Bengal Chunav: राजवंशी तय करेंगे कूचबिहार में कौन करेगा राज, शाह व ममता दोनों ने दशा सुधारने के किए हैं वादे
Bengal Assembly Elections 2021 56 फीसद आबादी वाले इस समाज पर सभी दलों की नजर कूचबिहार जिले में 56 फीसदी मतदाता राजवंशी समाज से आते हैं। कूचबिहार की नौ विधानसभा सीटों पर ये राजवंशी प्रत्याशियों की जीत-हार में अहम भूमिका अदा करते हैं।
कूचबिहार, सुमन मंडल। उत्तर बंगाल के कूचबिहार जिले में 56 फीसदी मतदाता राजवंशी समाज से आते हैं। कूचबिहार की नौ विधानसभा सीटों पर ये राजवंशी प्रत्याशियों की जीत-हार में अहम भूमिका अदा करते हैं। राजनीतिक दलों को इनकी ताकत का अहसास है। भाजपा, तृणमूल और कांग्रेस-वाम गठबंधन इस समाज को अपने साथ जोडऩे में अपनी ताकत झोंके हुए है। पिछले माह 11 फरवरी को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह परिवर्तन यात्रा का शुभारंभ करने यहां आए थे। उस दौरान आयोजित कार्यक्रम में बड़ी संख्या में राजवंशी समाज के लोग भी शामिल हुए।
शाह प्राचीन मदन मंदिर में पूजा अर्चना करने गए, इस दौरान हजारों राजवंशी गले में पारंपरिक पीला गमछा बांधकर जोश के साथ उनका साथ देते नजर आए। शाह असम के छतिपुर तक चले गए थे। अनंत महाराज के पास वे करीब एक घंटा ठहरे। दो भागों में बंटे राजवंशी समाज के बड़े हिस्से की अगुवाई अनंत महाराज करते हैं, इनका समर्थन भाजपा को प्राप्त है। वहीं, दूसरे भाग की अगुवाई बंशीवदन बर्मन करते हैं। बर्मन तृणमूल के नजदीकी हैं। उन्हें सरकार ने राजवंशी भाषा एकेडमी का चेयरमैन भी बनाया है। जिले के भाजपा जिलाध्यक्षा मालती राभा कहती हैं, राजवंशियों को पता है कि उन्हें तृणमूल ने सिर्फ ठगा ही है। आज तक राजवंशी बोली को भाषा का दर्जा नहीं दिला पाई है राज्य सरकार।
बंगाल के रण में तृणमूल व भाजपा की करीबी लड़ाई में दोनों दल इस समाज से अधिक से अधिक वोट पाने में लगे हैं। इसी कड़ी में उत्तर बंगाल विकास मंत्री व नाटाबाड़ी के तृणमूल विधायक रवींद्रनाथ घोष कहते हैं, राजवंशी समाज के हित में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बहुत कुछ किया है। महान समाजसेवी ठाकुर पंचानन बर्मा के नाम से विश्वविद्यालय स्थापित किया गया है। मुख्यमंत्री ने नारायणी बटालियन का भी गठन किया है। वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री ने भी नारायणी सेना रेजीमेंट का गठन कर राजवंशी जनजाति को नौकरी देने आश्वासन दिया है।
कूचबिहार में लंबे समय से अलग राज्य ग्रेटर कूचबिहार का मामला भी चुनाव की दस्तक के साथ ही एक बार फिर तूल पकडऩे लगा है। वामो शासन में इस आंदोलन ने तूल पकड़ा तो सत्ता ने निर्ममता से इसे कुचला। इसका खामियाजा भी उन्होंने भुगता। पिछले विधानसभा चुनाव में तृणमूल को यहां आठ सीटें मिली थीं। एक सीट पर फारवर्ड ब्लाक को जीत मिली। विधानसभा चुनाव में पिछड़ी भाजपा ने अपना दम दिखाते हुए यहां की लोकसभा सीट पर कब्जा कर लिया। तृणमूल इस दस्तक से परेशान है। असर यह कि हाल में यहां राजनीतिक हिंसा की घटनाएं बढ़ गई हैं। तृणमूल की आपसी गुटबाजी भाजपा को फायदा पहुंचा सकती हैं।