बंगाल में दलबदलू नेताओं मुकुल रॉय व शिशिर-सुनील को लेकर तृणमूल और भाजपा में उठापटक जारी

Bengal Politics बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की ओर से शिशिर अधिकारी और सुनील मंडल को लेकर दबाव बनाया जा रहा है तो इधर अब भाजपा ने भी मुकुल रॉय को लेकर दबाव बनाने की रणनीति अपना रखी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 16 Jun 2021 12:36 PM (IST) Updated:Wed, 16 Jun 2021 12:36 PM (IST)
बंगाल में दलबदलू नेताओं मुकुल रॉय व शिशिर-सुनील को लेकर तृणमूल और भाजपा में उठापटक जारी
यदि दलबदल कानून लोकसभा में लागू होगा तो विधानसभा में भी क्यों नहीं?

कोलकाता, स्टेट ब्यूरो। भाजपा में शामिल होने वाले शिशिर अधिकारी और सुनील मंडल का सांसद पद खारिज करने के लिए पिछले छह माह में तृणमूल कांग्रेस की ओर से कई बार लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखा जा चुका है। यहां तक कि लोकसभा में तृणमूल संसदीय दल के नेता सुदीप बंद्योपाध्याय स्पीकर को भी फोन कर अपनी मांग रख चुके हैं। परंतु यहां सवाल यह उठ रहा है कि जिस दलबदल विरोधी कानून की तृणमूल कांग्रेस की ओर से दुहाई देकर कार्रवाई की मांग की जा रही है तो बंगाल विधानसभा में उसी कानून के तहत पिछले दस सालों में कितनी कार्रवाई हुई है? 2016 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस और वाममोर्चा के बीस से अधिक विधायकों को तृणमूल में शामिल कराया गया था।

इसे लेकर कई बार वाममोर्चा-कांग्रेस द्वारा तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी से कार्रवाई की मांग की गई, लेकिन एक भी विधायक की सदस्यता खारिज नहीं हुई। अभी पिछले शुक्रवार को ही बिना विधायक पद से इस्तीफा दिए ही मुकुल रॉय भाजपा छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए हैं तो फिर क्या इनकी विधायक पद क्यों नहीं खारिज होनी चाहिए? यदि दलबदल कानून लोकसभा में लागू होगा तो विधानसभा में भी क्यों नहीं? इस मुद्दे पर दोहरा चरित्र क्यों अपनाया जाता रहा है? उधर तृणमूल कांग्रेस की ओर से शिशिर और सुनील को लेकर दबाव बनाया जा रहा है तो इधर अब भाजपा भी मुकुल रॉय को लेकर दबाव बनाने की रणनीति अपना रखी है। जिस दिन से मुकुल गए हैं उसी दिन से भाजपा दलबदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई की मांग शुरू कर दी है। विधानसभा में विपक्ष के नेता और भाजपा विधायक सुवेंदु अधिकारी सबसे अधिक मुखर हैं।

उन्होंने शुक्रवार को ही कहा था कि मुकुल रॉय का पार्टी बदलना दलबदल विरोधी कानून के खिलाफ है। दो या तीन माह में हम विपक्ष के नेता के रूप में इस कानून को बंगाल में लागू कराकर ही दम लेंगे। हालांकि, तृणमूल का मानना है कि यह आसान नहीं है। तृणमूल के एक वरिष्ठ विधायक का कहना है कि दलबदल विरोधी कानून को लागू करने का फैसला सिर्फ स्पीकर ही कर सकते हैं। यह सब उनके निर्णय पर निर्भर करता है कि वह किसके खिलाफ और कब कार्रवाई करेंगे। यह भी सत्य है कि विधानसभा हो या फिर लोकसभा ऐसे मसलों का त्वरित निष्पादन अमूमन नहीं होने के दर्जनों उदाहरण हैं, क्योंकि दलबदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई की शक्ति स्पीकर के हाथों में है और इसके लिए कोई समय भी निर्धारित नहीं है।

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