कोलकाता के कई निजी अस्पतालों में ‘स्वास्थ्य साथी’ योजना का कार्यान्वयन मुश्किल में

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 30 दिसंबर 2016 को ‘स्वास्थ्य साथी’ योजना को शुरू किया था। ये योजना सालाना पांच लाख रुपये तक का बुनियादी स्वास्थ्य कवर प्रदान करती है। इस योजना के तहत मरीजों के लिए एक निश्चित संख्या में बेड निर्धारित किये लेकिन वे लगभग हमेशा भरे रहते हैं।

By Babita KashyapEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 08:32 AM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 08:32 AM (IST)
कोलकाता के कई निजी अस्पतालों में ‘स्वास्थ्य साथी’ योजना का कार्यान्वयन मुश्किल में
स्वास्थ्य साथी’योजना के तहत मरीजों को भर्ती करना बंद

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। कोलकाता में कई निजी अस्पतालों ने बेड की कमी और ‘‘वित्तीय चिंताओं’’ के कारण पश्चिम बंगाल सरकार की ‘स्वास्थ्य साथी’योजना के तहत सूचीबद्ध मरीजों को भर्ती करना बंद कर दिया है। अधिकारियों ने बताया कि भुगतान प्राप्त करने के लिए लंबी प्रतीक्षा अवधि, कम उपचार पैकेज और गैर-कोविड रोगियों की संख्या में वृद्धि निजी चिकित्सा केंद्रों के लिए योजना को अव्यवहारिक बनाने वाले कारकों में से हैं।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे आधिकारिक तौर पर 30 दिसंबर, 2016 को शुरू किया था। यह योजना प्रति परिवार द्वितीयक और तृतीयक देखभाल के लिए सालाना पांच लाख रुपये तक का बुनियादी स्वास्थ्य कवर प्रदान करती है। पीयरलेस के सीईओ सुदीप्त मित्रा ने बताया कि अस्पताल ने इस योजना के तहत मरीजों के लिए एक निश्चित संख्या में बेड निर्धारित किये, लेकिन वे लगभग हमेशा भरे रहते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘आपातकालीन मामलों में हम ‘स्वास्थ्य साथी’ के रोगियों को भर्ती करने से इनकार नहीं करते हैं।’’

मित्रा का समर्थन करते हुए मेडिका सुपरस्पेशलिटी अस्पताल के अध्यक्ष आलोक रॉय ने कहा कि अस्पताल ने वर्तमान में ऐसे रोगियों के लिए लगभग 40 बिस्तरों की क्षमता को समाप्त कर दिया है, लेकिन कोई आपात स्थिति होने पर मरीज को भर्ती करने मना नहीं किया जाता है। एएमआरआई अस्पताल के सीईओ रूपक बरुआ ने बताया कि अस्पताल स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए आरक्षित 15 प्रतिशत बिस्तरों की मौजूदा नीति की तुलना में पहले ही ‘‘बहुत अधिक’’रोगियों को भर्ती कर चुका है। उन्होंने कहा, ‘‘यही कारण है कि शहर के अन्य निजी अस्पतालों ने भी योजना के तहत मरीजों को तत्काल भर्ती करना बंद कर दिया है।’’

हालांकि, बरुआ ने कहा कि जब तक चिकित्सा प्रबंधन (मरीज को भर्ती करने से अस्पताल से छुट्टी मिलने तक) की दरों में संशोधन नहीं किया जाता है, अस्पतालों के लिए ऐसे रोगियों को लेना मुश्किल होगा। उन्होंने कहा, ‘‘महामारी के कारण हमारी नियमित संचालन लागत पहले ही बढ़ गई है और योजना के तहत पेश किए जाने वाले पैकेज लंबी अवधि में आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं हैं।’’बरुआ एसोसिएशन ऑफ हॉस्पिटल्स ऑफ ईस्टर्न इंडिया के अध्यक्ष भी हैं, उन्होंने बताया, ‘‘इसके अलावा, हम अधिकारियों से बकाया के मामले देखने का अनुरोध करेंगे, क्योंकि भुगतान प्राप्ति की अवधि जो लगभग 15-20 दिनों की थी, अब बढ़कर 45-60 दिन हो गई है।’’

आर एन टैगोर इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डिएक साइंसेज (आरटीआईआईसीएस) के अधिकारियों ने दावा किया कि अस्पताल ‘स्वास्थ्य साथी’ योजना के रोगियों को भर्ती करने से इनकार नहीं करता है, भले ही योजना के लिए निर्धारित सभी बिस्तरों पर मरीज हों। शहर के एक अन्य प्रमुख निजी अस्पताल के एक अधिकारी ने कहा कि राज्य सरकार को मुद्दों से अवगत कराया गया था और उसने कार्यक्रम के तहत पेश किए गए उपचार पैकेजों की समीक्षा करने का आश्वासन दिया है

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