिकट काट तृणमूल ने इस बार पूर्व राज्यसभा सदस्य विवेक गुप्ता को उम्मीदवार बनाया है। उनका मुकाबला भाजपा की मीना देवी पुरोहित से है। मीना चार बार पार्षद और कोलकाता नगर निगम की डिप्टी मेयर रही हैं। तृणमूल को यहां अंदरुनी गुटबाजी का भी नुकसान हो सकता है क्योंकि टिकट काटे जाने से निवर्तमान विधायक नाराज हैं।

चौरंगी में मझदार में नयना की नैया

इसी तरह चौरंगी सीट की बात करें तो यहां 2006 से तृणमूल का कब्जा है। 2014 में हुए उपचुनाव व 2016 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से जीतती आ रहीं निवर्तमान विधायक नयना बंद्योपाध्याय एक बार फिर मैदान में हैं। लेकिन इस बार नयना की नैया भी मझदार में है। लोकसभा में तृणमूल संसदीय दल के नेता व उत्तर कोलकाता से सांसद सुदीप बंधोपाध्याय की पत्‍‌नी नयना को यहां भाजपा और संयुक्त मोर्चा के उम्मीदवारों से कड़ी टक्कर मिल रही है। भाजपा से देवव्रत माजी जबकि संयुक्त मोर्चा से प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष संतोष पाठक मैदान में हैं। पाठक कई बार पार्षद रह चुके हैं और इस क्षेत्र में उनकी अच्छी पैठ है। साथ ही वे ¨हदीभाषी भी हैं और इस क्षेत्र में ¨हदीभाषियों का बोलबाला है। इधर, भाजपा उम्मीदवार भी भगवा लहर में ¨हदीभाषियों के सहारे जीत की जुगत में है। ऐसे में चौरंगी में त्रिकोणीय मुकाबला देखा जा रहा है।

श्यामपुकुर में मंत्री शशि पांजा की किस्मत दांव पर

इस सीट पर 2011 से तृणमूल का कब्जा है। 2011 व 2016 में यहां से डॉ शशि पांजा ने जीत दर्ज की जो राज्य की महिला व शिशु कल्याण मंत्री हैं। पांजा एक बार फिर तृणमूल की ओर से मैदान में हैं। वहीं, भाजपा ने संदीपन विश्र्वास को प्रत्याशी बनाया है। तृणमूल-भाजपा के बीच यहां मुख्य मुकाबला है। पांजा की हैट्रिक रोकने के लिए भाजपा यहां पूरा जोर लगाई है।

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