बलिदान दिवस पर भाजपा ने शुरू किया पौधरोपण, कहा, बेकार नहीं जाएगा डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के 68 वें बलिदान दिवस के उपलक्ष में भारतीय जनता पार्टी सिलीगुड़ी सांगठनिक जिला कमेटी की ओर से पौधरोपण अभियान का शुभारंभ किया गया। बुधवार को शहर के वार्ड 46 स्थित श्री गुरु विद्या मंदिर विद्यालय के सामने पौधरोपण अभियान चलाया गया।

By Vijay KumarEdited By: Publish:Wed, 23 Jun 2021 04:45 PM (IST) Updated:Wed, 23 Jun 2021 04:45 PM (IST)
बलिदान दिवस पर भाजपा ने शुरू किया पौधरोपण, कहा, बेकार नहीं जाएगा डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान
सिलीगुड़ी श्री गुरु विद्या मंदिर के सामने पौधरोपण करते भाजपा जिला अध्यक्ष प्रवीण अग्रवाल

जागरण संवाददाता ,सिलीगुड़ी: डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के 68 वें बलिदान दिवस के उपलक्ष में भारतीय जनता पार्टी सिलीगुड़ी सांगठनिक जिला कमेटी की ओर से पौधरोपण अभियान का शुभारंभ किया गया। बुधवार को शहर के वार्ड 46 स्थित श्री गुरु विद्या मंदिर विद्यालय के सामने पौधरोपण अभियान में जिलाध्यक्ष प्रवीण अग्रवाल, जिला महासचिव राजू शाह, जिला सचिव कन्हैया पाठक, भाजपा नेता नांटु पाल, पंकज शाह, रवि राय, शिखा राय, मुन्ना भद्र, दिनेश सिंह सहित अन्य कार्यकर्ता मौजूद थे।

इस मौके पर जिला अध्यक्ष प्रवीण अग्रवाल ने कहा कि यह कार्यक्रम 6 जुलाई तक चलेगा। इस अभियान के तहत पूरे जिले में 10,000 पौधरोपण किए जाएंगे। भाजपा जिला कार्यालय में भी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर उनके सपनों को पूरा करने के लिए संकल्प लिया गया।

आज भी मुखर्जी का निधन रहस्य के घेरे में

भाजपा नेताओं ने कहा कि डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी निधन को लगभग 7 दशक बीतने के बाद भी उनकी मौत पहेली बनी हुई है। कुछ समय पहले कोलकाता हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें याचिकाकर्ता ने मांग की है कि डॉ मुखर्जी की मौत की जांच के लिए कमीशन बने। इससे तय हो सकेगा कि उनकी मौत प्राकृतिक थी या साजिश। वैसे भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी तक ने जनसंघ के संस्थापक मुखर्जी के किसी साजिश का शिकार होने का संदेह जताया था।आजादी के समय से देश के इतिहास में जिन तीन नेताओं की मौत पहेलियां बनकर रह गईं, उनमें नेताजी सुभाषचंद्र बोस, पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री का नाम शामिल है और उसी फेहरिस्त में तीसरा नाम मुखर्जी का है।

सवाल तो यही था कि मुखर्जी को जेल से ट्रांसफर क्यों किया गया। उन्हें एक कॉटेज में क्यों रखा गया? दूसरा ये कि डॉ. अली ने यह जानने के बावजूद कि मुखर्जी को स्ट्रेप्टोमाइसिन सूट नहीं करती, वो दवा क्यों दी? तीसरा सवाल ये था कि एक महीने से ज़्यादा वक्त तक मुखर्जी को सही और समय पर इलाज क्यों नहीं दिया गया? चौथा ये कि उनकी देखभाल में सिर्फ एक ही नर्स क्यों थी, वह भी रात के वक्त जब मुखर्जी की हालत गंभीर थी? ये सवाल भी था कि मौत का समय अलग अलग क्यों बताया गया? हिरासत में मुखर्जी की मौत की खबर ने पूरे देश में खलबली पैदा कर दी थी। कई नेताओं और समाज व सियासत से जुड़े कई समूहों ने मुखर्जी की मौत की निष्पक्ष जांच कराए जाने की मांग की थी। मुखर्जी की मां जोगमाया देवी ने भी तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को इस मांग संबंधी चिट्ठी लिखी।लेकिन जवाब में नेहरू ने यही कहा कि मुखर्जी की मौत कुदरती थी, कोई रहस्य नहीं कि जांच करवाई जाए।

कम समय में पाई थी प्रतिष्ठा 

जुलाई 1901 को कोलकाता के एक संभ्रांत बंगाली परिवार में जन्मे मुखर्जी के पिता आशुतोष मुखर्जी राज्य में शिक्षाविद् बतौर जाने जाते थे। लिखने-पढ़ने के माहौल में बढ़ते मुखर्जी केवल 33 साल की उम्र में कोलकाता यूनिवर्सिटी के कुलपति बन गए। वहां से वो कोलकाता विधानसभा पहुंचे। यहां से उनका राजनैतिक करियर शुरू हुआ लेकिन मतभेदों के कारण वे लगातार अलग होते रहे।

कश्मीर में अलग कायदे-कानून के विरोधी थे 

मुखर्जी अनुच्छेद 370 का विरोध करते रहे। वे चाहते थे कि कश्मीर भी दूसरे राज्यों की तरह ही देश के अखंड हिस्से की तरह देखा जाए और वहां भी समान कानून रहे. यही कारण है कि जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अपनी अंतरिम सरकार में मंत्री पद दिया तो कुछ ही समय में उन्होंने इस्तीफा दे दिया।कश्मीर मामले को लेकर मुखर्जी ने नेहरू पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया था।साथ ही कहा था कि एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे।

कश्मीर जाते हुए गिरफ्तारी 

इस्तीफा देने के बाद वे कश्मीर के लिए निकल पड़े। वे चाहते थे कि देश के इस हिस्से में जाने के लिए किसी इजाजत की जरूरत न पड़े। नेहरू की नीतियों के विरोध के दौरान मुखर्जी कश्मीर जाकर अपनी बात कहना चाहते थे, लेकिन 11 मई 1953 को श्रीनगर में घुसते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।तब, वहां शेख अब्दुल्ला की सरकार थी। दो सहयोगियों समेत गिरफ्तार किए गए मुखर्जी को पहले श्रीनगर सेंट्रल जेल भेजा गया और फिर वहां से शहर के बाहर एक कॉटेज में ट्रांसफर ​कर दिया गया।

लगातार बिगड़ती गई सेहत 

एक महीने से ज़्यादा कैद रखे गए मुखर्जी की सेहत लगातार बिगड़ रही थी। उन्हें बुखार और पीठ में दर्द की शिकायतें बनी हुई थीं। 19 व 20 जून की  रात उन्हें प्लूराइटिस होना पाया गया। जो उन्हें 1937 और 1944 में भी हो चुका था। डॉक्टर अली मोहम्मद ने उन्हें स्ट्रेप्टोमाइसिन का इंजेक्शन दिया था। मुखर्जी ने डॉ. अली को बताया था कि उनके फैमिली डॉक्टर का कहना रहा था कि ये दवा मुखर्जी के शरीर को सूट नहीं करती थी। अली ने उन्हें भरोसा दिलाकर ये इंजेक्शन दिया था।

और फिर हो गया हार्ट अटैक 

22 जून को मुखर्जी को सांस लेने में तकलीफ महूसस हुई। अस्पताल में शिफ्ट करने पर हार्ट अटैक होना पाया गया। राज्य सरकार ने घोषणा की कि 23 जून की अलसुबह 3:40 बजे दिल के दौरे से मुखर्जी का निधन हो गया।अस्पताल में इलाज के दौरान एक ही नर्स मुखर्जी की देखभाल के लिए थीं राजदुलारी टिकू। टिकू ने बाद में अपने बयान में कहा कि जब मुखर्जी पीड़ा में थे तब उसने डॉ. जगन्नाथ ज़ुत्शी को बुलाया था।. ज़ुत्थी ने नाज़ुक हालत देखते हुए डॉ. अली को बुलाया और कुछ देर बाद 2:25 बजे मुखर्जी चल बसे थे।

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