Bengal Election: बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ, बंगाल के मुसलमान पूरी तरह तृणमूल के साथ

बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ हो गया है कि सूबे के मुसलमान पूरी तरह तृणमूल कांग्रेस के साथ हैं और उन्होंने असादुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम और अब्बास सिद्दीकी के इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आइएसएफ) को विकल्प के तौर पर स्वीकार नहीं किया।

By Vijay KumarEdited By: Publish:Sat, 08 May 2021 07:10 PM (IST) Updated:Sat, 08 May 2021 07:10 PM (IST)
Bengal Election: बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ, बंगाल के मुसलमान पूरी तरह तृणमूल के साथ
एआइएमआइएम और आइएसएफ को विकल्प के तौर पर नहीं किया स्वीकार

राज्य ब्यूरो, कोलकाता : बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ हो गया है कि सूबे के मुसलमान पूरी तरह तृणमूल कांग्रेस के साथ हैं और उन्होंने असादुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम और अब्बास सिद्दीकी के इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आइएसएफ) को विकल्प के तौर पर स्वीकार नहीं किया। वरिष्ठ तृणमूल नेता सिद्दीकुल्ला चौधरी ने बताया-मुस्लिम समुदाय बहुत अच्छी तरीके से जानता है कि ममता बनर्जी ऐसी एकमात्र शख्स हैं, जो बंगाल में भाजपा को रोक सकती हैं।

मुस्लिम समुदाय के लोग संयुक्त मोर्चा पर भरोसा नहीं जता पाए। चौधरी ने आगे कहा-सूबे के कम से कम 95 फीसद मुसलमानों ने ममता बनर्जी के पक्ष में मतदान किया। मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कभी भी सांप्रदायिक ताकतों का समर्थन नहीं किया है। उन्हें स्पष्ट रूप से इस बात का आभास है कि ममता दीदी ही बंगाल में सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ सकती हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस नेता अब्दुल मन्नान ने कहा- लोग हमपर भरोसा नहीं कर पाए क्योंकि संयुक्त मोर्चा उम्मीद के मुताबिक आकार नहीं ले पाया। हमारे कुछ नेता संयुक्त मोर्चा में आइएसएफ को स्वीकार नहीं कर पाए। इसी कारण चुनाव में हमारा यह हश्र हुआ।

वहीं एआइएमआइ एम के नेता असादुद्दीन शेख का कहना है कि मुस्लिम भाजपा से इतने डरे हुए थे कि उन्हें तृणमूल  के अलावा दूसरा कोई अच्छा विकल्प नहीं दिखा। वे नई पार्टियों पर भरोसा नहीं कर पाए। तृणमूल सरकार ने अपने पिछले 10 वर्षों के शासनकाल में मुस्लिम समुदाय के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए कुछ भी नहीं किया, फिर भी उसे मुसलमानों का वोट मिल गया क्योंकि मुसलमान बंगाल की सत्ता पर भाजपा को नहीं देखना चाहते हैं।राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा कि मुस्लिम समुदाय ने अपनी पहचान बचाने के डर से तृणमूल को वोट दिया है। गौरतलब है कि इस बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे 44 विधायक मुस्लिम समुदाय से हैं, जिनमें से 43 तृणमूल  और एक आइएसएफ से हैं।

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