चुनावों को लेकर तृणमूल कांग्रेस प्रमुख एवं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दोहरा मापदंड

भाजपा समेत अन्य विरोधी दल पिछले एक साल से कई बार पत्र लिखकर इसकी मांग कर चुके हैं। कोर्ट का दरवाजा तक खटाखटा चुके हैं लेकिन चुनाव नहीं हुआ। इस मुद्दे पर तृणमूल नेता खुलकर कुछ भी कहने से बच रहे हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 20 Jul 2021 10:49 AM (IST) Updated:Tue, 20 Jul 2021 02:30 PM (IST)
चुनावों को लेकर तृणमूल कांग्रेस प्रमुख एवं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दोहरा मापदंड
ममता खुद कई बार कह चुकी हैं कि सूबे में तुरंत उपचुनाव कराए जाएं।

कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। राजनीति में कुर्सी ही सबसे अहम है। इसके लिए नेता कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। इसके प्रमाण आए दिन मिलते हैं। इस समय बंगाल में कुर्सी का खेल खूब दिख रहा है। पिछले एक दशक से बंगाल की सत्ता पर काबिज तृणमूल कांग्रेस प्रमुख एवं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चुनावों को लेकर कभी जल्दबाजी में नहीं रहीं, लेकिन इस बार विधानसभा उपचुनाव को लेकर बेचैन हैं। विधानसभा चुनाव संपन्न हुए अभी महज सवा दो महीने ही हुए हैं, लेकिन वह तुरंत उपचुनाव चाहती हैं। पिछले गुरुवार को तृणमूल का छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल विधानसभा की खाली सीटों पर उपचुनाव तत्काल कराने की मांग करते हुए नई दिल्ली स्थित केंद्रीय चुनाव आयोग के दफ्तर पहुंच गया।

ममता खुद भी कई बार कह चुकी हैं कि सूबे में तुरंत उपचुनाव कराए जाएं। साथ ही उपचुनाव में देरी के लिए केंद्र सरकार और भाजपा पर निशाना साधने से भी गुरेज नहीं कर रही हैं, जबकि इसी बंगाल में कोलकाता, हावड़ा, बिधाननगर, सिलीगुड़ी, आसनसोल जैसे नगर निगमों समेत 100 से अधिक नगर निकायों में निर्वाचित बोर्डो का कार्यकाल समाप्त हुए एक वर्ष से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन राज्य सरकार की तरफ से वहां चुनाव कराने की बात एक बार भी नहीं कही जा रही है। भला वहां चुनाव की जरूरत भी क्यों हो, चुनाव जीते बिना ही उन सभी नगर निकायों पर तृणमूल का कब्जा जो है। बंगाल सरकार ने सभी निकायों में अपने नेताओं को प्रशासक बनाकर बैठा रखा है। वहां चुनाव होने से कुर्सी जा भी सकती है, इसीलिए निकायों के चुनाव ममता के लिए जरूरी नहीं हैं, पर उपचुनाव आवश्यक हैं।

इसे लेकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है कि ‘दीदी मोनी (ममता बनर्जी) विधानसभा उपचुनाव कराने की जल्दबाजी में हैं, क्योंकि नंदीग्राम से हारने के बाद उनका मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे रहने के लिए किसी भी सीट से छह माह के भीतर निर्वाचित होना जरूरी है। इसीलिए वह परेशान हैं। निकाय चुनाव नहीं होने से लोग परेशान हो रहे हैं। इस पर ममता की नजर नहीं है, पर उपचुनाव होने चाहिए। यह चुनावों को लेकर उनके दोहरे मापदंड को दर्शाता है।’ सौ से अधिक नगर निकायों में निर्वाचित बोर्डो का कार्यकाल 2020 की शुरुआत में ही समाप्त हो चुका है। कभी कहा जाता है कि कोरोना महामारी की वजह से चुनाव नहीं कराया जा सकता तो कभी कुछ और बहाना बनाया जाता है। यह सही है कि 2020 के मार्च से कोरोना का प्रकोप शुरू हो गया था, लेकिन नवंबर-दिसंबर में निकायों के चुनाव कराए जा सकते थे, पर विधानसभा चुनाव के मद्देनजर टाल दिए गए। दरअसल कोलकाता नगर निगम का चुनाव नहीं होने का मामला हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव कराने को लेकर राज्य चुनाव आयोग से जवाब भी तलब किया था, परंतु राज्य सरकार ने विधानसभा चुनाव का हवाला देकर निकाय चुनावों को टाल दिया था।

नई दिल्ली में पिछले गुरुवार को केंद्रीय चुनाव आयोग के अधिकारियों से मुलाकात के बाद चुनाव आयोग के दफ्तर से बाहर निकलते तृणमूल कांग्रेस के नेता। इंटरनेट मीडिया

विधानसभा चुनाव से पहले ही बंगाल में भी कोरोना महामारी तेज हो गई तो ममता ने सवाल उठाया था कि कोरोना काल में आठ चरणों में विधानसभा चुनाव क्यों कराए जा रहे हैं? इस मुद्दे पर उन्होंने चुनाव आयोग से लेकर केंद्र सरकार तक पर निशाना साधा था। इसके बाद जब वह जीत गईं और मुख्यमंत्री पद की शपथ ले लीं तो उन्होंने तत्काल बंगाल में लाकडाउन लगा दिया, जो कुछ रियायतों के साथ अब भी जारी है। अब ममता कह रही हैं कि उनकी सरकार ने निर्वाचन आयोग को सूचित कर दिया है कि वह राज्य में कुछ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव कराने के लिए तैयार है, क्योंकि उन क्षेत्रों में कोरोना की स्थिति नियंत्रण में है। दरअसल निर्वाचन आयोग ने यह जानना चाहा था कि क्या बंगाल दो रिक्त राज्यसभा की सीटों पर चुनाव कराने के लिए तैयार है, जिसके जवाब में मुख्य सचिव ने आश्वासन दिया था कि राज्य कोरोना नियमों का पालन करते हुए इसके लिए भी तैयार है। ममता का कहना है कि बंगाल में कोरोना संक्रमण दर घटकर 1.5 फीसद रह गई है। यह स्थिति उपचुनाव कराने के लिए अनुकूल है।

ऐसे में निकाय चुनाव भी क्यों न हों? भाजपा समेत अन्य विरोधी दल पिछले एक साल से कई बार पत्र लिखकर इसकी मांग कर चुके हैं। कोर्ट का दरवाजा तक खटाखटा चुके हैं, लेकिन चुनाव नहीं हुआ। इस मुद्दे पर तृणमूल नेता खुलकर कुछ भी कहने से बच रहे हैं।

[राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]

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