Shankh Ghosh passes away: मशहूर बांग्ला कवि शंख घोष का कोरोना से निधन, राष्ट्रपति, पीएम व ममता ने जताया शोक
कोरोना संक्रमण से जूझ रहे मशहूर बांग्ला कवि शंख घोष का बुधवार दोपहर में निधन हो गया। 89 वर्षीय घोष पहले से ही कई बीमारियों से पीडि़त थे और कुछ महीने पहले उन्हेंं कोलकाता के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह कोरोना वायरस से भी संक्रमित थे।
राज्य ब्यूरो, कोलकाता : कोरोना संक्रमण से जूझ रहे जाने-माने बांग्ला कवि शंख घोष का बुधवार सुबह निधन हो गया। 89 वर्षीय घोष 14 अप्रैल को कोविड-19 से संक्रमित पाए गए थे। स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों ने बताया कि घोष डॉक्टरों की सलाह पर कोलकाता स्थित अपने घर पर ही पृथक-वास में रह रहे थे। घोष पहले से कई रोगों से पीडि़त थे। कुछ महीने पहले ही स्वास्थ्य की स्थिति बिगडऩे के कारण उन्हेंं अस्पताल में भी भर्ती कराया गया था। घोष को रवींद्र नाथ टैगोर की साहित्यिक विरासत को आगे बढ़ाने वाला रचनाकार माना जाता है।
विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर मुखरता से अपनी बात रखने वाले घोष को 2011 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया और 2016 में प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया। अपनी पुस्तक बाबरेर प्रार्थना के लिए उन्हेंं साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। इधर, उनके निधन की खबर सामने आते ही शोक की लहर छा गई। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, राज्यपाल जगदीप धनखड़ सहित अन्य हस्तियों ने गहरा शोक जताते हुए उनके निधन को साहित्य जगत के लिए बड़ी क्षति बताया है।
मोदी ने ट्वीट कर कहा, 'बांग्ला और भारतीय साहित्य में योगदान के लिए शंख घोष को हमेशा याद किया जाएगा। उनकी कृतियों को खूब पढ़ा जाता था और उनकी सराहना भी की जाती थी। उनके निधन से दुखी हूं। उनके परिजनों और मित्रों के प्रति मेरी संवेदनाएं। वहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शोक जताते हुए कहा कि कोविड से निधन के बावजूद पूरे राजकीय सम्मान के साथ घोष का अंतिम संस्कार किया जाएगा।
बता दें कि घोष आदिम लता- गुलमोमय और मूर्ख बारो समझिक नै जैसी रचनाओं के लिए जाने जाते हैं। उनकी रचनाओं का अंग्रेजी और हिंदी समेत अन्य भाषाओं में अनुवाद हुआ है। घोष के परिवार में उनकी बेटियां सेमांति और श्राबंति तथा पत्नी प्रतिमा हैं। घोष का जन्म छह फरवरी 1932 को चंद्रपुर में हुआ था जो अब बांग्लादेश में है।
साहित्य जगत में शोक की लहर
इधर, उनके निधन पर साहित्य जगत में शोक की लहर छा गई। साहित्यकार सुबोध सरकार ने कहा कि कोविड-19 ने ऐसे वक्त में घोष को छीन लिया जब उनकी सबसे अधिक जरूरत थी क्योंकि राज्य फासीवाद के खतरे का सामना कर रहा है। सरकार ने कहा, घोष मृदुभाषी थे लेकिन उनकी कलम की धार तेज थी। उन्होंने हमेशा असहिष्णुता के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने मुक्त एवं स्वतंत्र सोच के लिए सभी विमर्शों और आंदोलनों में हिस्सा लिया।