Bengal Chunav 2021: नहीं किया आचार संहिता का उल्लंघन, लोकतंत्र में घेराव अपनी बात रखने का वैध तरीका : ममता

मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने केंद्रीय बल को लेकर बयान पर चुनाव आयोग की नोटिस का जवाब दिया है। उन्होंने जवाब में लिखा-सीएपीएफ के खिलाफ मतदाताओं को उकसाने अथवा प्रभावित करने का कोई प्रयास नहीं हुआ है।

By Vijay KumarEdited By: Publish:Sat, 10 Apr 2021 07:09 PM (IST) Updated:Sat, 10 Apr 2021 07:09 PM (IST)
Bengal Chunav 2021: नहीं किया आचार संहिता का उल्लंघन, लोकतंत्र में घेराव अपनी बात रखने का वैध तरीका : ममता
ममता बनर्जी ने केंद्रीय बल को लेकर बयान पर चुनाव आयोग की नोटिस का जवाब दिया

राज्य ब्यूरो, कोलकाता : मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने केंद्रीय बल को लेकर बयान पर चुनाव आयोग की नोटिस का जवाब दिया है। उन्होंने जवाब में लिखा-'सीएपीएफ के खिलाफ मतदाताओं को उकसाने अथवा प्रभावित करने का कोई प्रयास नहीं हुआ है। यह स्पष्ट है कि मैंने आदर्श आचार संहिता का कोई उल्लंघन नहीं किया है। गौरतलब है कि ममता बनर्जी ने एक चुनावी सभा में कहा था कि सीआरपीएफ के जवान अगर मतदान करने में बाधा दें तो उनका घेराव करें। इसे लेकर चुनाव आयोग ने उनके खिलाफ आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए नोटिस जारी किया था।

मेरी शिकायतों पर नहीं हुई कोई कार्रवाई

ममता ने कहा-'मैं सीआरपीएफ के प्रति बेहद सम्मान की भावना रखती हूं और देश की सुरक्षा में उनके योगदान से भली-भांति परिचित हूं लेकिन गत छह अप्रैल को तारकेश्वर थाने के अंतर्गत रामनगर में जो हादसा हुआ, उसने मुझे चौंका दिया है। एक छोटी सी बच्ची को सीआरपीएफ के जवान द्वारा परेशान किया गया, जिसे लेकर हमने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी लेकिन आज की तारीख में उस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यहां तक कि चुनाव आयोग की ओर से भी इस मामले में कोई एडवाइजरी जारी नहीं की गई।

पहले, दूसरे और तीसरे चरण के मतदान में सीएपीएफ पर लोगों को डराने-धमकाने के आरोप लगे। इसके साथ-साथ उनपर किसी एक पार्टी के पक्ष में वोट डलवाने के भी आरोप लगे, इसे लेकर भी हमने थाने में कई शिकायतें कीं लेकिन उनमें से भी कुछ ही शिकायतों पर संज्ञान लिया गया।

ममता ने आगे कहा-'मैंने अपने भाषण में महिला मतदाताओं से केवल यही कहा था कि अगर आपको वोट डालने के अधिकार से रोका जाए तो जो आपको रोकता है, फिर चाहे वह सीएपीएफ ही क्यों न हो, उसका घेराव करें क्योंकि लोकतंत्र में घेराव अपनी बात रखने का वैध तरीका है। 'घेरो शब्द का इस्तेमाल बंगाल की राजनीति में 1960 से होता रहा है। लोग अपनी बात प्रशासन तक पहुंचाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं।

मैंने केवल इस बात पर जोर दिया कि मतदाताओं को उनके अधिकार से नहीं रोका जाना चाहिए, फिर चाहे वह सीएपीएफ ही क्यों न हो। अगर वह भी ऐसा करती है तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और मेरे घेरो कहने का मतलब वास्तविक रूप से सीएपीएफ के जवानों को घेरने से नहीं था. इसलिए मैं साफ कर देना चाहती हूं कि सीएपीएफ के जवानों के खिलाफ मतदाताओं को भड़काने, उकसाने का कोई प्रयास नहीं किया गया और इसलिए विरोधियों द्वारा लगाए गए इस तरह के आरोप निराधार हैं और मैं इन्हें अस्वीकार करती हूं। मेरा इरादा केवल लोकतंत्र की पवित्रता और संविधान की आत्मा को बनाए रखने से था।

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