Bengal Politics: केंद्र से टकराव का पुराना खेल, इसके कई उदाहरण देश के सियासी दस्तावेजों में मौजूद

इस टकराव की वजह से यहां के लोग केंद्रीय योजनाओं से वंचित हो रहे हैं। केंद्र और राज्य विकास के दो पहिए हैं। इसीलिए दोनों को समान रूप से एक साथ मिलकर चलना होगा अन्यथा यह राज्य समृद्ध नहीं हो पाएगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 08 Jun 2021 11:44 AM (IST) Updated:Tue, 08 Jun 2021 11:44 AM (IST)
Bengal Politics: केंद्र से टकराव का पुराना खेल, इसके कई उदाहरण देश के सियासी दस्तावेजों में मौजूद
पिछले एक दशक से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्र सरकार से टकराव के मामले में रिकार्ड ही नहीं बना रहीं

कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। हमारे देश के संविधान में संघीय व्यवस्था के तहत केंद्र और राज्य की सरकारों के बीच अधिकारों और शक्तियों का बंटवारा कुछ इस तरह किया गया है कि दोनों में कभी टकराव की स्थिति उत्पन्न न हो, बावजूद इसके केंद्र व राज्यों में सत्तारूढ़ दलों ने इस संघीय व्यवस्था की धज्जियां उड़ाने में कभी गुरेज नहीं किया। इसके कई उदाहरण देश के सियासी दस्तावेजों में मौजूद हैं। अगर बात बंगाल की करें तो यहां तो स्थिति और भी गंभीर रही है। यहां केंद्र की कांग्रेस सरकार ने राज्य सरकार को बर्खास्त भी किया था। वहीं तीन दशकों से अधिक समय तक केंद्र से वामपंथी सरकार ने संघीय व्यवस्था को ताक पर रखकर टकराव का खेल खेला था।

अब पिछले एक दशक से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्र सरकार से टकराव के मामले में रिकार्ड ही नहीं बना रहीं, बल्कि संघीय व्यवस्था को धता बताकर कानून तक बदल दिया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण रियल एस्टेट क्षेत्र को विनियमित करने के लिए बनाए गए केंद्रीय कानून (रेरा), 2016 के स्थान पर वर्ष 2017 में पारित वेस्ट बंगाल हाउसिंग इंडस्ट्रीज रेगुलेशन एक्ट (हीरा) है, जिसे पिछले माह सुप्रीम कोर्ट ने रद ही नहीं किया, बल्कि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने इस पर टिप्पणी भी की। उन्होंने कहा, ‘केंद्रीय कानून अगर किसी विषय पर है तो राज्य वैसा कानून नहीं बना सकता। जिस तरह इस कानून को लागू कर राज्य विधायिका ने समानांतर सिस्टम बनाया और इस तरह से संसद की जो शक्ति है उसमें दखल दिया है और ये संसद की शक्ति का अतिक्रमण है।’ यह कानून तो एक बानगी मात्र है। अगर गौर करेंगे तो बंगाल में केंद्रीय कानूनों, आदेशों व दिशानिर्देशों को ताक पर रखने की फेरहिस्त काफी लंबी है।

ऐसा नहीं है कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद ही टकराव हो रहा है। इससे पहले केंद्र में जब कांग्रेस सरकार थी तो विवाद ऐसा गहराया था कि 2012 में ममता ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार से नाता ही तोड़ लिया था और यहां तक कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ अपना बांग्लादेश दौरा ऐन वक्त पर रद कर दिया था। केंद्र के साथ टकराव जो खेल वामपंथी शासन से शुरू हुआ वह आज भी बदस्तूर जारी है। वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने बाद से ममता सीधा मोर्चा खोल रखा है।

यहां तक कि वर्ष 2018 में सीबीआइ जांच को लेकर दी गई सहमति भी वापस ले ली, जिसके चलते अब सीबीआइ ममता सरकार की अनुमति के बिना नए मामले की जांच नहीं कर सकती। हालांकि तीसरी बार पांच मई को जब ममता ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो ऐसा लगा कि पिछले सात वर्षो में मोदी सरकार के साथ जो भी अदावत रही है, वह समाप्त हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब तो कशीदगी और बढ़ चुकी है। टकराव की ताजी घटना यास चक्रवात की समीक्षा बैठक को लेकर शुरू हुई है।

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘यास’ की तबाही के बाद 28 मई को बंगाल पहुंचे थे, चक्रवात से हुए नुकसान की समीक्षा के लिए बैठक बुलाई गई थी, जिसमें न तो खुद ममता बनर्जी और न ही अपने किसी अधिकारी को शरीक होने दिया। इसे लेकर केंद्र सरकार ने तत्कालीन मुख्य सचिव अलापन बंद्योपाध्याय को दिल्ली तलब कर दिया। फिर क्या था सीधे-सीधे सुश्री बनर्जी ने केंद्र को चुनौती देते हुए अलापन को रिटायरमेंट दे दिया और तीन वर्षो के लिए अपना मुख्य सलाहकार नियुक्त कर लिया। उधर, केंद्रीय स्मार्ट सिटी, आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि जैसी योजनाएं बंगाल में लागू नहीं की गईं। बाद में काफी हो-हल्ला के बाद सिर्फ किसान सम्मान निधि योजना लागू की गई है। यही नहीं जिन केंद्रीय योजनाओं को ममता ने सूबे में लागू किया उन सभी के नाम बदल दिए। यह सब बातें बताने को काफी है कि ममता केंद्र और उनकी योजनाओं को लेकर कितना गंभीर है? आखिर तृणमूल प्रमुख ऐसा क्यों कर रही हैं? केंद्र के साथ टकराव का एक भी मौका वह नहीं छोड़ती हैं और फिर खुद ही संघीय ढांचा की दुहाई देती हैं। इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

सारधा चिटफंड घोटाला और नारद स्टिंग कांड में सुश्री बनर्जी का सीबीआइ कार्रवाई के खिलाफ धरना-प्रदर्शन भी केंद्र के साथ टकराव का ही हिस्सा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ममता का केंद्र से टकराव का सिर्फ एक कारण सियासी नफा-नुकसान और खुद को सबसे बड़ा मोदी विरोधी के रूप में स्थापित करना है। इससे पूर्व वाममोर्चा के शासनकाल में जब केंद्र सरकार ने कंप्यूटरीकरण की शुरुआत की थी तो सबसे पहले बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु विरोध में खड़े हो गए थे और राजीव गांधी सरकार पर जमकर निशाना साधा था। वर्ष 2008 में परमाणु समझौते को लेकर संप्रग सरकार से वामपंथियों का समर्थन वापस लेना भला कौन भूल सकता है। इन सभी टकराव के पीछे वोट बैंक की राजनीति रही है। अब ममता केंद्र को चुनौती दे रही हैं। नतीजन औद्योगिक विकास में बंगाल पिछड़ चुका है। इस टकराव की वजह से यहां के लोग केंद्रीय योजनाओं से वंचित हो रहे हैं। केंद्र और राज्य विकास के दो पहिए हैं। इसीलिए दोनों को समान रूप से एक साथ मिलकर चलना होगा, अन्यथा यह राज्य समृद्ध नहीं हो पाएगा।

[राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]

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