West Bengal: वैज्ञानिकों ने बनाया खास कार्बनिक पदार्थ, टूटे हुए उपकरण खुद कर सकेंगे अपनी मरम्मत
साइंस फिक्शन फिल्मों में आपने कई बार देखा होगा कि कोई मशीन या रोबोट खराब होने या टूटने के बाद खुद-ब-खुद अपनी मरम्मत कर खुद को दुरुस्त कर पहले की तरह बन जाता है लेकिन हम कहें कि फिल्मी पर्दों और किताबों का ये अफसाना हकीकत बनने जा रहा है
राज्य ब्यूरो, कोलकाता : साइंस फिक्शन फिल्मों में आपने कई बार देखा होगा कि कोई मशीन या रोबोट खराब होने या टूटने के बाद खुद-ब-खुद अपनी मरम्मत कर खुद को दुरुस्त कर पहले की तरह बन जाता है, लेकिन हम कहें कि फिल्मी पर्दों और किताबों का ये अफसाना अगर हकीकत बनने जा रहा है तो शायद एकबारगी आपको यकीं न हो लेकिन भारतीय अनुसंधानकर्ताओं ने ऐसा करने में सफलता पाई है।
जरा सोचिए आपके हाथ से मोबाइल फोन गिरे और उसकी स्क्रीन टूटे और फिर खुद ब खुद ठीक भी हो जाए। ये और ऐसी कई कल्पनाएं भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान ( आइआइएसईआर) कोलकाता तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) खड़गपुर के बनाए गए एक पदार्थ से भविष्य में सच हो सकती हैं। यहां के विशेषज्ञों ने ऐसे पदार्थ का अविष्कार किया है जो पलक झपकते ही अपने अंदर हुई टूट आदि की मरम्मत कर सकता है।
अमेरिका स्थित प्रतिष्ठित विज्ञान जर्नल में शोध प्रकाशित
-अमेरिका स्थित प्रतिष्ठित विज्ञान (एएएएस) जर्नल में यह शोध प्रकाशित हुआ है। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के स्वत: मरम्मत से लेकर ऑप्टिकल उद्योग में इस नए पदार्थ के कई अनुप्रयोग हो सकते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि पहले जो स्व-उपचारात्मक सामग्री विकसित की गई थीं उनका इस्तेमाल एरोस्पेस, अभियांत्रिकी और स्वचालन में किया जाता है। नए पदार्थ और पहले से इस्तेमाल किए जा रहे में अंतर यह है कि उन्होंने अब ठोस पदार्थ के एक नए वर्ग को संश्लेषित किया है जो उनके दावे के मुताबिक अन्य प्रतिस्पर्धी सामग्री की तुलना में 10 गुना सख्त है।
पूर्व में विकसित सामग्री इसके विपरीत नरम और अनाकार (बिना किसी स्पष्ट परिभाषित आकार के) थी और उसे स्वत: मरम्मत करने में मदद के लिए प्रकाश, उष्मा या एक रसायन की आवश्यकता होती है। हालांकि नया पदार्थ सख्त है और अपने विद्युत आवेशों का इस्तेमाल स्वत:उपचार के लिए करता है।
खंडित टुकड़े त्वरण के साथ मधुमक्खी के पंख जैसी गति के साथ बढ़ते हैं
-आइआइटी खड़गपुर के प्रोफेसर भानू भूषण खातुआ ने सोमवार को बताया कि मरम्मत के दौरान, खंडित टुकड़े त्वरण के साथ मधुमक्खी के पंख जैसी गति के साथ बढ़ते हैं। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा 2015 में प्रतिष्ठित स्वर्ण जयंती फैलोशिप प्राप्त कर चुके प्रोफेसर सी मल्ला रेड्डी और उनके दल ने आइआइएसईआर कोलकाता में ठोस पदार्थ की नई श्रेणी का संश्लेषण किया।
वैज्ञानिकों ने कहा कि अध्यधिक क्रिस्टलीय सामग्री जब खंडित हो जाती है तो पलक झपकते ही स्वयं को आगे बढ़ा सकती है और फिर से जुड़ सकती है तथा खुद की इतनी सटीकता के साथ मरम्मत कर सकती है कि अखंडित सामग्री और उसमें भेद करना मुमकिन नहीं होता।