West Bengal By Elections 2021: बंगाल की चुनावी सियासत में नेताओं की जुबान पर तालिबान
West Bengal By Elections 2021 अगर तालिबान शब्द का सही अर्थ तालाशें तो तालिबान पश्तो भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है ज्ञानार्थी यानी छात्र। ऐसे ज्ञानार्थी जो इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा पर यकीन करते हैं। फिर हमारे देश में तालिबान शब्द का इस्तेमाल क्यों?
कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। West Bengal By Elections 2021 भारत की राजनीति में ‘तालिबान’ शब्द अचानक से बहुत प्रासंगिक हो गया है। बंगाल की सियासत में भी इस शब्द का इस्तेमाल शुरू हो गया है। पिछले सप्ताह महानगर की भवानीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव के प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने कहा था-नरेन्द्र मोदी जी, अमित शाह जी, हम आपको भारत को ‘तालिबान’ जैसा नहीं बनाने देंगे। भारत एक रहेगा। गांधी जी, नेताजी, अबुल कलाम आजाद, विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, सरदार वल्लभभाई पटेल, गुरु नानक जी, गौतम बुद्ध, महावीर जैन, सब एक साथ इस देश में रहेंगे।
हम आपको भारत को बांटने नहीं देंगे। अभी बीते शनिवार को ममता को रोम यात्र की केंद्र सरकार से अनुमति नहीं मिली तो उन्होंने कहा-आप (केंद्र) मुङो रोक नहीं सकते। मैं विदेश जाने के लिए उत्सुक नहीं हूं। इसका संबंध राष्ट्र के सम्मान से था। आप (पीएम मोदी) हिंदुओं की बात करते हैं, मैं भी एक हिंदू महिला हूं। आपने मुङो अनुमति क्यों नहीं दी? आप ईष्र्या करते हैं। भारत में ‘तालिबानी’ भाजपा नहीं चल सकती।
बंगाल में अभी मार्च-अप्रैल में हुए विधानसभा चुनाव में तो जाति-धर्म, तुष्टीकरण, जय श्रीराम, जय बांग्ला और पाकिस्तान की भी खूब बातें हुई थीं। भाजपा और तृणमूल के नेता एक-दूसरे पर तुष्टीकरण, पाकिस्तान, जय श्रीराम को लेकर हमला बोल रहे थे, परंतु अब पांच माह बाद हो रहे उपचुनाव में ‘तालिबान’ की एंट्री हो गई है और नेता इस शब्द का इस्तेमाल अपने-अपने हिसाब से खूब कर रहे हैं। कुछ दिनों पहले त्रिपुरा में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं पर कथित हमलों को लेकर तृणमूल नेताओं ने बिप्लव देब सरकार को ‘तालिबानी’ बता दिया, वहीं बंगाल में भाजपा बार-बार ममता पर तालिबानी शासन चलाने का आरोप लगाती रही है। हालांकि तालिबान शब्द पूरी तरह से नया नहीं है।
1996 में अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा करने का उनका प्रयास खूनी था, जिसमें मानवाधिकारों, विशेषकर महिलाओं के अधिकारों का गला घोंट दिया गया था। उनके विरोध का परिणाम मृत्युदंड था। नतीजतन तालिबान शब्द जल्द ही राजनीति में एकतरफा शासन के लिए प्रासंगिक हो गया। पिछले सप्ताह मंगलवार को आधिकारिक रूप से राज्य भाजपा अध्यक्ष का पद संभालने वाले सुकांत मजूमदार ने कहा-‘विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में एक के बाद एक भाजपा कार्यकर्ता मारे जा रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाली तालिबानी सरकार यहां सत्ता में है। राज्य को तालिबान शासन से मुक्त किया जाना चाहिए।’ इस पर तृणमूल के राज्यसभा सदस्य सुखेंदु शेखर राय ने कहा-पूरे देश में भाजपा की नेतृत्व वाली तालिबान की सरकार है।
सुकांत के बयान पर राष्ट्रीय राजनीति से भी तीखी प्रतिक्रिया आई थी। शिवसेना नेता संजय राउत ने इसे लेकर सीधे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पर निशाना साधते हुए कहा था-लोकतंत्र में ऐसी भाषा के प्रयोग को अशोभनीय माना जाना चाहिए। यह नहीं भूलना चाहिए कि बंगाल की जनता ने ममता बनर्जी की सरकार को जीत दिलाई है। उन्होंने सवाल किया-तो क्या भाजपा इस बार बंगाल के लोगों को तालिबानी कह रही है? समाजवादी पार्टी भी इस मुद्दे पर ममता के साथ दिखी। पार्टी के नेता उदयबीर सिंह ने प्रतिक्रिया दी थी-‘किसी भी राजनीतिक दल का कर्तव्य है कि वह सरकार और लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार के लोगों के प्रति सम्मान दिखाए। दरअसल भाजपा नेताओं की मानसिकता ही तालिबान जैसी है।’
महाराष्ट्र में भी विपक्षी भाजपा ने तालिबान वाले बयान को लेकर सत्तारूढ़ शिवसेना-कांग्रेस गठबंधन से भिड़ंत शुरू कर दी है। केंद्रीय मंत्री नारायण राणो की गिरफ्तारी को लेकर दोनों पक्षों में मारपीट हुई थी। इस संदर्भ में भाजपा के राष्ट्रीय सचिव जीटी रवि ने उद्धव ठाकरे सरकार पर तालिबान की तरह शासन चलाने का आरोप लगाया था। इसी बीच गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को तालिबान से प्रेरित बता दिया। इस पर शिवसेना ने अपने मुखपत्र के संपादकीय में जावेद की तीखी आलोचना करते हुए लिखा था कि हिंदुत्व के साथ तालिबान की तुलना करना हिंदू संस्कृति का अनादर है। सैकड़ों किलोमीटर दूर भले ही उसे शासन चलाने के लिए आतंक और जुल्म का सहारा लेना पड़ रहा हो, लेकिन भारत के नेताओं की जुबां पर तालिबान का बोलबाला है। इस शब्द से किसे फायदा और किसे नुकसान होगा, यह तो वक्त ही बताएगा।
[राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]