CAA के मुद्दे पर हाय तौबा मचाने वाले अल्पसंख्यक बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा पर चुप्पी साधे हुए

Bangaladesh Violence News बांग्लादेशी की उदारवादी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने हिंदुओं पर अत्याचार की कई और तस्वीरें साझा करते हुए अपना रोष प्रकट किया और लगे हाथों भारत के कथित उदारवादियों की मंशा पर भी सवाल खड़ा किया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 26 Oct 2021 09:58 AM (IST) Updated:Tue, 26 Oct 2021 09:58 AM (IST)
CAA के मुद्दे पर हाय तौबा मचाने वाले अल्पसंख्यक बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा पर चुप्पी साधे हुए
पिछले सप्ताह बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हुई हिंसा के विरोध में प्रदर्शन करतीं हिंदू महिलाएं। फाइल

कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ हिंसा हो रही है। दुर्गापूजा के समय पूजा पंडालों से शुरू हुआ कट्टरपंथियों के बर्बर अत्याचार, हत्या और दुष्कर्म का दौर कई दिनों तक जारी रहा। इस्कान मंदिर तक को निशाना बनाया गया। कई जानें गईं। दर्जनों घरों को लूटपाट के बाद फूंक दिया गया। परंतु भारत में रोहिंग्या, बांग्लादेशी घुसपैठियों और नागरिकता कानून (सीएए) के मुद्दे पर हायतौबा मचाने वाले अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ हिंसा पर चुप्पी साधे हुए हैं। रोहिंग्या व सीएए पर धर्मनिरपेक्षता, मानवता और सहिष्णुता जैसी तमाम शब्दावलियों का प्रयोग कर संविधान की दुहाई देने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों की जुबान को इस मुद्दे पर मानों लकवा मार गया है। सीएए के खिलाफ हर दिन बयानबाजी, धरना-प्रदर्शन और रैलियां-जुलूस निकालने वाली राजनीतिक पार्टियां व उनके नेता और मानवता के लंबरदार अभी कहां हैं? हिंदुओं के खिलाफ बांग्लादेश में हुई हिंसा पर क्यों नहीं वे रैली व जुलूस निकाल रहे हैं?

मुख्यमंत्री और तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने बांग्लादेश हिंसा पर रैली, जुलूस और धरना तो दूर, न तो मुंह खोला और न ही ट्विटर पर अब तक एक भी शब्द खर्च किया। रस्मी तौर पर तृममूल के एक-दो नेताओं ने कुछ ट्वीट और मीडिया में बयान दिए। उसमें भी हिंसा पर कम, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना अधिक था। मानवता और धर्मनिरपेक्षता का दंभ भरने वाले माकपाई रोहिंग्या और फलस्तीन के मुद्दे पर तो सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन बांग्लादेश में हिंसा को लेकर ट्विटर पर रस्म अदायगी और अपनी जैसी मानसिकता व सोच वाले कुछ बुद्धिजीवियों के माध्यम से एक खुला पत्र लिखकर हिंसा पर कम और मोदी सरकार पर ज्यादा निशाना साधकर महज औपचारिकता निभाते हैं।

मालूम हो कि आज बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों में हिंदू आबादी मुट्ठी भर रह गई है। लेकिन वहां के गैर मुस्लिमों (हिंदुओं, सिख, बौद्ध जैसे अल्पसंख्यक) को भारत में नागरिकता देने के लिए संसद के दोनों सदनों से विधेयक पास कराया गया था। सीएए के खिलाफ सड़कों पर उतरने वाले, सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले लोग, नेता और राजनीतिक दल क्या अब भी यह कहेंगे कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाए? ऐसा नहीं लगता। अगर ऐसा होता तो सीएए का विरोध और रो¨हग्या का समर्थन करने वाले लोग बांग्लादेश की वर्तमान हिंसा के खिलाफ मुखर हुए होते।

बांग्लादेश में हिंदुओं पर सिलसिलेवार हमलों ने विश्व बिरादरी का ध्यान खींचा है। परंतु भारत में हैरान करने वाली चुप्पी पर निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन अपने देश में हिंदुओं पर अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही हैं। वह यह सवाल भी उठा रही हैं कि भारत में अल्पसंख्यक हितों की बात करने वाले बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर चुप क्यों हैं? बांग्लादेश की एक संस्था के मुताबिक, जनवरी 2013 से इस वर्ष सितंबर तक वहां हिंदुओं पर करीब 3,679 हमले हो चुके हैं। तसलीमा नसरीन ने बांग्लादेश के हालात पर अपनी बहुचर्चित पुस्तक‘लज्जा’ की याद दिलाई। उन्होंने आग में धधकते हिंदू गांव की तस्वीर साझा करते हुए कुछ दिन पहले ट्वीट किया और लिखा कि ‘लज्जा’ आज भी प्रासंगिक है। तसलीमा ने हिंदुओं पर अत्याचार की कई और तस्वीरें साझा करते हुए अपना रोष प्रकट किया और लगे हाथों भारत के कथित उदारवादियों की मंशा पर भी सवाल खड़ा किया है। उन्होंने पूछा, ‘मैं समझ नहीं पाती हूं कि अपने देश की अल्पसंख्यक आबादी का समर्थन करने वाले महान भारतीय मुझसे नफरत क्यों करते हैं, जब मैं अपने देश की अल्पसंख्यक आबादी का समर्थन करती हूं?’

इस बीच इस्कान से लेकर भाजपा और अन्य हिंदू संगठनों की ओर से हिंसा के खिलाफ लगातार विरोध-प्रदर्शन किए जा रहे हैं। शनिवार को इस्कान की ओर से 150 देशों में लगभग 700 जगहों पर प्रदर्शन किया गया। परंतु केंद्र और भाजपा शासित राज्यों में छोटी-छोटी घटनाओं पर भी मोर्चा खोलने वाले, खुद को बड़ा हिंदू बताने वाले तमाम कांग्रेसी नेता बांग्लादेश हिंसा पर क्यों नहीं मोमबत्ती लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं? वामपंथी और तृणमूल से लेकर अन्य दलों के खुद को मानवता व धर्मनिरपेक्षता का सबसे बड़ा लंबरदार मानने वाले नेता क्यों नहीं धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं?

[राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]

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