West Bengal: बंगाल में हाशिये पर चले गए 34 वर्षों तक राज करने वाले वामदल

West Bengal राज्य में वाम दलों के मत फीसद में भारी गिरावट आई जहां 2011 में 34 साल के राज के बाद भी वाम दल 30.1 फीसद मत हासिल करने में कामयाब हुए थे वहीं वर्ष 2021 के चुनाव में उन्हें मात्र 5.47 फीसद मतों से संतोष करना पड़ा।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Sun, 09 May 2021 07:52 PM (IST) Updated:Sun, 09 May 2021 07:52 PM (IST)
West Bengal: बंगाल में हाशिये पर चले गए 34 वर्षों तक राज करने वाले वामदल
बंगाल में हाशिये पर चले गए 34 वर्षों तक राज करने वाले वामदल। फाइल फोटो

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। West Bengal: बंगाल की राजधानी में दीवारों पर विधानसभा चुनाव के दौरान नारे लिखे गए थे, 'मा‌र्क्सवाद अमर रहे'। अब जबकि चुनाव परिणाम सामने आए एक सप्ताह से बीत चुके हैं तो उस नारे में किसी ने छोड़छाड़ कर मजाकिया लहजे में 'अमर रहे' के स्थान पर लिख दिया है मृत रहे। हालांकि, नारे से की गई यह छेड़छाड़ पिछले हफ्ते विधानसभा चुनाव के आए नतीजों के बाद सच सी लगती हैं, जहां पर 34 वर्षों तक राज करने वाले वामदल हाशिये पर चले गए हैं। राज्य में वाम दलों के मत फीसद में भारी गिरावट आई है, जहां 2011 में 34 साल के राज के बाद भी वाम दल 30.1 फीसद मत हासिल करने में कामयाब हुए थे, वहीं वर्ष 2021 के चुनाव में उन्हें मात्र 5.47 फीसद मतों से संतोष करना पड़ा है। 2016 के विधान सभा चुनाव में भी वाम दल 25.69 फीसद वोट हासिल करने में कामयाब हुए थे।

इस बार वाम के मत तृणमूल को गए

मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) पोलित ब्यूरो के सदस्य नीलोत्पल बसु ने कहा कि हमें हार मिली क्योंकि सत्ता विरोधी लहर सहित अन्य मुद्दे लोगों की भाजपा को बंगाल की सत्ता से दूर रखने की भावना के आगे हाशिये पर चले गए। भाकपा (माले) लिबरेशन पार्टी के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य का कहना है कि वर्ष 2019 में भाजपा ने यहां की 18 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी और कुल 40 प्रतिशत मत हासिल किए थे। उस समय वाम और कांग्रेस मत दक्षिण पंथी पार्टी के पक्ष में गए थे, इस बार वाम समर्थकों के मत तृणमूल के पक्ष में गए।

जादवपुर में भी तृणमूल को सफलता

जादवपुर में जिसे 'पूर्व का लेनिनग्राद' कहा जाता है और एक बार को छोड़ वर्ष 1967 से वाम दलों का यहां कब्जा रहा है, वहां भी इस बार तृणमूल ने जीत दर्ज की है। इस चुनाव में वाम दलों को उस समय और असहज स्थिति का सामना करना पड़ा जब माकपा के वरिष्ठ नेता सुजन चक्रवर्ती को कम चर्चित तृणमूल प्रत्याशी ने 40 हजार मतों के भारी अंतर से हराया। इस चुनाव में अधिकतर सीटों पर तृणमूल और भाजपा का सीधा मुकाबला हुआ जबकि कभी यहां सबसे ताकतवर रहे वामदल अप्रासंगिक हो गए।

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