Positive India: Coronavirus Lockdown Effect: बेटे को खुद से दूर करके कोरोना संक्रमितों की सेवा कर रहीं 'सिस्टर निवेदिता'

बेटे को खुद से दूर करके कोरोना संक्रमितों की सेवा कर रहीं सिस्टर निवेदिता-लाॅकडाउन शुरु होने से पहले ही बेटे को माता-पिता के पास छोड़ आई थी मायके पति भी फिलहाल नहीं रह रहे साथ

By Preeti jhaEdited By: Publish:Mon, 25 May 2020 04:06 PM (IST) Updated:Mon, 25 May 2020 04:06 PM (IST)
Positive India: Coronavirus Lockdown Effect: बेटे को खुद से दूर करके कोरोना संक्रमितों की सेवा कर रहीं 'सिस्टर निवेदिता'
Positive India: Coronavirus Lockdown Effect: बेटे को खुद से दूर करके कोरोना संक्रमितों की सेवा कर रहीं 'सिस्टर निवेदिता'

विशाल श्रेष्ठ, कोलकाता। सन् 1898 में जब कोलकाता में प्लेग ने विकराल महामारी का रूप धारण कर लिया था, उस वक्त 28 साल की एक महिला अपनी जान की परवाह किए बिना मरीजों की सेवा में जी-जान से जुट गई थीं। वह कोई और नहीं, 'सिस्टर निवेदिता' थीं, जिन्हें सेवा की मूर्ति कहा जाता है।

इस वक्त जब देश-दुनिया में कोरोना जैसी भयावह महामारी फैली हुई है, एक और 'सिस्टर निवेदिता' पूरी शिद्दत से पीड़ितों की सेवा में लीन हैं। ये हैं 39 साल की निवेदिता सिंह राय। कोलकाता के पार्क सर्कस इलाके में स्थित नेशनल मेडिकल कॉलेज अस्पताल की नर्स। सिस्टर निवेदिता दिन-रात इस नेक काम में जुटी हुई हैं। इसके लिए उन्होंने अपने छोटे से बेटे को भी खुद से दूर कर लिया है।

तस्वीर प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर बातचीत के लिए तैयार हुईं सिस्टर निवेदिता ने कहा- 'मैं सेवा प्रचार के लिए नहीं कर रही इसलिए नहीं चाहती कि मेरी तस्वीर प्रकाशित हो। मरीजों की सेवा मेरा कर्म ही नहीं, मेरे लिए धर्म भी है। 2005 से सेवाएं प्रदान करती आ रहीं सिस्टर निवेदिता ने आगे कहा-ं कोलकाता में जब कोरोना का प्रकोप बढ़ना शुरू हुआ था, उसी वक्त लाॅकडाउन शुरू होने से पहले मैं बेटे को अपने माता-पिता के पास मायके खड़गपुर छोड़ आई थी क्योंकि कोरोना संक्रमितों की सेवा करते वक्त उसे अपने साथ रखना काफी जोखिम भरा था।

मेरे संक्रमित हो जाने पर बेटे के भी संक्रमित होने का खतरा था। अभी मेरे पति भी मेरे साथ नहीं रह रहे हैं। इस तरह मैं अपने परिवार से दूरी बनाकर सेवा प्रदान कर रही हूं।' सिस्टर निवेदिता ने बेहद भावुक होते हुए कहा-' मैं अपने बेटे को अभी ज्यादा फोन नहीं करती। वह अभी बहुत छोटा है। ज्यादा फोन करने पर उसे मेरी याद आने लगेगी और वह मेरे पास आने की जिद करने लगेगा। ऐसा होने पर मेरे माता-पिता के लिए उसे संभालना बहुत मुश्किल हो जाएगा, इसलिए मैं दिल पर पत्थर रखकर फिलहाल उससे कम से कम बात करने की कोशिश करती हूं।'

मरीजों के इलाज से जुड़े अपने अहसास को साझा करते हुए सिस्टर निवेदिता ने कहा-' 2005 में मैं जब इस सेवा से जुड़ी थी, उस वक्त यह मेरे लिए एक पेशे की तरह था लेकिन मरीजों के बीच रहते-रहते पेशा सेवा में बदल गया है। मरीजों से हमारा खून का कोई रिश्ता नहीं होता, लेकिन जब वे स्वस्थ होने के बाद चेहरे पर मुस्कान लिए और हमें धन्यवाद देते हुए वापस अपने घर लौटते हैं तो मन को बहुत संतुष्टि मिलती है। उस समय मुझे सही मायने में अपने मनुष्य होने का अहसास होता है।'

कोलकाता के कसबा इलाके की रहने वाली सिस्टर निवेदिता ने आगे कहा-'हमारे अस्पताल में इन दिनों कोरोना वायरस की आशंका वाले बहुत से मामले आ रहे हैं। उन लोगों के इलाज में बेहद जोखिम तो है लेकिन इस समय अगर हम पीछे हट जाएंगे तो फिर उनकी सेवा कौन करेगा? मरीजों की सेवा मेरे लिए कर्म ही नहीं, धर्म भी है।' 

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