West Bengal: बुजुर्गों को है अपने घर में रहने का पूरा अधिकार, बेघर हो सकते हैं पुत्र और बहू: कलकत्ता हाई कोर्ट

West Bengal कलकत्ता हाई कोर्ट के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी भी बुजुर्ग व्यक्ति को घर में रहने का पूरा अधिकार है। नदिया के बुजुर्ग बेटे व बहू की प्रताड़ना से बेघर हो गए थे। उन्होंने इसके खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय में मामला दायर किया था।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Sun, 25 Jul 2021 08:42 PM (IST) Updated:Sun, 25 Jul 2021 08:42 PM (IST)
West Bengal: बुजुर्गों को है अपने घर में रहने का पूरा अधिकार, बेघर हो सकते हैं पुत्र और बहू: कलकत्ता हाई कोर्ट
बुजुर्गों को है अपने घर में रहने का पूरा अधिकार, बेघर हो सकते हैं पुत्र और बहू: कोर्ट। फाइल फोटो

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। वृद्ध नागरिकों को अपने घर में रहने का अधिकार है। जरूरत पड़ने पर वह अपने बेटे और बहू को घर से बेदखल भी कर सकते हैं। यह बात कलकत्ता उच्च न्यायालय ने गत दिनों एक मामले की सुनवाई करते हुए कही। कोर्ट के मुताबिक, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी भी बुजुर्ग व्यक्ति को घर में रहने का पूरा अधिकार है। नदिया के एक बुजुर्ग अपने बेटे और बहू की प्रताड़ना से बेघर हो गए थे। उन्होंने इसके खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय में मामला दायर किया था। मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस राजशेखर मंथा ने कहा कि एक वरिष्ठ नागरिक को अपने घर में अच्छे से रहने का अधिकार है। अन्यथा संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है। उन्होंने आगे टिप्पणी की कि जीवन के आखिरी दिनों में एक नागरिक को अदालत जाने के लिए मजबूर करना बेहद दर्दनाक है।

अदालत ने बेटे और बहू को घर से बेदखल करने का निर्देश दिया

अदालत ने ताहिरपुर थाने के प्रभारी अधिकारी को बेटे और बहू को घर से बेदखल करने का निर्देश दिया, ताकि वृद्ध शांति से जीवन व्यतीत कर सकें। न्यायमूर्ति मंथा ने कहा कि कई मामलों में पुत्र व वधू को घर पर रहने का कानूनी अधिकार है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या उन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। न्यायाधीश ने कहा कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007 के तहत एक बुजुर्ग व्यक्ति को अपने घर में रहने का पूरा अधिकार है। लेकिन 2005 का घरेलू हिंसा अधिनियम, जो पुत्र व वधू की सुरक्षा का आह्वान करता है, आवास के लिए कोई विशिष्ट स्पष्टीकरण प्रदान नहीं करता है। 

गौरतलह है कि गत दिनों बंगाल में एक केस की वर्चुअल सुनवाई के दौरान बार-बार तकनीकी गड़बड़ी की वजह से एक जज इतने नाराज़ हो गए कि उन्होंने इस तरह से सुनवाई करने के तरीके को ‘सर्कस’ कह दिया। उन्होंने न सिर्फ अधिकारियों को खूब फटकार लगाई बल्कि बार-बार आ रही दिक्कतों के लिए शॉ कॉज नोटिस भी जारी कर दिया है। कलकत्ता उच्च न्यायालय के जज सब्यसाची भट्टाचार्य ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान तकनीकी गड़बड़ी होने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि ये गड़बड़ी डेली रूटीन बन गयीं हैं और अब मैं इस सर्कस का हिस्सा बना नहीं रह सकता।

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