Bengal Election 2021: पांचवें और छठे चरण में मतुआ व मुस्लिम तय करेंगे उम्मीदवारों की सियासी तकदीर, 88 सीटों पर होंगे चुनाव

West Bengal Assembly Election 2021 बंगाल में आगामी पांचवें और छठे चरण का चुनाव बेहद ही अहम है। दोनों चरणों में कुल 88 सीटों पर होने वाले चुनाव में एम फैक्टर पर बहुत कुछ दारोमदार है। एम यानी मतुआ और मुस्लिम यहां निर्णायक साबित हो सकते हैं।

By Vijay KumarEdited By: Publish:Thu, 15 Apr 2021 07:19 PM (IST) Updated:Thu, 15 Apr 2021 07:19 PM (IST)
Bengal Election 2021: पांचवें और छठे चरण में मतुआ व मुस्लिम तय करेंगे उम्मीदवारों की सियासी तकदीर, 88 सीटों पर होंगे चुनाव
टीएमसी को उसके गढ़ में भाजपा दे रही कड़ी टक्कर

राजीव कुमार झा, कोलकाता : बंगाल में आगामी पांचवें और छठे चरण का चुनाव बेहद ही अहम है। दोनों चरणों में कुल 88 सीटों पर होने वाले चुनाव में एम फैक्टर पर बहुत कुछ दारोमदार है। एम यानी मतुआ और मुस्लिम यहां निर्णायक साबित हो सकते हैं। इस चरण में जिन जिलों में चुनाव होना है उसमें से खासकर सीमावर्ती उत्तर 24 परगना व नदिया जिले में मतुआ समुदाय व मुस्लिमों का खासा प्रभाव है और वही विभिन्न दलों के उम्मीदवारों की सियासी तकदीर तय करते हैं।

अनुसूचित जाति (एससी) में आने वाले मतुआ समुदाय का तो यह गढ़ ही माना जाता है। बांग्लादेश से आए मतुआ शरणार्थियों को लुभाने के लिए इस बार सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों ने भरपूर कोशिश की है। मतुआ का राज्य के 70 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर प्रभाव है। इसमें अकेले उत्तर 24 परगना में ही 33 सीटें हैं जबकि नदिया में 17 विधानसभा सीटें हैं।

बांग्लादेश की सीमा से सटे इस दोनों जिले में मुस्लिम आबादी भी ज्यादा है। इनमें करीब एक दर्जन सीटों पर मुस्लिमों की औसत आबादी 35 फीसद के करीब है, जो सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के कोर मतदाता माने जाते हैं। ये दोनों जिले टीएमसी का गढ़ माना जाता है। यही वजह है कि 2016 में उत्तर 24 परगना की 33 में से 27 जबकि नदिया की 17 में से 13 सीटें टीएमसी की झोली में गई थी। हालांकि तब भाजपा लड़ाई में नहीं थी। लेकिन इस बार टीएमसी को भाजपा से यहां कड़ी टक्कर मिल रही है।

2019 में भाजपा ने की थी सेंधमारी

दरअसल, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में ही भाजपा ने टीएमसी के इस गढ़ में सेंधमारी की थी। उत्तर 24 परगना में कुल पांच लोकसभा सीट आती हैं। इसमें से बैरकुपर और बनगांव सीट भाजपा ने जीत ली थी। बनगांव से मतुआ समुदाय के शांतनु ठाकुर ने जीत दर्ज की थी। उधर, नदिया की दो में से एक राणाघाट सीट पर भी भाजपा ने जीत दर्ज की थी। इससे उत्साहित भाजपा अब भगवा लहर में विधानसभा चुनाव में टीएमसी के गढ़ में सेंधमारी की जुगत में है। ऐसे में टीएमसी के सामने अपने गढ़ को बचाना बड़ी चुनौती है। अब मतुआ व मुस्लिमों का आशीर्वाद इस बार किसे मिलता है इस पर सभी की नजरें हैं।

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मतुआ को लुभाने की होड़

राज्य के कुल मतदाताओं में से 23.5 फीसद अनुसूचित जाति से हैं। इसमें शामिल मतुआ को लुभाने में कोई भी दल पीछे नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में अपने बांग्लादेश दौरे के दौरान मतुआ संप्रदाय के आध्यात्मिक गुरु हरिचांद ठाकुर के बांग्लादेश के उड़ाकांदी स्थित जन्मस्थान का दौरा किया था। मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जो वहां गए थे। चुनाव के समय वहां जाने पर ममता ने सवाल भी उठाए थे। वहीं, भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में सीएए लागू कर मतुआ शरणार्थियों को नागरिकता देने सहित कई वादे किए हैं। 70 साल से मतुआ नागरिकता का इंतजार कर रहे हैं। भाजपा ने चुनाव में सीएए का मुद्दा जोर-शोर से उठाया है।

दूसरी ओर, 2019 में भाजपा को मिली सफलता के बाद तृणमूल ने भी अपनी नीति बदली और सभी शरणार्थी कॉलोनियों को नियमित कर उन्हें भूमि अधिकार दिए। साथ ही सीएए पर संशय की स्थित को भी अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है। इस बीच हाल में सत्ताधारी पार्टी के एक प्रत्याशी का अनुसूचित जाति की भिखारियों से तुलना करने के बयान भी चर्चित है। पीएम मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह सहित सभी भाजपा नेता इस बयान का जिक्र कर इसे भुनाने में जुटे हैं।

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