कलकत्ता हाई कोर्ट का अहम फैसला: मृत बेटे के संरक्षित वीर्य पर पिता का अधिकार नहीं

एक व्यक्ति ने अपने मृत बेटे के संग्रहित वीर्य पर अपना अधिकार जताते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सूत्रों के अनुसार उनका मृत बेटा लंबे समय से थैलेसीमिया से पीड़ित था और नई दिल्ली दिल्ली के एक अस्पताल में उसका इलाज चल रहा था।

By PRITI JHAEdited By: Publish:Fri, 22 Jan 2021 10:02 AM (IST) Updated:Fri, 22 Jan 2021 10:13 AM (IST)
कलकत्ता हाई कोर्ट का अहम फैसला: मृत बेटे के संरक्षित वीर्य पर पिता का अधिकार नहीं
मृत बेटे के संरक्षित वीर्य पर पिता का कोई अधिकार नहीं है।

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। मृत बेटे के संरक्षित वीर्य पर पिता का कोई अधिकार नहीं है। कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक मृत थैलेसीमिया मरीज के पितृत्व अधिकारों पर यह अभूतपूर्व फैसला सुनाया, जिसने समाज में एक हलचल पैदा कर दी है। दरअसल एक व्यक्ति ने अपने मृत बेटे के संग्रहित वीर्य पर अपना अधिकार जताते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उनका मृत बेटा लंबे समय से थैलेसीमिया से पीड़ित था और जीवित काल में ही उसने अपनी वंश वृद्धि के लिए वीर्य को संरक्षित करने का निर्णय लिया। हाई कोर्ट ने कहा कि मृतक की पत्नी या किसी और को गर्भाधान के लिए संरक्षित वीर्य दिया जा सकता है, लेकिन इस मामले में सबसे पहले मृतक की पत्नी की सहमति की आवश्यकता है। इस मामले में कोई व्यक्ति पुत्र के रिश्ते के आधार पर मृतक के पितृत्व में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।

अहम बिंदु: 

-वंश वृद्धि के लिए वीर्य के इस्तेमाल पर पत्नी की रजामंदी जरूरी

-थैलेसीमिया से हो गई थी युवक की मौत, वंश वृद्धि के लिए संरक्षित किया था वीर्य

-पिता ने बेटे के संग्रहित वीर्य पर अधिकार जताते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया

कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सब्यसाची भट्टाचार्य ने इस मामले की सुनवाई पर फैसला सुनाते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा कि मृत व्यक्ति के संरक्षित वीर्य पर पहला अधिकार उसकी पत्नी का है। क्योंकि बच्चा पैदा करने का फैसला उसके कंधों पर टिका होता है। लिहाजा मृत बेटे के पितृत्व (वीर्य) पर पिता कोई दावा नहीं कर सकता।

पिता ने बेटे के संग्रहित वीर्य पर अधिकार जताते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया

यहां उल्लेख करना उचित है कि एक व्यक्ति ने अपने मृत बेटे के संग्रहित वीर्य पर अपना अधिकार जताते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सूत्रों के अनुसार उनका मृत बेटा लंबे समय से थैलेसीमिया से पीड़ित था और नई दिल्ली दिल्ली के एक अस्पताल में उसका इलाज चल रहा था। वहां जीवित काल में उसने अपने वंश की वृद्धि के लिए वीर्य को संरक्षित करने का निर्णय लिया। उसके बाद उसकी पत्नी तथा उसके पिता की सहमति पर उसका वीर्य संरक्षित कर दिया गया। बाद में थैलेसीमिया से पीड़ित युवक की मौत हो गई। सूत्रों के मुताबिक बाद में उसके पिता ने संरक्षित वीर्य पर अपना अधिकार पाने के लिए कलकत्ता हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जिसके बाद न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई में अभूतपूर्व फैसला सुनाया।

मृत व्यक्ति के संरक्षित वीर्य पर पहला अधिकार पत्नी का

कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मृतक की पत्नी या किसी और को गर्भाधान के लिए संरक्षित वीर्य दिया जा सकता है, लेकिन उसके लिए सबसे पहले मृतक की पत्नी की सहमति की आवश्यकता है। क्योंकि, मृत व्यक्ति के संरक्षित वीर्य पर पहला अधिकार उसकी पत्नी का है। इस मामले में कोई व्यक्ति पुत्र के रिश्ते के आधार पर मृतक के पितृत्व में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।

न्यायाधीश सब्यसाची भट्टाचार्य को फैसला सुनाते समय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 पर विशेष जोर देते भी देखा गया। बताते चलें कि संविधान के अनुच्छेद 12 में तीन भागों में मूल अधिकारों का वर्णन है। 

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