यहूदी समुदाय : कोलकाता के इतिहास का एक अभिन्न हिस्सा

कोलकाता में करीब 223 साल पहले अलेप्पो से शालोम ओबादियाह हा कोहेन आए थे और अवध के नवाब और महाराजा रणजीत सिंह के दरबार के आभूषण निर्माता थे। किवदंती है कि उनसे ‘कोहिनूर’ हीरे और पंजाब के राजकोष के अन्य बहुमूल्य वस्तुओं की कीमत लगाने को कहा गया था।

By Priti JhaEdited By: Publish:Thu, 25 Nov 2021 09:17 AM (IST) Updated:Thu, 25 Nov 2021 09:17 AM (IST)
यहूदी समुदाय : कोलकाता के इतिहास का एक अभिन्न हिस्सा
यहूदी समुदाय : कोलकाता के इतिहास का एक अभिन्न हिस्सा

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। कोलकाता के आखिरी बचे यहूदियों में से एक 78 वर्षीय एलिशा त्वेना बड़ा बाजार की भीड-भाड़ वाली सड़कों से होते हुए रेहड़ी से लगभग छिप चुकी ब्राबाउर्न रोड और कैंनिंग स्ट्रीट के पास मौजूद एक गेट पर पहुंचते हैं जिसके पीछे एक विशाल लाल इमारत मौजूद है।

इस इमारत के दरवाजों पर स्टार ऑफ डेविड बने हुए हैं। त्वेना इससे अंदर प्रवेश करते हैं जो विशााल हॉल में जाता हैं जिसका फर्श संगमरमर से बना हुआ है और छत पर शानदार झाड़-फानूस लगे हैं। खिड़कियों पर पुराने शीशे लगे हैं और सजावटी खंभे मौजूद हैं जिन्हें पेरिस से लाया गया था।बाहर से देखने पर यह इमारत किसी मध्य यूरोपीय गिरिजाघर का आभास कराती है लेकिन वास्तव में यह 137 साल पुराना यहूदी पूजास्थल मेगन डेविड सिनागॉग है जिसे एशिया में यहूदियों का सबसे शानदार पूजास्थल माना जाता है। इसे 19वीं सदी में कारोबारी एलिसा डेविड इजारा ने बनाया था जिनके नाम पर मध्य कोलकाता की एक सड़क का नाम हैं।

द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले तक कोलकाता में करीब छह हजार यहूदी रहते थे जिनकी संख्या अब 20-30 में सिमट गई है। यहूदियों की आबादी में गिरावट की वजह से मेगन डेविड में लंबे समय से धार्मिक आयोजन नहीं हो रहा है जबकि इसके पड़ोस में ही नेवेह शालोम सिनागॉग है जिसका निर्माण 1831 में किया गया था, यह भी आज गुमनामी के अंधेरे में है। लाउडन स्ट्रीट में पेंटहाउस में रहने वाले त्वेना ने बताया, ‘‘कोलकाता यहूदी बालक स्कूल के मेरे सभी सहपाठी इस सिनागॉग में थे, लेकिन 1960 और 1970 के दशक में बेहतर भविष्य के लिए पलायन कर गए.. अब यहां रबी भी नहीं है।’’

सामने खाली बगीचे की ओर हाथ दिखाते हुए वह कहते हैं, पहले हम धार्मिक कार्यक्रम के बाद इसमें क्रिकेट खेलते थे। अब खेलने के लिए बच्चे नहीं बचे हैं। यहां जो लोग बचे हैं उनमें सबसे कम उम्र का व्यक्ति 53 साल का है जबकि सबसे बुजुर्ग की उम्र 96 साल है।’’ हालांकि त्वेना को इसका अफसोस नहीं है। वह कोलकाता को अब भी यहूदी जीवन के अहम स्थानों में से एक मानते हैं।

कोलकाता में आज से करीब 223 साल पहले अलेप्पो से शालोम ओबादियाह हा कोहेन आए थे और अवध के नवाब और महाराजा रणजीत सिंह के दरबार के आभूषण निर्माता थे। किवदंती है कि उनसे ‘कोहिनूर’ हीरे और पंजाब के राजकोष के अन्य बहुमूल्य वस्तुओं की कीमत लगाने को कहा गया था। हा कोहेन के बाद उनके और भी रिश्तेदार और अन्य बगदाद और अन्य पश्चिम एशियाई देशों से यहां आए और यह यहूदी कारोबारियों का केंद्र बन गया था जो पूर्व में शंघाई से पश्चिम में लंदन तक कारोबार करते थे। यहूदी समुदाय के कई लोगों ने कोलकाता में कई संस्थानाओं का निर्माण कराया। 

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