Bengal Chunav: कांटे की टक्कर- दक्षिण 24 परगना में अपना गढ़ बचाने के लिए तृणमूल की जद्दोजहद

दक्षिण 24 परगना में इस बार तृणमूल को मिल रही कड़ी चुनौती। तीन-तीन मंत्रियों की साख दांव पर। जिले की 31 में से शेष 11 सीटों पर चौथे चरण में 10 अप्रैल को है मतदान। कोलकाता से सटा दक्षिण 24 परगना जिला टीएमसी का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है।

By Priti JhaEdited By: Publish:Thu, 08 Apr 2021 09:27 AM (IST) Updated:Thu, 08 Apr 2021 09:27 AM (IST)
Bengal Chunav: कांटे की टक्कर- दक्षिण 24 परगना में अपना गढ़ बचाने के लिए तृणमूल की जद्दोजहद
कोलकाता से सटा दक्षिण 24 परगना जिला टीएमसी का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है।

कोलकाता, राजीव कुमार झा। कोलकाता से सटा दक्षिण 24 परगना जिला सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है। जिले की 31 में से शेष 11 सीटों पर चौथे चरण में 10 अप्रैल को मतदान होने हैं। इन 11 सीटों में से एक जादवपुर को छोड़ 10 पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा है। लेकिन इस बार अपने सबसे मजबूत गढ़ को बचाने के लिए तृणमूल को काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। भाजपा से इस बार तृणमूल को कड़ी चुनौती मिल रही है।

दूसरी ओर, फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आइएसएफ) ने भी तृणमूल की अलग नींद उड़ा रखी है। आइएसएफ, वाममोर्चा-कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा है। इस जिले में मुस्लिमों की अच्छी खासी आबादी की वजह से सिद्दीकी का प्रभाव माना जाता है, जो पहले टीएमसी का समर्थन करते थे। दक्षिण 24 परगना में हिंदुओं की आबादी करीब 63 फीसद है तो मुस्लिमों की आबादी 36 फीसद है। इस जिले की ज्यादातर सीटों पर चुनाव नतीजे मुस्लिम और अनुसूचित जाति के मतदाता ही तय करते हैं। इसलिए टीएमसी किसी भी सूरत में अपने मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट रखना चाहती है। इसके लिए ममता बनर्जी खुले मंच से भी अपील कर चुकी हैं। वहीं, टीएमसी की इस काट के लिए भाजपा ने भी पूरी ताकत झोंकी है। इस जिले में मतुआ समुदाय का भी प्रभाव है। पिछले लोकसभा चुनाव में मतुआ का झुकाव भाजपा की ओर रहा था और भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया था। इधर, इस जिले में इस बार ममता की चुनौती उन नेताओं की वजह से भी बढ़ गई है जो उनका साथ छोड़ चुके हैं।

राज्य के तीन-तीन हेवीवेट मंत्रियों की दांव पर साख

जिले की जिन 11 सीटों पर चुनाव होने हैं उनमें तीन-चार को छोड़ बाकी कोलकाता नगर निगम का ही हिस्सा है। इस चरण में कई बड़े सियासी दिग्गजों की किस्मत दांव पर लगी है, जिनमें तृणमूल सरकार के तीन-तीन हेवीवेट मंत्री शामिल हैं। इसके अलावा बांग्ला सिनेमा जगत की तीन मशहूर अभिनेत्रियां भी किस्मत आजमा रही हैं, जिनमें दो भाजपा से जबकि एक तृणमूल से हैं।

टॉलीगंज सीट पर सबसे दिलचस्प मुकाबला, केंद्र व राज्य के मंत्री आमने-सामने

इस चरण में सबसे दिलचस्प मुकाबला टॉलीगंज सीट पर है जहां ममता बनर्जी के करीबी व राज्य के खेल, युवा व पीएचडी मंत्री अरूप विश्वास की साख दांव पर लगी है। भाजपा की तरफ से इस सीट से केंद्रीय मंत्री व आसनसोल से सांसद बाबुल सुप्रियो मैदान में हैं। लगातार तीन बार से इस सीट से लगातार जीतते आ रहे विश्वास के सामने इस बार बाबुल से पार पाने की बड़ी चुनौती है।

बेहला पश्चिम सीट पर कद्दावर मंत्री व अभिनेत्री आमने-सामने

इसी तरह बेहला पश्चिम सीट पर तृणमूल के कद्दावर नेता व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी के खिलाफ भाजपा की ओर से अभिनेत्री श्रावंती चटर्जी मैदान में हैं, जहां कांटे की टक्कर है। बेहला पूर्व सीट पर तृणमूल ने पूर्व भाजपा नेता व कोलकाता के पूर्व मेयर शोभन चटर्जी की पत्नी रत्ना चटर्जी को उतारा है, जहां भाजपा की ओर से अभिनेत्री पायल सरकार से टक्कर मिल रही है।

कसबा सीट पर मंत्री व जाने-माने कैंसर रोग विशेषज्ञ के बीच मुकाबला

कसबा सीट पर राज्य के मंत्री जावेद अहमद खान के सामने भाजपा ने देश के जाने-माने कैंसर विशेषज्ञ डॉ इंद्रनील खान को उतारा है। खान को इस बार कड़ी चुनौती मिल रही है।

सोनारपुर सीट पर अभिनेत्री लवली मोइत्रा की साख दांव पर

सोनारपुर दक्षिण सीट पर तृणमूल ने बांग्ला अभिनेत्री लवली मोइत्रा पर दांव खेला है, वहीं भाजपा से अंजना बसु मैदान में हैं। यहां लवली की साख दांव पर लगी है।

भांगड़ व मटियाबुर्ज सीट पर आइएसएफ से तृणमूल को मिल रही चुनौती

इधर, भांगड़ व मटियाबुर्ज सीट की बात करें तो यहां मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका निर्णायक है। फिलहाल तृणमूल का यहां कब्जा है लेकिन आइएसएफ से इस बार कड़ी चुनौती मिल रही है। भांगड़ सीट से आइएसएफ के अध्यक्ष नौशाद सिद्दीकी खुद मैदान में हैं। दूसरी ओर, मुस्लिम बहुल इन दोनों सीटों पर तृणमूल व आइएसएफ के बीच मुकाबले में भाजपा भी उम्मीद लगाए बैठी है। यहां मुस्लिम वोटों के बिखराव का भाजपा को लाभ मिल सकता है।

जादवपुर : अपने अंतिम गढ़ को बचाने के लिए माकपा कर रही संघर्ष

जादवपुर सीट की बात करें तो कोलकाता में अपने अंतिम गढ़ को बचाने के लिए माकपा संघर्ष कर रही है। जादवपुर को एक समय में कलकत्ता का लेनिनग्राद कहा जाता था। आज यह क्षेत्र बंगाल में अपनी राजनीतिक भाग्य को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही माकपा और अपने मुख्य विरोधी भाजपा की लहर से घबराई और उसे सत्ता से बाहर रखने के लिए जीतोड़ कोशिश कर रही तृणमूल कांग्रेस के बीच अद्भुत संग्राम की जमीन तैयार कर रहा है, जिसने 10 साल पहले राज्य में वाम शासन को समाप्त कर दिया था। कोलकाता नगर निगम के क्षेत्र में पडऩे वाली सभी अन्य विधानसभा सीटें तृणमूल के हाथों हारने के बाद दक्षिण कोलकाता के अपने इस अंतिम गढ़ को बचाने के लिए माकपा संघर्ष कर रही है। जादवपुर एकमात्र सीट है जो माकपा ने 2016 में फिर से जीतने में कामयाबी हासिल की थी। इस सीट से माकपा की तरफ से निवर्तमान विधायक सुजन चक्रवर्ती मैदान में हैं। वहीं, भाजपा व तृणमूल भी इस सीट पर पूरा जोर लगा रखी है। 

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